पुलिस थाना और थानेदार
● पुलिस थाना और थानेदार
● थाना चमकाने में क्या क्या लगता है
Police aur corruption : आप सभी लोग जानते हैं फिर भी आपको बताते हैं रिश्वतखोर पुलिस वाला अपने उच्च अधिकारी को मोटी रकम देकर थाने का थानेदार बनेगा तो वह खुद की दी हुई रखम निकालने की पहले सोचेगा। इसके लिए वह पहले क्षेत्र में अपने दो चार परचित बनायेगा..? नहीं भी बनाएगा तो उसके पास रिश्तेदार व विरादरी के लोग ही आना शुरू हो जायेंगे।
फिर थाने में उद्योग धंधों के काम को सुचारू करने के लिए ठेकेदार तलाशे जाते हैं। सट्टा कराने वाले सबसे ईमानदार बिजनिस मेन होता है इनसे बात किलियर होने पर फिक्स टाइम यानी महीने की पहली तारीख को थानेदार के पास तयशुदा रखम पहुंच जाती है जो हजारों से लेकर लाखों तक हो सकती है। यह थाने में थानेदार की मुख्य कमाई होती है।
लड़ाई झगड़े वाले केस थाने में रोज मर्रा का काम होता है जिसमे दोनों पार्टियों से अच्छी कमाई का जुगाड़ है। कुछ थानेदार अपने क्षेत्र में जुआ कराते हैं तो कुछ नहीं, जुआ के फड़ की रखम लाखों तक हो सकती है लेकिन अधिकारियों और जनता के बीच खबर पहुंचाने के लिए कुछ रुपये सैकड़ा या हजार में हो सकते हैं को जुआरियों के पास बरामद होना दिखाया जाता है बाकी का खाया जाता है।
किसी को शक न हो दबंग किस्म का हो सट्टा किंग बनाया जाता है वह अपने हिसाब से गली मोहल्लों में फड़ लगवाता है जिसमे से दो चार को पकड़वाया जाता है जिनके पास से तीन सौ चार सौ रुपये एक पर्ची माचिस मोमबत्ती और एक पेन बरामद होना दिखाया जाता है। अवैध खनन हरे पेड़ कटना आदि तरह के उद्योग कमाई को बढ़ावा देते हैं।
मजेदार बात तो यह है कि समाजसेवी का चोला ओढ़े दलाल थाने में FR लगवाने के नाम पर मोटी कमाई करना FIR लिखवाना इनके वाहें हाथ का कमाल होता है। असल बात यह है कि दलाल थानेदार की कमाई कराने वाले कमाऊ बेटे होते हैं। यही दलाल अपने थाना क्षेत्र के सभ्रांत व्यक्तियों को थाने में बुलवाते है और उन्ही के द्वारा इशारा करके कहा जाता है यार आपके रहते गर्मी से हाल बेहाल रहते हैं बेचारे थाने में बैठे हैं डर के मारे सीधा बोलते हैं हजूर कल एसी लग जायेगी।
अब दलाल दूसरे मोटे सयामी को पकड़ता है कि थाने में फर्स बनना है बेचारा वो भी कल से काम स्टार्ट करदो जो पैसा लगेगा हम दे देंगे। प्रधानों को भी पकड़ा जाता है भट्टे वाले आदि जैसे लोग थाने को चमकाने का काम करते हैं और इसका श्रेय कौन ले जाता है आप खुद समझदार हैं, थानेदार! उत्तर प्रदेश के हर जनपद में थानों की बोली लगती है थाने बेचे जाते हैं।
सिपाही से लेकर पुलिस महानिदेशक तक हर सीट पर उल्लू बैठा है जो केवल गांधी छाप जनता है। जनता को विभाग में गन्ने की तरह निचोड़ा जा रहा है। पुलिस उसकी चासनी बनाकर सुबह ब्रेड पर लगाकर खा जाता है।
● लेखक - राम प्रसाद माथुर