सामान्य प्लास्टिक खाद्य पैकेजिंग में 9,936 हानिकारक रसायन पाए जाते हैं

आप फ्रिज से पहले से बने सैंडविच को पकड़ते हैं, साफ रैप को फाड़ देते हैं, और रैपर को बिना किसी दूसरे विचार के टॉस करते हैं। फिर भी उस फेंकने वाली प्लास्टिक फिल्म में हजारों रसायन होते हैं जो आपके दोपहर के भोजन में स्थानांतरित हो सकते हैं, आपकी आंत में प्रवेश कर सकते हैं, और आपके रक्तप्रवाह में बस सकते हैं। वैज्ञानिकों ने वर्षों से जाना है कि बिस्फेनोल ए (बीपीए) और थैलेट्स जैसे एडिटिव्स कंटेनरों से लीच करते हैं, लेकिन हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि रसायनों के पलायन की सूची अभी तक लंबी है। लंबा भोजन प्लास्टिक के खिलाफ रहता है, जितना अधिक समय उन अणुओं को स्थानांतरित करना पड़ता है, और एक माइक्रोवेव जैप या सूरज से लथपथ पिकनिक केवल प्रक्रिया को गति देता है।
प्लास्टिक में रसायनों का पेचीदा मिश्रण प्लास्टिक लंबी बहुलक श्रृंखलाओं के रूप में शुरू होता है, लेकिन निर्माता उन्हें colorants, सॉफ़्नर, हीट स्टेबलाइजर्स और अन्य एजेंटों के साथ ट्विक करते हैं, इसलिए सामग्री कमांड पर झुकती है, फ्लेक्स करती है या चमकती है। अशुद्धियाँ, उत्पादन से बचे हुए, और प्लास्टिक की उम्र या दरार के रूप में बनने वाले उप-उत्पाद सूची में जोड़ते हैं, मिश्रण बनाते हैं यहां तक कि रसायनज्ञ भी मानचित्र के लिए संघर्ष करते हैं। इनमें से कोई भी अतिरिक्त अणु मजबूती से बंद नहीं है। गर्मी, तेल, पराबैंगनी प्रकाश और यांत्रिक तनाव उन्हें बाहर फिसलने देते हैं। यही कारण है कि बैग, ट्रे, निचोड़ बोतलें, और बोतल लाइनर जैसे खाद्य-संपर्क लेख चिंता की सूची में शीर्ष पर हैं। एक डिलीवरी ट्रक का गर्म इंटीरियर या डिशवॉशर से भाप का जेट काम कर सकता है। हजारों रसायन, एक सैंडविच बैग नॉर्वेजियन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (एनटीएनयू) के जीव विज्ञान विभाग के प्रोफेसर मार्टिन वैगनर ने कहा, "हमें एक ही प्लास्टिक उत्पाद में 9936 विभिन्न रसायन मिले, जिसका उपयोग खाद्य पैकेजिंग के रूप में किया जाता है।" उनकी टीम ने संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, दक्षिण कोरिया, जर्मनी और नॉर्वे में बेची गई 36 रोजमर्रा की वस्तुओं की जांच की, जो एडिटिव्स और ब्रेकडाउन उत्पादों की पहचान करने के लिए उच्च-रिज़ॉल्यूशन मास स्पेक्ट्रोमेट्री स्क्रीन चला रहे थे। शोधकर्ताओं ने उन वस्तुओं से निकालने के लिए सुसंस्कृत मानव कोशिकाओं को भी उजागर किया।
वैगनर ने बताया, "प्लास्टिक के ज़्यादातर उत्पादों में हमें ऐसे रसायन मिले जो हार्मोन और मेटाबॉलिज्म के स्राव को प्रभावित कर सकें." वे सेलुलर परिवर्तन 90 प्रतिशत से अधिक अमेरिकियों में BPA और phthalates दिखाते हुए राष्ट्रीय बायोमोनिटरिंग सर्वेक्षणों के अनुरूप हैं, जो यूरोप और एशिया में एक प्रसार है। हार्मोन और प्लास्टिक रसायन हार्मोन ग्रंथियों और अंगों के बीच निर्देश ले जाते हैं। जब उन निर्देशों को गरबा किया जाता है, तो विकास, प्रजनन और ऊर्जा उपयोग जैसे आवश्यक सेलुलर कार्य लड़खड़ा सकते हैं। एक दूसरे प्रयोग में, NTNU समूह ने 82 जी-प्रोटीन-युग्मित रिसेप्टर्स के खिलाफ प्लास्टिक रसायनों के मिश्रण का परीक्षण किया - अणु जो शरीर के कई आने वाले संकेतों को संभालते हैं। एसोसिएट प्रोफेसर वैगनर ने कहा, "हमने प्लास्टिक उत्पादों से 11 रासायनिक संयोजनों की पहचान की जो इन सिग्नल रिसेप्टर्स को प्रभावित करते हैं." यहां तक कि उन रास्तों के लिए छोटे ट्विक्स भी बाहर की ओर बढ़ सकते हैं। एक प्रयोगशाला विश्लेषण 2018 में दुनिया भर में लगभग 350,000 हृदय संबंधी मौतों से जुड़ा हुआ है, जिसमें मध्यम आयु वर्ग के वयस्क भारी बोझ उठाते हैं। लेखकों ने चेतावनी दी कि phthalates मोटापे और उच्च रक्तचाप से बंधे जोखिम को बढ़ा सकते हैं, यह सुझाव देते हुए कि सही स्वास्थ्य टोल अधिक हो सकता है।
BPA और phthalates से परे जब BPA ने आग लगाई, तो निर्माता संबंधित रसायनों जैसे कि bisphenol S और bisphenol F में स्थानांतरित हो गए। 2024 के एक अध्ययन में पाया गया कि ये प्रतिस्थापन मोटापे और मधुमेह से जुड़े समान सेलुलर व्यवधानों का कारण बनते हैं, जो पानी की बोतलों और बेबी कप पर "बीपीए-फ्री" लेबल द्वारा पेश किए गए आराम को चुनौती देते हैं। 13,000 से अधिक ज्ञात प्लास्टिक रसायनों के साथ - और कई अभी भी असूचीबद्ध - वैज्ञानिकों का कहना है कि एक पदार्थ-दर-पदार्थ दृष्टिकोण नहीं रख सकता है। "इन और पिछले निष्कर्षों से पता चलता है कि प्लास्टिक हमें जहरीले रसायनों के लिए उजागर करता है। वे इस सिद्धांत का समर्थन करते हैं कि हमें इसे सुरक्षित बनाने के लिए प्लास्टिक को फिर से डिज़ाइन करने की आवश्यकता है अनुसंधान दल अब संयंत्र-आधारित पॉलिमर का परीक्षण कर रहे हैं जो जल्दी से टूट जाते हैं फिर भी ऑक्सीजन और नमी को अवरुद्ध करते हैं, खाद्य उत्पादकों द्वारा मूल्यवान दो गुण। सुरक्षित प्लास्टिक के लिए वैश्विक गति 175 देशों के वार्ताकार ओटावा में पिछले साल एक संयुक्त राष्ट्र संधि को आकार देने के लिए मिले थे जिसका उद्देश्य प्लास्टिक प्रदूषण को "स्रोत से समुद्र तक" समाप्त करना था सबसे खतरनाक यौगिकों के लिए योजक डेटाबेस और चरण-आउट पर केंद्रित वार्ता, यह मानते हुए कि एक बोतल समुद्र तक पहुंचने से बहुत पहले प्रदूषण शुरू होता है।
प्रतिनिधि इस साल के अंत में पांचवें सत्र में पाठ को अंतिम रूप देने की उम्मीद करते हैं, 2026 में औपचारिक गोद लेने के लिए मंच निर्धारित करते हैं। जबकि संधि इंच आगे, कुछ नियामक अपने दम पर आगे बढ़ रहे हैं। यूरोपीय रसायन एजेंसी ने दर्जनों प्लास्टिसाइज़र को बहुत अधिक चिंता के पदार्थों के रूप में सूचीबद्ध किया है, और कई यू.एस. राज्य अब खाद्य-संपर्क सामग्री में बीपीए पर प्रतिबंध लगाते हैं। उद्योग व्यापार समूह, इस बीच, सख्त प्रकटीकरण नियमों का अनुमान लगाने के लिए एडिटिव्स के खुले रजिस्ट्रियों का निर्माण कर रहे हैं, यह संकेत देते हुए कि निर्माता भी क्षितिज पर परिवर्तन देखते हैं। अब क्या होता है? शोधकर्ता कई अज्ञात प्लास्टिक रसायनों को मैप करने के लिए दौड़ रहे हैं जो मानक परीक्षण याद करते हैं। उच्च-रिज़ॉल्यूशन मास स्पेक्ट्रोमेट्री, मशीन-लर्निंग मॉडल जो जैविक गतिविधि की भविष्यवाणी करते हैं, और खुले डेटाबेस का विस्तार उस अंधे स्थान को सिकोड़ रहे हैं, लेकिन कानून अक्सर प्रयोगशाला के काम को वर्षों तक पीछे छोड़ते हैं। इस बीच, व्यावहारिक कदम जोखिम को ट्रिम कर सकते हैं: डिब्बाबंद पर ताजा या जमे हुए खाद्य पदार्थों का चयन, कांच में बचे हुए माइक्रोवेव, स्टेनलेस स्टील के लिए खरोंच वाले नॉन-स्टिक पैन की अदला-बदली, और लंबी ड्राइव से पहले उस नई कार की गंध को हवा देना। छोटी चालें मायने रखती हैं, क्योंकि सबूत से पता चलता है कि एक नरम प्लास्टिक की बोतल से हर घूंट के साथ जोखिम बढ़ जाता है और हर काटने जो प्लास्टिक-लाइन कन्वेयर को नीचे ले जाता है। रैपर को सेकंड में उछाला जा सकता है, लेकिन इसकी केमिस्ट्री शरीर में सालों तक घूम सकती है। विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्राचार्य शैक्षिक स्तंभकार प्रख्यात शिक्षाविद् स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब २ आईटी क्षेत्र के कारण बड़े पैमाने पर बेरोजगारी फैलेगी विजय गर्ग टेक्नोलॉजी की एक खासियत होती है कि उसमें नई-नई खोजें और इनोवेशन होती रहती हैं।
अगर ऐसा न हो तो वह मृतप्राय हो जायेगी। इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के बारे में यह बात पूरी तरह लागू होती है और इसमें लगातार इनोवेशन होती रही हैं। इससे यह विधा और भी निखरती गई। लेकिन अब इसमें जो बदलाव और खोजें होती जा रही हैं वे डराने वाली हैं। इससे फायदे तो बहुत हैं लेकिन मानव श्रम को यह सिमटा देगी। यानी परंपरागत रोजगार के क्षेत्र में यह नकारात्मक रोल निभाएगी। दुनिया भर में लाखों लोग अपनी नौकरियों से हाथ धो बैठेंगे। यह सब आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी एआई के कारण होगा जिसे इस सदी की सबसे बड़ी खोज माना जा रहा है। यह मानव की इतनी ज्यादा सहायता करेगी कि इससे संबंधित क्षेत्र में मैनपॉवर की भारी कटौती हो जायेगी। आईटी कंपनियां इस समय पसोपेश में हैं और वे वक्त की नजाकत भांपने का प्रयास कर रही हैं। भारत आईटी सोर्सिंग का दुनिया का सबसे बड़ा केन्द्र है और यहां की कंपनियां इसका फायदा उठा रही हैं तथा बड़े पैमाने पर रोजगार भी दे रही हैं। अब यहां एआई की धमक साफ दिख रही है। भारत की सबसे बड़ी आईटी कंपनी