Aligarh News : पीपीओ ने गेंहू, सरसों, चना, मटर, मसूर एवं आलू के लिए कीट प्रबंधन की दी जानकारी

Nov 22, 2025 - 21:10
 0  0
Aligarh News : पीपीओ ने गेंहू, सरसों, चना, मटर, मसूर एवं आलू के लिए कीट प्रबंधन की दी जानकारी

पीपीओ ने गेंहू, सरसों, चना, मटर, मसूर एवं आलू के लिए कीट प्रबंधन की दी जानकारी

अलीगढ़ । जिला कृषि रक्षा अधिकारी धीरेन्द्र सिंह चौधरी ने अवगत कराया है कि वर्तमान में रबी फसलों- गेहूं, राई-सरसों, चना, मटर, आलू एवं गन्ना में तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण लगने वाले सामयिक कीट-रोग के प्रकोप की सम्भावना के दृष्टिगत बचाव एवं प्रबंधन अति आवश्यक है। उन्होंने फसलवार सुरक्षा के लिए सुझाव एवं संस्तुतियों की विस्तृत जानकारी दी है। उन्होंने भारत सरकार कृषि मंत्रालय द्वारा संचालित राष्ट्रीय नाशीजीव प्रणाली (एन.पी.एस.एस.ऐप) की जानकारी देते हुए बताया कि कृषक भाई अपने एण्ड्रोइड मोबाइल मे एन.पी.एस.एस. ऐप डाउनलोड करके अपनी फसल मे लगने वाले कीट या रोग के बारे मे पता लगा सकते हैं।

 ■ गेहूं: बुवाई के लिए रोग रहित बीज एवं रोग अवरोधी प्रजाति का चुनाव करना चाहिए। अनावृत कंडुआ एवं करनाल बंट के नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लूपी की 2.5 ग्राम अथवा कार्बाेक्सिन 75 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज शोधन कर बुवाई करनी चाहिए। भूमिजनित रोगों से बचाव के लिए ट्राईकोडर्मा 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 60-75 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8-10 दिन छाया में रखने के पश्चात बुवाई से पूर्व आखिरी जुताई के समय खेत में मिलाकर भूमि शोधन करना चाहिए। दीमक या गुजिया-ब्युवेरिया बेसिआना 1.15 प्रतिशत की 2.5 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 60-75 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8-10 दिन छाया में रखने के पश्चात बुवाई से पूर्व आखिरी जुताई के समय खेत में मिला देने से दीमक सहित अन्य भूमि जनित कीटों का नियंत्रण हो जाता है। खड़ी फसल में दीमक या गुजिया के नियंत्रण के लिए क्लोरपाईरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 2.5 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करें। खरपतवार नियंत्रण अंतर्गत गेंहुसा एवं जंगली जई के नियंत्रण के लिए सल्फोसल्फ्युरान 75 प्रतिशत डब्लू जी की 33 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर 350-400 लीटर पानी में घोलकर अथवा क्लोडिनाफाप प्रोपेर्जिल 15 प्रतिशत डब्लू०पी० की 400 ग्राम मात्रा 500-600 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 20-25 दिन के बाद छिड़काव करना चाहिए। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिए मेटसल्फ्यूरान मिथाइल 20 प्रतिशत डब्लू०पी० की 20 ग्राम मात्रा अथवा कारफैट्राजॉन इथाइल 40 प्रतिशत डीएफ की 50 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 20-25 दिन के बाद छिड़काव करना चाहिए।

■ राई/सरसों: बीज जनित रोगों से सुरक्षा के लिए 2.5 ग्राम थिरम 75 प्रतिशत प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बोयें। मेटालेक्सिल 2.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज शोधित करने से सफ़ेद गेरुई एवं तुलासिता रोग की प्रारंभिक अवस्था में रोकथाम हो जाती है। आरा मक्खी से बचाव के लिए डाईमिथोएट 30 प्रतिशत ई०सी० 650 मिलीलीटर/हेक्टेयर अथवा क्यूनालफास 25 प्रतिशत ईसी की 1.2 लीटर मात्रा/हेक्टेयर की दर से 700 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। पत्ती सुरंगक कीट से बचाव के लिए डाईमिथोएट 30 प्रतिशत ईसी की 650 मिलीलीटा मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें अथवा कार्बाेफ्यूरान 3 प्रतिशत सीजी 66 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करें।

■ चना/मटर/मसूर: बीज जनित रोगों से सुरक्षा हेतु ट्राइकोडर्मा (4 ग्राम / किग्रा बीज) से बीज उपचार कर ही बुवाई करनी चाहिए। रासायनिक बीज शोधन के लिए थिरम 75 प्रतिशत की 2 ग्राम एवं कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत 1 ग्राम मिश्रण की 3 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज को शोधित कर बुवाई करें। कटुआ कीट से बचाव के लिए मेटारेजियम एनिसोप्ली 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 400-500 लीटर पानी में घोलकर सांयकाल छिडकाव करना चाहिए। रासायनिक नियंत्रण के लिए क्लोरपाईरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 2.5 लीटर 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर कि दर से छिड़काव करें।