व्यंग्य *चुनावी मौसम में मुंगेरीलाल और सत्ता के हसीन सपने

Oct 31, 2025 - 21:30
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व्यंग्य  *चुनावी मौसम में  मुंगेरीलाल और सत्ता के हसीन सपने

व्यंग्य *चुनावी मौसम में मुंगेरीलाल और सत्ता के हसीन सपने* (सुधाकर आशावादी-विनायक फीचर्स)

यूँ तो जीवन के हर क्षेत्र में मुंगेरीलालों का बोलबाला है। मुंगेरीलाल जीवन को रंगीन बनाने के हसीन सपने दिखा दिखा कर अपना रोजगार चला रहे हैं, इनका तो काम ही है सपने बेचकर अपने व्यापार में दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति करना। हमारे देश में मुंगेरीलाल हर जगह पाए जाते हैं लेकिन सियासत में मुंगेरीलाल सर्वाधिक सक्रिय हैं। कुर्सी के खेल में कोई कुर्सी छीनने के लिए मुंगेरीलाल बना है तो कोई कुर्सी बचाने के लिए। कुर्सी छीनने और कुर्सी बचाने का प्रयास करने वाले मुंगेरीलालों के सपनों में अंतर है। कुर्सी बचाने का प्रयास करने वाले मुंगेरीलाल के पास सीमित सपने हैं, जबकि कुर्सी छीनने का जतन करने वाला मुंगेरीलाल सपने देखने और दिखाने का असीमित अधिकार रखता है। कुर्सी छीनने का सपना देखने वाला मुंगेरी लाल मनचाहे सपने देख भी सकता है और दिखा भी सकता है। इसलिए वह अपने सपनों की उड़ान की सारी हदें लांघने में भी संकोच नहीं करता। फिर भी घर में नहीं दाने, मैया चली भुनाने और थोथा चना बाजे घना।

ये ऐसी कहावतें हैं, जो समाज का कड़वा सच उजागर करती हैं। ऐसी ही एक अन्य कहावत है मुंगेरी लाल के हसीन सपने। इन तीनों कहावतों में घालमेल है। जिसके पास अपना पेट भरने के साधन नहीं हैं, वह औरों को पकवान परोसने की बात करता है। जो खुद अनपढ़ है, वह उत्तम शिक्षा व्यवस्था देने का दम भरता है। जो नौकरी देने के नाम पर लोगों की जमीन हड़प कर बैठा है, वह भूमिहीनों को गाँव और शहर में जमीन देने की बात करता है। जिस प्रदेश के लाखों युवा रोजगार के लिए देश में दर दर भटकने के लिए विवश हैं, वहां मुंगेरीलाल प्रत्येक परिवार के एक व्यक्ति के लिए सरकारी रोजगार देने का प्रण ले रहे है। मुफ्त बिजली, मुफ्त बीमा, मुफ्त की अनेक सुविधाएं देने की बातें की जा रही हैं। वास्तव में जिस व्यक्ति के पास संसाधनों का अभाव होता है, वह सपने अधिक देखता है तथा अपने अभावों की पूर्ति सपने देखकर ही करना चाहता है। इस प्रकार के सपने सियासत में अधिक देखे जाते हैं। सत्ता की चाहत में सपने देखने और दिखाने का चलन काफी पुराना है। मुंगेरीलाल समझते हैं कि पब्लिक बहुत मासूम है, वह सपनों में दिखाए गए पुलाव से अपना पेट भर लेगी। इसलिए जैसे चाहो, उसे भ्रमित कर सकते हो। बहरहाल जैसे भी हो कुर्सी पर बैठे आदमी को कुर्सी से बेदखल करने के लिए जितने भी उपाय किये जा सकते हैं, उतने उपाय किये जा रहे हैं।

यूँ तो शकुनि पासे फेंकने में सिद्धहस्त है, मगर युग बदलने से खेल के नियम बदल गए हैं। पब्लिक तर्क करने लगी है। चुनावी रण क्षेत्र में मुंगेरी लाल ने प्रण लिया है, कि मैं आसमान से तारे तोड़कर धरती पर लाऊंगा। जनता को अपनी पलकों पर बिठाऊंगा। बिना काम के मजदूरी दिलाऊंगा। घर बैठे खाना खिलाऊंगा। मुफ्त में बिजली दिलाऊंगा। यह तो निश्चित नहीं कि इन मुंगेरी लालों को अपना प्रण पूरा करने का अवसर मिलेगा या नहीं, मुंगेरी लाल अपने सपनों को हकीकत में बदल पाएगा या नहीं। इतना अवश्य निश्चित है कि सपने देखने या दिखाने पर किसी भी प्रकार के टैक्स का कोई प्रावधान नहीं है। यदि सपनों पर भी जीएसटी का प्रावधान होता, तो मुंगेरीलाल सपने तो देखते, किन्तु उन सपनों को अपना प्रण कहकर प्रचारित न करते। वैसे भी चुनावी मौसम में यदि मुंगेरीलाल सत्ता के हसीन सपने नहीं देखेंगे, तो भला कौन देखेगा ? *(विनायक फीचर्स)*