नैतिकता के मूल्य

नैतिकता के मूल्य
यह बिल्कुल आवश्यक नहीं है कि जो व्यक्ति तार्किक रूप से अत्यंत बुद्धिमान है, उसका चरित्र भी उतना ही उत्कृष्ट और महान होगा। बल्कि कई लोगों को इस पर गहरा अफसोस जताते हुए देखा जा सकता है कि वह जिसे बहुत तार्किक और बुद्धिमान समझता था, वह व्यक्ति चरित्र और लोगों के साथ व्यवहार के स्तर पर निहायत ही खराब इंसान निकला। दरअसल, बुद्धिमत्ता और चरित्र, दोनों जीवन के अलग- अलग आयाम हैं। किसी भी मनुष्य के जीवन में सफलता और सम्मान पाने के लिए केवल तीव्र बुद्धि पर्याप्त नहीं होती, बल्कि उसका चरित्र, व्यवहार, उसकी नैतिकता और सोच भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समाज में अक्सर यह भ्रम फैल जाता है कि जो व्यक्ति पढ़ा-लिखा है, जिसे तर्कशील और व्यावहारिक ज्ञान है, वह अपने चरित्र में भी उत्तम होगा, लेकिन वास्तव में यह आवश्यक नहीं है।
इतिहास और वर्तमान दोनों में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं, जहां लोग अत्यधिक शिक्षित, बुद्धिमान और तर्कशील होते हुए भी अपने चरित्र के पतन के कारण समाज में अपयश का कारण बने हैं। तार्किक बुद्धिमत्ता किसी भी व्यक्ति की सोचने-समझने, निर्णय लेने और समस्याओं का समाधान खोजने की क्षमता को दर्शाती है। यह उसे दुनिया की जटिल परिस्थितियों को समझने और सही-गलत का विश्लेषण करने में मदद करती है। मगर केवल यह योग्यता होना ही जीवन की पूर्णता नहीं है। अगर कोई व्यक्ति अपनी बुद्धिमत्ता का उपयोग स्वार्थ, छल, धोखा और गलत कार्यों के लिए करता है, तो उसका वह ज्ञान समाज के लिए हानिकारक सिद्ध होता है। दूसरी ओर, एक ऐसा व्यक्ति जो अत्यधिक शिक्षित भले ही न हो, लेकिन जिसका हृदय पवित्र है, जिसकी सोच में ईमानदारी, दया और करुणा है, वह समाज के लिए प्रेरणा बन जाता है । चरित्र वह मूलभूत आधार है, जिस पर किसी भी व्यक्ति के जीवन की सच्ची प्रतिष्ठा और पहचान टिकी होती है । चरित्र में सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, करुणा, धैर्य, सहनशीलता और विनम्रता जैसे गुण आते हैं ।
यह व्यक्ति को आत्मसम्मान और दूसरों का विश्वास प्राप्त करने में सहायता करता है। जब जीवन में कठिन परिस्थितियां आती हैं, तब केवल बुद्धिमत्ता ही व्यक्ति का साथ नहीं देती, बल्कि उसका चरित्र उसे सही और गलत के बीच अंतर समझाकर सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा देता है । आज के समय में लोग अक्सर केवल बुद्धिमत्ता को ही सफलता का मापदंड मान लेते हैं । वे यह भूल जाते हैं कि अगर अपने भीतर मानवीय मूल्य और नैतिकता ही न बच पाए, तो वह बुद्धिमत्ता भी व्यर्थ हो जाती है । उदाहरण के लिए, अगर कोई डाक्टर बहुत ही ज्ञानी है, लेकिन नैतिक कसौटियों पर वह कमजोर है और अपने पेशे का दुरुपयोग कर रहा है, तो वह समाज के लिए लाभकारी नहीं, बल्कि हानिकारक बन जाता है । इसी प्रकार, कोई नेता अत्यधिक बुद्धिमान तो हो सकता है, लेकिन अगर उसके लिए नैतिक मूल्य बेमानी हैं, तो उसके निर्णय और कार्य समाज को विनाश की ओर ले जा सकते हैं । इसलिए चरित्र की श्रेष्ठता बुद्धिमत्ता के समांतर ही महत्त्वपूर्ण है । यों भी, चरित्र निर्माण कोई एक दिन में होने वाली प्रक्रिया नहीं है । यह व्यक्ति के बचपन से ही आरंभ होती है और जीवनभर चलने वाली प्रक्रिया है। अच्छे संस्कार, सही मार्गदर्शन, उचित शिक्षा और जीवन के अनुभव चरित्र निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं । माता-पिता, शिक्षक और समाज का वातावरण किसी व्यक्ति के चरित्र को गढ़ने में प्रमुख योगदान देते हैं।
अगर किसी बच्चे को बचपन से ही सच बोलने, दूसरों की मदद करने, बड़ों का आदर करने और कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य रखने की शिक्षा दी जाती है, तो जीवन में चाहे जितनी भी बड़ी कठिनाइयां क्यों न आएं, वह अपने चरित्र से कभी समझौता नहीं करेगा । दूसरी ओर, अगर केवल अकादमिक शिक्षा या तर्कशक्ति पर ही ध्यान दिया जाए और नैतिक शिक्षा की उपेक्षा कर दी जाए, तो व्यक्ति के अंदर स्वार्थ, अहंकार और भ्रष्ट आचरण पनप सकते हैं। वह अपने लाभ के लिए किसी हद तक जा सकता है, चाहे उससे दूसरों का कितना भी नुकसान क्यों न हो । यही कारण है कि आज के समय में शिक्षा के साथ-साथ नैतिक शिक्षा पर भी उतना ही जोर दिया जाना चाहिए । 'बुद्धिमत्ता बिना चरित्र अधूरा है, और चरित्र के बिना बुद्धिमत्ता खतरनाक ।' यह मशहूर कथन बहुत गहराई से इस सच्चाई को प्रकट करता है कि दोनों का संतुलन होना आवश्यक है। केवल बुद्धिमान होना जीवन में सफलता नहीं दिला सकता, जब तक कि आपके पास अच्छा चरित्र न हो । समाज में आज भी ऐसे बहुत से लोग मिलते हैं, जो उच्च शिक्षित नहीं हैं, लेकिन अपने उच्च नैतिक मूल्यों और नेक कार्यों से लोगों के दिलों में बसते हैं। वे अपने छोटे-छोटे कार्यों से दूसरों की मदद करते हैं, कठिन समय में दूसरों के साथ खड़े रहते हैं और बिना किसी स्वार्थ के सेवा करते ।
दूसरी ओर, कई बार ऐसे लोग भी मिलते हैं, जो उच्च पदों पर आसीन होकर भी अपने गलत निर्णयों से समाज को नुकसान पहुंचाते हैं। जीवन में केवल तर्कशील होना ही पर्याप्त नहीं है। व्यक्ति को अपने चरित्र को भी उतना ही महत्त्व देना चाहिए । चरित्र ही वह नींव है, जिस पर जीवन की सच्ची सफलता टिकती है। बुद्धिमत्ता व्यक्ति को ऊंचाई तक पहुंचा सकती है, लेकिन चरित्र किसी व्यक्ति को वहां स्थायी रूप से टिकाए रखता है । अगर चरित्र कमजोर हो गया, तो एक दिन सारी सफलता धराशायी हो सकती है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब