राम
राम
संसार विरक्ति का मंत्र है अभोग ,
त्याग ,विसर्जन , निर्लिप्त , आदि ।
पदार्थ में आसक्ति संसार
समुद्र में धँसा देती है और भीतर ही भीतर उसे धर्म से विमुख होने का पोषण देती हैं ।
यह ध्रुव सत्य हैं कि भौतिक चकाचौंध में पदार्थ- भोग के द्वारा हमें कभी भी पूर्णता नहीं हो सकती हैं ।
कार्य सिद्ध नहीं हो सकता हैं । क्योंकि सही से करने का उसे भान नहीं होता हैं ।
अतृप्ति उसे कभी भी पूर्ण नहीं होने देती हैं जिससे धर्म करने का सही भान नहीं हो पाता हैं ।
इसलिये भगवान राम के सम्मुख पहुँचने का मन में भाव रखने वाला जीवन के संसार समुद्र में निर्लिप्त तैरता रहे जो मोक्ष में कम भव में पहुँचने का सही सुन्दर , सुगम्य स्थान हैं ।
प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )