वाणी संयम दिवस

वाणी संयम दिवस

Sep 15, 2023 - 11:33
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वाणी संयम दिवस
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वाणी संयम दिवस

वाणी के गोपन को कृपणता माना गया हैं । एक व्यक्ति बोलता नहीं है तथा ज्ञान की बात दूसरों को बताता नहीं है । इसे भी कार्पणय माना गया है । यह कंजूसी है की जानता हैं , किंतु दूसरों को बताता नहीं हैं । इसलिये बोलना भी जरुरी है । सोचना जैसे मूल्यवान है , वैसे ही बोलना भी मूल्यवान हैं । भाषा का विकास शायद मनुष्य की सबसे बड़ी उपलब्धि हैं । आज तक जो ज्ञान संचित रहा , संरक्षित रहा , वह दो ही चीजों के कारण सुरक्षित रहा है - शब्द और लिपि । यदि शब्द और लिपि का विकास नहीं होता तो एक व्यक्ति का ज्ञान उसी तक सीमित होकर रह जाता । दूसरे के लिये उसका उपयोग नहीं हो पाता ।

सबका बोलने का अलग - अलग सामर्थ्य होता है , किंतु महत्व सिर्फ इसी बात का है कि क्या बोला जा रहा हैं ? कुछ दृष्टियों से न बोलने का भी महत्व हैं , किंतु अनेकांत की दृष्टि से विचार करें तो जितना महत्व नहीं बोलने का है , उससे ज्यादा महत्व बोलने का हो सकता है । प्रश्न है क्या बोलता है ? कुछ लोगों की यह प्रवृति होती है कि वे दिनभर बोलते है , किंतु निकम्मा और निरर्थक बोलते है , निष्प्रयोजन बोलते हैं ।

निरर्थक बोलना अपनी ऊर्जा को नष्ट करना हैं । जो व्यक्ति प्रयोजनवश बोलता हैं , उसका बोलना कभी - कभी मौन से भी ज्यादा महत्व का हों जाता हैं । बिना प्रयोजन बोलने से न बोलना ही अच्छा होता हैं । हम प्रयोजन का निर्धारण करें । हर बात को चिंतन के साथ जोड़े कि हमारा किस विषय पर चिंतन है और हम किस विषय को व्यक्त करना चाहते हैं ? अपनी शालीनता को हम कभी न खोएँ ।कदाचित् किसी ने हमारा नुक़सान किया ।हमारे लाभ में बाधा पहुँचाई।निंदा की, विरुद्ध कुछ कहा, अपमान किया, कहना नही माना आदि - आदि इच्छा के विरुद्ध आचरण बस ऐसे कारणों से हमें आवेश आ जाता है और हम अविचारणीय विचार करते है ।अभाषणीय बोलते है अकरणीय करते हैं और अपनी शालीनता खोते हैं क्यों ? विकसित होते हैं व्यवहार चाहे वाणीगत हो या कर्मगत अथवा चेष्टागत सभी में संयम-सदाचार-सौम्यता - शालीनता-सज्जनता की छाप होनी चाहिए । स्वयं के जीवन को अनुशासित ढंग से जीना वही औरों के मान-सम्मान व शिष्टाचार का ध्यान रखना शालीनता हैं ।

प्रदीप छाजेड़ ( बोंरावड़ )