आज की दो बात
आज की दो बात
सभी का देखने व सोचने का तरीका अलग - अलग होता है। यदि सही सकारात्मक सोच होगी तो उसे कोई न कोई अच्छाई नजर आएगी और विपरीत नकारात्मक सोच होगी तो बुराईयां ही बुराईयां नजर आएगी ।
हमारा नजरिया सुख और खुशी तलाशने वाला होगा तो हमें वही मिलेगा और हमारा नजरिया दुख वाला होगा तो दुख कभी भी पीछा नहीं छोड़ेगा । मन चंचल है उस पर लगाम कसना जरूरी है । मनुष्य जीवन एक जटिल पहेली हैं । सुख और दुख की जोडी उसकी सहेली हैं । सुख और दुख का अनुभव मन की कङी कराती है ।
मन पर यदि विवेक की झङी लग जाए तो दृष्टिकोण भी सकरात्मक और सही बन जाएगा । कौन है प्रसन्न और कौन है उदास । यदि कोई दैनिक चर्या दोनो के जीवन मे एक समान घटित हो रही है तो उनकी दृष्टिकोण की भिन्नता प्रतिक्रिया ही हैं क्योंकि प्रसन्न मन वाला जीवन को हँसकर जीता हैं ।
सही मायने में वह धार्मिक कहलाता हैं । जो गम में भी खुशी ढूँढता हैं और असफलता में भी अपनी सफलता खोजता हैं । ये सब तभी संभव हो सकता हैं जो जीवन में सही दृष्टिकोण बनाए रखता हैं । जब तक मनुष्य अपनी पहचान स्थूल शरीर रूप से करता है और शरीर को ही कर्ता समझता है तब वह मिथ्या अहंकार से ग्रसित रहता है और जब वह अपनी पहचान जीव रूप से करने लगता है तब उसका मिथ्या अहंकार मिटने लगता है यहीं से उसके अज्ञान का आवरण धीरे धीरे हटने लगता है और ज्ञान प्रकट होने लगता है।
जीव मिथ्या अहंकार के कारण ही स्थूल शरीर धारण करके बार-बार जन्म और मृत्यु को प्राप्त होता रहता है और जब जीव का मिथ्या अहंकार मिट जाता है तब वह मोक्ष के मार्ग पर चलने लगता है और मुक्ति संभव होती है । दोनों ही बातों का सार यही है कि हमें सदा हमारी सोच सही रखनी चाहिए और व्यवहारिक व सकारात्मक बने रहना चाहिये। क्योंकि आदमी प्रायः दुःखी जब होता है जब वह सोच ही अव्यवहारिक व नकारात्मक रखता है । प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)