टीसीएस ने अपने कर्मचारियों या यूं कहें कि आईटी प्रोफेशनल्स की सैलरी बढ़ोतरी पर रोक लगा दी है। कंपनी अमेरिका तथा चीन में एआई के बढ़ते उपयोग की समीक्षा कर रही है। देख रही है कि वहां इसका कितना उपयोग होता है और हमें उससे कितना नफा-नुकसान होगा। सभी आईटी कंपनियां ही नहीं बल्कि बड़ी-बड़ी अन्य कंपनियां भी एआई के पूरी तरह से कार्यान्वित होने का इंतजार कर रही हैं जिसकी खूबी है कि वह कई-कई लोगों का काम कर लेती है। इसके आने के बाद क्या होगा, इस बारे अभी अंदाजा ही लगा सकते हैं। हमारी आईटी कंपनियां ज्यादातर बैक एंड के रूप में काम करती हैं और विदेशी कंपनियों के ऑर्डर पर निर्भर रहती हैं। उन्हें बहुत तरह के ऑर्डर मिलते हैं लेकिन ये सभी हाई एंड नहीं होते। इनमें से बहुत से काम ऐसे मिलते हैं जिनके लिए ज्यादा टैलेंट की जरूरत नहीं है।
सामान्य से सॉफ्टवेयर इंजीनियर उसे करते हैं और उनकी तादाद बहुत ज्यादा होती है। भारतीय आईटी कंपनियों में ज्यादातर कर्मी इसी प्रकार के होते हैं जिनकी नौकरियों पर अब एआई के कारण खतरा मंडरा रहा है। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि एआई के कारण कई तरह के ज़ॉब्स खतरे में पड़ जायेंगे क्योंकि वह उन्हें बड़ी सफाई और बहुत तेजी से करने में समर्थ होती है। इंडियाटेक के एमडी रमेश कैलासम बताते हैं कि ये छोटे-छोटे जॉब्स चले ही जाएंगे क्योंकि एआई बहुत आसानी से यह सब कर देगा। आईटी कंपनियों में कई ऐसे ज़ॉब्स हैं जो निचले लेवल के कर्मचारी करते हैं। इन्हें एआई आसानी से कर लेगा। वह इसके लिए कोडिंग का उदाहरण देते हैं जिसे इन कंपनियों में सॉप्टवेयर इंजीनियर करते हैं लेकिन एआई बड़ी आसानी से यह कर लेगा। वहीं, बहुत से टास्क ऐसे हैं जो कम समय व खर्च में एआई कर सकता है। ऐसे में विदेशी कंपनियों से इस तरह के जॉब्स के ऑर्डर बंद होने का खतरा मंडरा रहा है। वहीं उनका कहना है कि जब भारत में कंप्यूटरीकरण शुरू हुआ था तो ऐसे ही हालात थे और कहा जा रहा था कि बड़े पैमाने पर बेरोजगारी फैलेगी क्योंकि लोग निकाले जायेंगे। कुछ समय तक ऐसा लगा लेकिन बाद में कंप्यूटरीकरण की वज़ह से लाखों नये रोजगार सृजित हुए और देश ने तरक्की की। आने वाले समय में एआई भी ऐसे ही हालात पैदा करेगी। हमारी कंपनियों और यहां तक कि सरकार को भी प्रयास करना होगा कि कैसे रोजगार बढ़े। एमएनसी निवेश बैंक और वित्तीय सेवा प्रदाता कंपनी मोरगैन स्टेनली का कहना है कि यह संक्रमण का दौर है। ऐसे दौर पहले भी आये थे और उनका मुकाबला किया गया। 2016-17 में भी ऐसा हुआ था और अभी उसी दौर से हम गुजर रहे हैं। आईटी सेक्टर पर इसका असर ज्यादा पड़ रहा है और उनके प्रॉफिट में या तो कमी आ रही है या फिर वे स्थिर हैं।
