क्षमापना महापर्व
क्षमापना महापर्व
दुनिया में शक्ति के अनेक रूप हैं । प्रश्न किया गया कि सबसे बड़ी शक्ति क्या हैं ? महामात्य चाणक्य ने उतर दिया - सबसे बड़ी शक्ति है मित्रता । इस संदर्भ में हम महावीर वाणी को देखें तो उतर मिलता है - सबके साथ मेरी मैत्री है , वैर किसी के साथ नहीं हैं । यह बहुत अनुभव की वाणी हैं । बहुत कठिन काम हैं ।
सबके साथ मैत्री करना । जहाँ स्वार्थ नहीं है , वहाँ मैत्री हो सकती हैं किंतु जहाँ स्वार्थ हैं , वहाँ मैत्री नहीं हो सकती । होती भी है तो टूट जाती है । जो व्यक्ति अहंकार और लोभ से परे होता हैं , वह सबके साथ मैत्री कर सकता हैं । किंतु जिसमें अहंकार है , लोभ हैं , वह सबके साथ मैत्री नहीं कर सकता । मैत्री के लिए एक सहायक या मित्र की खोज करना जरुरी है ।
सहायक अच्छा नहीं होता तो कार्य अच्छा नहीं होता । अकेला व्यक्ति भी कार्य करता हैं । किंतु सहायक मिल जाता है तो कार्य में त्वरा आ जाती हैं और कार्य अच्छे ढंग से होता हैं । एक शासक राज्य चलाता है । अगर सचिव या मंत्री अच्छा हैं तो राज्य सुचारू रूप से चलता हैं । अच्छे सचिव के अभाव में शासक अच्छा होते हुए भी बदनाम हों जाता है । आज का दिन हमें क्षमा है शांति की उपासना । मैत्री और अहिंसा की भावना ।क्षमा का आदान प्रदान है अपनी आत्मा को समुज्ज्वल और सरल बनाना ।
आंतरिक शत्रुओं से अपनी सुरक्षा हेतु है जरुरी क्षमा का कवच पहनना । क्षमा मांगना है सच में अमृत धार बहाना ।इससे विष तो धुलता ही है और बहने लगता मैत्री का अमृत मय झरना ।शब्दोच्चारण के साथ मन में जमे शत्रुता के भावों को बहा देना है सच्ची क्षमा याचना । क्षमा शूरवीरों का भूषण है ।तो आओ आपां समता रे झूले झूला ,आपस री भुला भुला ,मानव जीवन रो ओ ही सार है ।होओ नमणो ख़मणो ही इं दिन रो व्यापार है । प्रदीप छाजेड़ ( बोंरावड़ )