नहीं होते सब काम हमारे मनचाहे
नहीं होते सब काम हमारे मनचाहे
मैंने स्वयं ने अपने अनुभव से यह देखा है कि कितनी बार अपने मन का नहीं होता हैं तो हमारा मन खिन्न हो जाता है । हम क्यों यह भव में जन्म कैसे किन कारणों आदि से लिये ?
क्या जन्म मरण हमारा हमारे मन से हो रहा है ? जब जन्म मरण कर्मों से हो रहा है तो हम सब काम में मनचाहे पर क्यों आसक्त रहते है और दुःखी होते हैं । ज़िंदगी एक अनुभव हैं , एहसास है , ह्रदय का भाव है ।शब्दों से बयां नहीं होने वाले अल्फाज़ हैं ।आँधी भी है तो कहीं शीतल पवन का झोंका हैं ।ख़ुशबूदार गुलाब के फूलों के साथ काँटों की चुभन भी है ।
पर्वतों से बहती नदी का उफान कही तेज़ तो कहीं शांत भी है ।बस ज़िंदगी भी कुछ यूँ ही है ।प्रक्रति के भाँति ज़िंदगी के भी अनेक रंग और रूप होते हैं । जिस प्रकार प्रक्रति भी प्रभावित होती है अनेक तत्वों से । उसी प्रकार ज़िंदगी भी प्रभावित होती मन , वचन और काया से । सुख-दुख,लाभ-अलाभ , यश - अपयश आदि ये तो ज़िंदगी के पैमाने हैं । इन पैमानों को मापने का शक्तिशाली तरीक़ा है केवल मन रूपी यंत्र ।मन ही तो भरता है ज़िंदगी में हमारे मनचाहा रंग ।
दुविधा में भी यह सुविधा ढूँढता हैं । प्रतिकूल समय में भी हमको अनुकूल बनाए रखता है । जो भी अपना हमारा मनचाहा या अनचाहा होता है । यह अपना लक्ष्य कभी ना भूले ।चाहे सुख चाहे दुःख भटकना नही कही पर चलना निरन्तर हैं । जीवन के अभी के पल और आने वाला प्रत्येक कल सभी पल को सही से हमे मन से हर स्थिति में सम्भाव रखते हुए निखारना हैं । प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )