आप’ शब्द में है भरा आत्मीय आदर भाव
आप’ शब्द में है भरा आत्मीय आदर भाव
आप शब्द में आत्मीय भाव होते है । साथ में यह व्यक्ति की विनम्रता का भी प्रतीक है । हमारे में दूसरे सभी के प्रति आत्मीय आदर भाव होना चाहिये जिससे हमारा सही से विवेक जागृत हो । हम संवेदनशील प्राणी है,दूसरे के दुःख से दुःखी होना और सुख से सुखी होना हमारे अंदर स्वाभाविक वृति है।कोई शोक का माहौल हो ,शोक-संवाद हो, या कुछ और अप्रिय घटना।
हमारे अंदर विवेक हों ,हम एक दूसरे से प्रभावित होते है ।समय की नजाकत को समझने कीपरख हममें होनी चाहिए,समय का विवेक रखकर सावधानीपूर्वक सबको सही से मान सम्मान दे व सही से समझ सब काम किये जायें तो स्वाभाविक ही हमें मानसिक शांति मिलेगी और मन प्रफुल्लित होगा,चेहरे की मुस्कान में चार चांद लग जाएंगे।
सबसे बड़ा है मन में उत्पन्न सभी के प्रति आदर सम्मान का भाव व विवेक का जागरण। अनादर या ओछे व्यवहार का प्रतीक , अशोभनीय बर्ताव , गलत शब्द आदि भी दूसरों के घाव पर नमक छिड़कने का काम कर सकता है,जो हमारे लिए कभी भी शोभनीय नहीं,किसी भी परिस्थिति में।
हर मर्ज की दवा है छोटे - बड़े सभी के प्रति मन में सदैव मर्यादा का भाव रखना , प्रसन्नचित्त रहना,तन ,मन की सुंदरता में चार चांद लगाना लेकिन सही विवेकपुर्वक। इसीलिए कहते हैं आप’ समबोधन में आत्मीय आदर का भाव भरा हैं जो आदर और स्नेह से परिपूर्ण है । प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)