डी.ए.वी. कॉलेज में अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालयों में सरकार नहीं दे रही कोई सुविधा क्योंकि यहाँ गरीबों के पढ़ते हैं बच्चे
लखनऊ । डी.ए.वी. कॉलेज में अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालयों में गरीब, असहाय, निरीह ,खेतिहर मजदूर ,किसान ,रोजी करने वाले ग़रीबी में जीने वालों के बच्चे वह बच्चियों हमारे विद्यालय में पढ़ते हैं।
जिनके अभिभावक अपने बच्चों को किसी कोचिंग स्कूल या ट्यूशन करने के पैसे नहीं होते स्वयं पढ़े-लिखे नहीं होते है कठोर श्रम करने के बाद नशे में धूत रहते हैं। देश में अंग्रेजों को शिक्षित करने में रुचि नहीं थी ।देश आजाद होने के बाद सरकार के पास पैसे नहीं थे विद्यालय खोलने के लिए तत्समय समाज के प्रबुद्ध वर्ग के द्वारा इन विद्यालयों की स्थापना की गई जिनका देश की शिक्षा व्यवस्था को संचालित करने में विशेष योगदान है ।
आजादी के 75 सालों में शासन अध्यापकों के वेतन के सिवाय कोई धनराशि विद्यालयों में खर्च नहीं किया है ।सरकार व शिक्षा अधिकारियों द्वारा सिर्फ शोषण प्रबंध तंत्र ही किया गया है । एक तरफ अशासकीय विद्यालयों की फीस प्रैक्टिकल की रुपए ₹5 माहवारी शासन द्वारा वर्ष 2010 में फिक्स की जाती है मात्र एक अधिकार पर की सरकार हमारे अध्यापक अध्यापको को वेतन देती है तो शिक्षण शुल्क नहीं दिया जाता है।
प्राइवेट सीबीएसई बोर्ड की फीस रुपए 400 माहवारी है ।ऐसी स्थिति में हमारे विद्यालय कैसे अपने विद्यालय के बच्चों को अन्य बोर्ड के बच्चों के बराबर कंपटीशन में तैयार करेंगे। क्या अध्यापको के वेतन से विद्यालय के बच्चे संपूर्ण रूप से तैयार होंगे या की स्काउट, खेल कूद ,प्रैक्टिकल , वाचनालय ,पुस्तकालय ,कंप्यूटर लैब से बच्चों का सर्वांगीण विकास होगा।
हमारे विद्यालय में गरीबों के बच्चे पढ़ते हैं इसलिए शासन का ध्यान हमारे तरफ नहीं है। सभी शिक्षा अधिकार बड़े-बड़े राजनेता प्राइवेट व सीबीएसई बोर्ड के विद्यालय चला रहे हैं उनके बच्चे भी इन विद्यालयों में नहीं पढ़ते इसलिए भी इस तरफ सरकार का ध्यान नहीं है। एक तरफ ₹100 का बोर्ड फीस रुपए 600 कर सरकार अपना बैंक बैलेंस बना रही है और हम 30 ₹40 मांह पर शिक्षा दे रहे हैं। अनुसूचित जाति के बच्चों की फीस माफ कर दिया गया है।
क्षतिपूर्ति मिल नहीं रही है। हमने 20 बिंदु बार मांग पत्र तैयार किया है जिसमें गरीबों के बच्चों का भी पठन-पाठन सुधर जाएगा प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था सुधर जाएगी गरीबों को अपनी संतानों को एक अच्छे स्कूल पढ़ने का सपना भी पूरा होगा और शासन पर कोई वित्तीय बोझ भी नहीं होगा। विद्यालयों में लिपिक नहीं है ।भवन जर्जर हो रहे हैं। अध्यापकों के सेवानिवृत्ति से रिक्त पदों वर्षों से खाली रहते हैं। जिसमें शिक्षा व्यवस्था ठप हो जाती है ।
तत्काल अध्यापक उपलब्धता हेतु 11 माह की नियुक्ति अध्यापक पदों हेतु मांग की गई है । विद्यालय प्रबंधन समितियां के चुनाव में विभागीय अधिकारियों द्वारा मानसिक उत्पीड़न करने व धन उगाही के विरुद्ध कार्रवाई किए जाने की मांग की गई है । यदि शासन द्वारा हमारी मांगे पूरी नहीं की जाती है ।तो हम धरना प्रदर्शन, भूख हड़ताल करने की योजना पर कार्य कर रहे हैं।
हमें आजाद देश में अपने विद्यालयों को चलाने के लिए आजादी चाहिए सरकार का हस्तक्षेप अध्यापकों के वेतन अनुदान के नाम पर कतई बर्दाश्त नहीं है। ऐसी स्थिति में हम अन्ततः सरकारी अनुदान वापस करने के लिए बाध्य है । मनमोहन तिवारी,अरविंद जी (कार्यकारिणी अध्यक्ष) दिनेश चंद्र सिंह (महासचिव)। लखनऊ से अशोक कुमार कनौजिया