यह उनके लिए चिंता का विषय है। एक और महत्वपूर्ण तथ्य है कि इस समय वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता है। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका मंदी के दौर से गुजर रही है। नये राष्ट्रपति डोनाॅल्ड ट्रंप के अनुदारवादी कदमों से वहां की अर्थव्यवस्था पर भारी असर पड़ रहा है। इस सबसे न तो दुनिया और न ही भारत अछूता रह सकता है। इसका सबसे बड़ा असर हमारी आईटी इंडस्ट्री पर पड़ रहा है और आगे भी पड़ेगा क्योंकि हम सबसे बड़े आईटी सपोर्ट प्रदाता हैं। हमारी यह इंडस्ट्री विदेश, खासकर अमेरिका पर बहुत ज्यादा निर्भर है। इसके अलावा दुनियाभर में युद्ध के जो हालात हैं वे भी वैश्विक अर्थव्यवस्था को मंदी की ओर धकेल रहे हैं। इन सभी का असर आईटी इंडस्ट्री पर पड़ रहा है। उनके शेयरों की स्थिति यही बयान कर रही है। इनमें पिछले कुछ वर्षों से कोई तेजी नहीं आ रही है और वे नीचे की ओर ही जाते दिख रहे हैं। उन्हें अपने लाभ के बारे में किसी भी तरह का अनुमान लगाने में जोखिम दिख रहा है। यानी राजस्व के मामले में एक तरह की अनिश्चितता है। यह एक बड़ा कारण है कि कई आईटी कंपनियां अपने कर्मचारियों के वेतन वृद्धि के बारे में बात नहीं कर रही हैं और आने वाले समय में छंटनी ही कर सकती हैं। एआई और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता उनके शेयरों पर असर डाल रही है। इसका खमियाजा शुरुआती दौर में कर्मचारी ही भुगतेंगे। लेकिन फिलहाल बहुत निराश होने जैसी स्थिति नहीं है। कंपनियां खुद बदलाव का आकलन कर रही हैं और कुछ बड़े कदम जरूर उठायेंगी। विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब ----+++++;++++++ 3) बुनियादी शिक्षा से गायब कृषि ज्ञान विजय गर्ग शरीर और मन के स्वास्थ्य के लिए सर्वाधिक आवश्यक पर्यावरण है। इसमें भी सबसे महत्त्वपूर्ण है जल और भोजन यह मानव को तभी सहजता से उपलब्ध हो सकता है, जब कृषि की समुचित व्यवस्था हो। इस तरह मनुष्य के जीवन में पारंपरिक कृषि व्यवस्था अनिवार्य है। इस देश में राजनीतिक अकर्मण्यता, भ्रष्टाचार और आधुनिक विकास के तकनीकी कोण पर ही केंद्रित रहने की शासकीय महत्त्वाकांक्षा ने उद्योगों को प्रश्रय दिया और इसकी तुलना में कृषि क्षेत्र को उपेक्षित छोड़ दिया गया। खेती-किसानी की ऐसी उपेक्षा का प्रभाव भारतीय शिक्षा नीति पर पड़ा। फलतः प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रमों में कृषि से संबंधित विषय-वस्तु अदृश्य है। 'अ' से अमरूद और 'आ' से आम के साथ आरंभ होनेवाली प्राथमिक शिक्षा में कृषि के बारे में ज्यादा कुछ नहीं है।
