वर्ष 1965 में ‘मेला रामनगरिया’ का हुआ था नामकरण, जाना जाता है तम्बूओं का मेला

Jan 7, 2024 - 18:23
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वर्ष 1965 में ‘मेला रामनगरिया’ का हुआ था नामकरण, जाना जाता है तम्बूओं का मेला
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वर्ष 1965 में ‘मेला रामनगरिया’ का हुआ था नामकरण

फर्रुखाबाद प्रतिवर्ष माघ के महीने में गंगा तीरे लगने वाले तम्बुओं के शहर (मेला रामनगरिया) के अस्तित्व में आने के सम्बन्ध में बहुत कम लोग ही जानते है| आखिर कब देश-प्रदेश के श्रद्धालुओं को अपनी तरफ आकर्षित करने वाला मेला अस्तिस्त्व में आया| यह सबाल अधिकतर लोगों के जगन में वर्षो से जगह बनाये है|

इसकी कई दिनों तक पड़ताल की| पुराने इतिहास को खंगाला तो जो सामने आया उससे मेला रामनगरिया के अस्तित्व के सबाल से काफी हद तक पर्दा उठा है| कंपिल से फर्रुखाबाद-श्रंगीरामपुर तक गंगा के तट से गंगा जल लेकर श्रद्धालु मानसरोबर कैलाश जाकर देवाधिदेव भगवान शंकर को अर्पित करते थे|

प्राचीन ग्रथों में इस पूरे क्षेत्र को स्वर्गद्वारी कहा गया है| घटियायों का घाट घटियाघाट वर्तमान में (पांचाल घाट) फर्रुखाबाद से शाहजहाँपुर,बरेली मुख्यमार्ग होकर जाता था| जंहा आजादी से पूर्व की बात करे तो नावों का पुल बनाया जाता था| आजादी के बाद भारत सरकार ने गंगा के ऊपर आवागमन के लिए पीपों का पुल बना दिया| गंगा की रेती पर गुजरने के लिए लोहे से बने पटले डाले जाते थे| जो राजेपुर जाने वाले मार्ग से मिलते थे|

वही बरसात होने पर लगभग चार महीने तक यह मार्ग बंद कर दिया जाता था| इतिहास में झांककर देखें तो गंगा के तट पर कल्पवास कर रामनगरिया लगने का कोई लिखित प्रमाण नही है| शमसाबाद के खोर में प्राचीन गंगा के तट पर ढाई घाट का मेला लगता चला आ रहा है| यह मेला काफी दूर होने के कारण कुछ साधू संत वर्ष 1950 माघ के महीने में कुछ दिन कल्पवास कर अपनी साधना करते थे|

लेकिन आम जनता का इनसे कोई सरोकार नही होता था| वर्ष 1955 में पूर्व विधायक स्वर्गीय महरम सिंह ने इस तरफ अपनी दिलचस्पी दिखायी| उन्होंने इस वर्ष गंगा के तट पर साधू-संतों के ही साथ कांग्रेस पार्टी का एक कैम्प भी लगाया था| इसी के साथ ही साथ उन्होंने पंचायत सम्मलेन,शिक्षकसम्मेलन,स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी सम्मेलन तथा सहकारिता सम्मेलन का आयोजन कराया था|

जिसमे अब क्षेत्र के लोगों की दिलचस्पी बढ़ गयी| वर्ष 1956 में विकास खंड राजेपुर तथा पड़ोसी जनपद शाहजंहाँपुर के अल्लागंज क्षेत्र के श्रद्धालुओं ने माघ मेंले में गंगा के तट पर मढैया डाली और कल्पवास शुरू किया| देखते ही देखते मेले की चर्चा दूर-दूर हुई| वर्ष 1963 में बना मेले में पुलिस थाना कल्पवासियों की संख्या वर्ष 1963 तक काफी बढ़ गयी थी| जिसके चलते तत्कालीन जिला परिषद के अध्यक्ष कालीचरण ने कल्पवासियों की सेवार्थ एक औषधालय खोल दिया था|

इसके साथ ही तत्कालीन पुलिस अधीक्षक फ़तेहगढ़ ने एक पुलिस थाना भी कल्पवासियों के खोल दिया| वर्ष 1965 में आयोजित हुए माघ मेले में पंहुचे स्वामी श्रद्धानंद के प्रस्ताव से माध मेले का नाम रामनगरिया रखा गया| वर्ष 1970 में गंगा तट पर पुल का निर्माण कराया गया| जिसे लोहिया सेतु नाम दिया गया था | पुल का निर्माण हो जाने से मेले में कल्पवासियों की संख्या प्रतिवर्ष बढने लगी| जिसके बाद फर्रुखाबाद के आस-पास के सभी जिलो के श्रद्धालु कल्पवास को आने लगे|

1985 आते-आते यह संख्या कई हजारों में हो गयी| जिसके बाद जिला परिषद को मेले की व्यवस्था का जिम्मा सौपा गया| तत्कालीन डीएम केके सिन्हा व जिला परिषद के मुख्य अधिकारी रघुराज सिंह ने मेले के दोनों तरफ प्रवेश द्वारों का निर्माण कराया| वर्ष 1989 में यूपी सरकार ने दिया मेला रामनगरिया को पहला वजट वर्ष 1989 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने मेला रामनगरिया का अवलोकन किया और सूरज मुखी गोष्ठी में हिस्सा लिया|

जिसके बाद उन्होंने प्रतिवर्ष शासन से मेले के लिए पांच लाख रूपये देनें की घोषणा की| वर्ष 1985 से ही मेला जिला प्रशासन की देखरेख में संचालित हो रहा है| मेला यूपी के साथ ही साथ अन्य प्रदेशों में भी अपनी अलग ही ख्याति रखता है| लेकिन बीते कुछ वर्ष पहले मेले को बड़ा रूप दिलाने वाले पूर्व विधायक स्वर्गीय महरम सिंह का नाम तक नही लिया जाता।

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