राम

Jan 21, 2024 - 11:06
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संसार विरक्ति का मंत्र है अभोग ,

त्याग ,विसर्जन , निर्लिप्त , आदि ।

 पदार्थ में आसक्ति संसार

समुद्र में धँसा देती है और भीतर ही भीतर उसे धर्म से विमुख होने का पोषण देती हैं ।

 यह ध्रुव सत्य हैं कि भौतिक चकाचौंध में पदार्थ- भोग के द्वारा हमें कभी भी पूर्णता नहीं हो सकती हैं ।

कार्य सिद्ध नहीं हो सकता हैं । क्योंकि सही से करने का उसे भान नहीं होता हैं ।

अतृप्ति उसे कभी भी पूर्ण नहीं होने देती हैं जिससे धर्म करने का सही भान नहीं हो पाता हैं ।

इसलिये भगवान राम के सम्मुख पहुँचने का मन में भाव रखने वाला जीवन के संसार समुद्र में निर्लिप्त तैरता रहे जो मोक्ष में कम भव में पहुँचने का सही सुन्दर , सुगम्य स्थान हैं ।

प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )