मानवीय गुण: संवेदनशीलता
मानवीय गुण: संवेदनशीलता
मानवीय गुण: संवेदनशीलता
मानवीय गुण संवेदनशीलता बहुत बड़ा गुण हैं । एक साथ हम आज भी हैं पर उनमें नज़र नहीं आती संवेदनशीलता की वह गहराई लगता है मानवीयता आज सतही हो गए हैं । मानव के गुणों की ख़ूबसूरती के इस कैनवास पर प्रेम के कुछ ऐसे अहसासों को भी मानवीय संवेदनशीलता में हम अंकित करें ,जो सदैव हरे-भरे रहें मानवीयता को भी ताज़ा-तरीन बनाए रखें । यह ख़ुशी के आंसू रुकने न दे और ग़म के आंसू बहने न दे क्योंकि ये ज़िंदगी ना जाने कब रुक जाएगी जो हमारा प्राकृतिक गुण मानवीय संवेदनशीलता उस पे जम गयीं बेदर्द जमाने की धूल,उसे प्रेम रस की बौछार बहा ले जाएगी । मन का गुबार,न रख मन में कोई शंका न शूल फिर उभर आएंगे मानवीय गुण बन बेशुमार प्यार-दुलार । संसार में कोई भी मनुष्य पूर्ण नहीं होता हैं इसलिए अनेकांत सिद्धांत की बहुत ज़रूरत है क्योंकि आज हर एक खुद को अहमियत ज्यादा देता है उसका नजरिया ही सही है उसकी यह सोच रहती है । मनुष्य यह सोचे कि वह अकेला ही सब कुछ कर सकता है यह कभी भी संभव नहीं है। मनुष्यता को जीवित रखना है तो संवेदनशीलता के गुणों को भी जीवित रखना जरूरी है। बदलते युग में संवेदनशीलता नहीं रही है पर आज वसुधैव कुटुंबकम की भावना से पोषित भारतीय संस्कृति बहुत जरूरी है। संवेदनशीलता एक ऐसा मानवीय गुण हैं जिसके बिना इन्सान कभी पूर्ण हो नहीं सकता हैं । हम प्रभु से प्रार्थना करें कि वह हमें यह संवेदनशीलता का अमूल्य गुण प्रदान करे। हमें वह पूरा मानव बनाए ताकि हम भी किसी जरूरतमंद का दुख , दर्द कम कर सकें । प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)