यदि छोटी आयु से ही कृषि ज्ञान-विज्ञान नहीं पढ़ाया जाएगा, बड़ी कक्षाओं में जाने पर बच्चे इस विषय में रुचि कैसे दिखाएंगे। पहली से लेकर बारहवीं कक्षा तक पूरे बारह वर्षों की अवधि में जब बच्चों को कृषि और इसके विभिन्न उपक्रमों के बारे में पढ़ाया जाएगा, व्यावहारिक शिक्षण-प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा और कृषि - कार्यों से संबंधित विभिन्न कार्यशालाओं में जाने का अवसर उपलब्ध कराया जाएगा, तभी वे कृषि कार्यों के बारे में अपेक्षित ज्ञान से संचित हो पाएंगे। ऐसा होने पर ही उनका मन खेती से सिंचित हो पाएगा। | बच्चे यदि शुद्ध आहार-विहार अपनाने के प्रति जागरूक नहीं हैं, तो इसका प्रमुख कारण यही है कि उन्हें बालपन से ही विद्यालयों में इस संबंध में शिक्षित नहीं किया गया। इसीलिए उन्हें कृषि वर्ग की प्रमुख फसलों, खाद्यान्नों, फल-फूल, वन-वनस्पतियों और औषधियों के गुण-दोषों की जानकारी भी नहीं है और संभवतः यही कारण है कि वे खानपान की बुरी आदतों से ग्रस्त हैं। घर या विद्यालयों में उन्हें इस संदर्भ में औपचारिक ढंग से ही बताया जाता है। अभिभावक, शिक्षक और नीति- नियंता ही जब कृषि क्षेत्र की उपेक्षा कर रहे हों, तो बच्चे इस बारे में अपेक्षा के अनुरूप ज्ञान कैसे प्राप्त कर सकते हैं। इस काल के मनुष्य जीवन का दुर्भाग्य ही है कि उद्योगों, कार्यालयों और प्रगति संबंधी विभिन्न परियोजनाओं के लिए आए दिन वनक्षेत्र काटे जा रहे हैं। इस तरह से रोजाना ही कृषि क्षेत्र में कमी हो रही है। प्रकृति का असंतुलन कई दशकों से सार्वजनिक चिंता के केंद्र में है ही। प्राकृतिक असंतुलन के कारण जनजीवन प्रतिक्षण असुरक्षित होता जा रहा है।
ऋतु की विकृतियां भयंकर रूप में सामने आ रही हैं। धरती, आकाश, जल, वायु और अग्नि ये सभी तत्त्व हर दिन मलिन हो रहे हैं। परिणामस्वरूप धरती का फसल चक्र बिगड़ चुका है। फसलों की प्राकृतिक शक्ति लगभग समाप्त हो चुकी है। खाद्यान्न उत्पादन पूरी तरह कृत्रिम, रसायनमिश्रित और विषैले उर्वरकों व खाद पर निर्भर हो चुका है। पारंपरिक और नैसर्गिक खाद्यान्न बीज विलुप्त होने की कगार पर हैं। ग्राम, ग्राम्य-जीवन, ग्रामीण व्यवस्था अपने अंतिम स्तर पर हैं। विज्ञान अभिशाप बन रहा है। चारों ओर आधुनिक जीवन द्वारा उत्पन्न की गई समस्याओं, रोगों और महामारियों की असुरक्षा फैली है। जीवन का स्वाभाविक आनंद क्या होता है, इससे मनुष्य अनभिज्ञ है। प्रत्येक खाद्य और पेय पदार्थ शरीर का पोषण करने के बजाय उसे असाध्य रोगों से भर रहा है। देश में जितने भी कृषि विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय और अन्य शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थान हैं, उनमें कृषि संबंधी विषयों का पठन- पाठन तो हो रहा है और यथासंभव प्रायोगिक प्रशिक्षण भी हो रहे हैं, पर वे कहीं न कहीं प्राकृतिक तत्त्व ज्ञान से रहित हैं। ऐसे पठन-पाठन कृषि क्षेत्र के उत्थान के लिए येन-केन-प्रकारेण कृत्रिम कृषिकर्म की जानकारी दी रही है। बीज, खाद और फसलों के रक्षण-संरक्षण और उत्पादन के लिए रासायनिक पदार्थों का सहारा लिया जा रहा है। कृषि संस्थानों, प्रतिष्ठानों और उद्यमों में बीजों पर प्रयोग का जैसा अभ्यास कुछ दशकों से किया जा रहा है, उससे कृषि उत्पादों में कोई न कोई हानिकारक तत्त्व स्थायी रूप में पहुंच रहा है।
चूंकि यह प्रक्रिया वर्षों पुरानी हो चुकी है और कृषि से जुड़े हर व्यक्ति को इसमें अधिक शारीरिक व मानसिक श्रम नहीं करना पड़ता, इसलिए इसमें उत्पाद को पूर्णतः हानिरहित करने के नवीन प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। आखिर में इसके अप्रत्याशित दुष्परिणाम को मनुष्य की काया ही झेल रही है। इसके अलावा व्यापारी गाँवों, नगरों महानगरों के असंगठित क्षेत्रों में मिलावटी और जहरीला अनाज बेच रहे हैं। अनाज होने वाले प्राणघाती रसायनों का कारोबार भी उसी मात्रा में बढ़ रहा है। ऐसी मानव विरोधी व्यापारिक, औद्योगिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने और इनका नियंत्रण करने के बजाय सरकारें मिलावटी अनाज खाकर स्थायी रूप में बीमार रहने वाले लोगों का इलाज करने की आड़ में बेहिसाब निजी अस्पताल खोलने को प्रोत्साहित कर रही हैं। बच्चों को कृषि शिक्षा से वंचित रख कर, उन्हें मिलावटी अनाज पर निर्भर करके और आखिर में जहरीले भोजन से क्षतिग्रस्त अंगों के इलाज के लिए निजी अस्पतालों की मर्जी पर छोड़कर किस तरह की जिम्मेदारी निभाई जा रही है? यह सवाल देश के हर संवेदनशील व्यक्ति को बुरी तरह कचोट रहा है। जब मनुष्य का तन-मन अप्राकृतिक अनाज खाकर अस्वस्थ होगा, तो समाज परिवार में दुर्गुणों से युक्त आचार-व्यवहार ही पनपेगा और फैलेगा। सरकारों को ऐसी मानव विरोधी, अस्वास्थ्यकर और जीवनघाती परिस्थिति खत्म करने के लिए जरूरी कदम उठाने होंगे। इसकी शुरुआत प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में प्रकृति, पर्यावरण व कृषि कार्यों से संबंधित विषयों की बढ़ोतरी करके करनी होगी। प्रतिवर्ष बारहवीं परीक्षा उत्तीर्ण कर कई विद्यार्थी प्रौद्योगिकी और यांत्रिकी जैसे क्षेत्रों के शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए कालेजों में प्रवेश ले रहे हैं।
मानविकी, वानिकी, कृषि आदि जीवन से आवश्यक रूप में और सीधे जुड़े क्षेत्रों में उच्चतर शिक्षा प्राप्त करने की अरुचि विद्यार्थियों में आरंभ से ही रही है। विद्यालयों के पठन-पाठन माहौल को इस सीमा तक बदलना होगा कि बच्चे प्राकृतिक जीवन की महत्ता से परिचित हो सकें। उन्हें खेती- किसानी के पुस्तकीय सिद्धांतों के साथ-साथ व्यावहारिक कृषि कार्यों से भी जोड़ना होगा। जब आने वाले पचास सौ वर्षों तक इस प्रकार का विद्यालयी अभ्यास हर वर्ष एक दायित्व के साथ संपन्न होगा, तब आशा की जा सकती है कि मनुष्य को शुद्ध आहार प्राप्त होगा। प्राकृतिक मनुष्य-जीवन की पुनस्थापना के लिए अब यही उपाय शेष है। यह उपाय भी विश्व की समग्र प्राकृतिक पारिस्थितिकी को तभी पुनर्जीवित कर सकेगा जब पूरी दुनिया में प्राथमिक शिक्षा में कृषि के महत्त्व, उपयोगिता और विशेषता पर प्रकाश डाला जाएगा।