उपग्रह प्रक्षेपण से बढ़ता प्रदूषण

Feb 14, 2025 - 11:24
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उपग्रह प्रक्षेपण से बढ़ता प्रदूषण

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अंतरिक्ष अन्वेषण एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इसने मानव जाति को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। राकेट प्रक्षेपण के माध्यम से उपग्रह और अन्य उपकरणों को अंतरिक्ष में भेजना आज के युग की आवश्यकता बन गई है। चाहे यह संचार के लिए हो, मौसम का अध्ययन हो ग्रहों पर जीवन की खोज हो। राकेट प्रक्षेपण ने मानवता को नई संभावनाओं से परिचित कराया है। हालांकि इसके साथ ही यह प्रक्रिया पर्यावरण के लिए गंभीर समस्याएं भी पैदा करती है। प्रक्षेपण के दौरान वायुमंडलीय प्रदूषण, ओजोन परत का क्षरण, ध्वनि प्रदूषण, जल और मिट्टी का प्रदूषण और अंतरिक्ष में मलबा जैसी समस्याएं अब सामने आ रही हैं। इनको समझना और उनका समाधान निकालना आवश्यक है, ताकि तकनीकी प्रगति और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित किया जा सके। राकेट को अंतरिक्ष में भेजने के लिए बहुत शक्तिशाली ईंधन का उपयोग किया जाता है। यह ईंधन जलता है, तो बड़ी मात्रा में गैसें और कण उत्सर्जित होते हैं। इनमें कार्बन डाइआक्साइड और अन्य हानिकारक गैसें शामिल होती हैं। ठोस ईंधन के जलने पर कार्बन और नाइट्रोजन आक्साइड उत्सर्जित होते हैं, जो प्रदूषण का कारण बनते हैं।

तरल हाइड्रोजन और आक्सीजन उपयोग करने वाले राकेट कम प्रदूषण करते हैं, लेकिन ये अभी पूरी तरह साफ नहीं हैं। ओजोन परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों (यूवी) को अवशोषित करती है, जो मानव, जीव-जंतुओं और पौधों के और पौधों के लिए घातक होती हैं। इसे पृथ्वी के सुरक्षा कवच के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यह है, हमारे ग्रह ग्रह को प्राकृतिक आपदाओं और जैविक क्षति से बचाती है। राकेट प्रक्षेपण के दौरान ठोस 'प्रोपेलेंट्स' में उपयोग किए जाने वाले क्लोरिन- आधारित यौगिक ऊपरी वायुमंडल में ओजोन परत को क्षति पहुंचाते हैं। क्लोरीन अणु ओजोन अणुओं को तोड़ कर पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी तक पहुंचने देते हैं, जो स्वास्थ्य और । और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए हानिकारक है। राकेट प्रक्षेपण के दौरान नाइट्रोजन आक्साइड गैसें पैदा होती हैं, जो ओजोन के साथ प्रतिक्रिया कर उसे नष्ट करती हैं। ये गैसें कई वर्षों तक वर्षा तक वायुमंडल में बनी रह सकती हैं। प्रक्षेपण के दौरान निकली गैसें सीधे ऊपरी वायुमंडल प्रवेश करती हैं, जहां ओजोन परत को खुद को पुनर्निर्मित करने का समय नहीं मिलता। बार-बार प्रक्षेपण से यह समस्या और बढ़ जाती है। ठोस और तरल ईंधनों के जलने से कालिख और ब्लैक कार्बन कण पैदा होते हैं, जो ओजोन परत के परत के नवीकरण को रोकते हैं। अंतरिक्ष अनुसंधान में वृद्धि के कारण राकेट प्रक्षेपण की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यह ओजोन परत के लिए दीर्घकालिक खतरा है, 1

 है, क्योंकि प्रदूषण का संचय बढ़ता जा रहा है। राकेट प्रक्षेपण के दौरान उत्पन्न ध्वनि का स्तर अधिक होता है, जो मानव और वन्यजीवों दोनों के लिए हानिकारक है। यह स्थानीय पर्यावरण पर गहरा प्रभाव डालता है और वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास को बाधित करता है। प्रक्षेपण स्थल के आसपास के जानवर और पक्षी तीव्र ध्वनि से भयभीत हो जाते हैं, जिससे उनके व्यवहार और प्रजनन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ध्वनि तरंगों की तीव्रता के कारण आसपास के पेड़ों और वनस्पतियों को भी नुकसान हो सकता है। अत्यधिक ध्वनि हानिकारक होती है। यह सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचा सकती है। प्रक्षेपण स्थल पर मौजूद लोगों को मानसिक तनाव, अनिद्रा और अन्य शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। अत्यधिक तीव्र ध्वनि तरंगें आसपास की इमारतों और संरचनाओं को क्षति पहुंचा सकती हैं। जब राकेट उड़ान भरता है, तो उसका इंजन बहुत अधिक गर्मी और गैस उत्सर्जित करता है, जिसमें हानिकारक रसायन और भारी धातुएं होती हैं। ये रसायन जमीन पर गिर कर मिट्टी में मिल जाते हैं। जिससे उसकी प्राकृतिक गुणवत्ता को नुकसान पहुंचता है। राकेट ईंधन में मौजूद हानिकारक रसायन (जैसे, हाइड्रोक्लोरिक एसिड और भारी धातुएं) मिट्टी की संरचना को बदल देते हैं। इन रसायनों के कारण मिट्टी का पीएच स्तर असंतुलित हो सकता है, जिससे वहां की खेती और पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है। प्रदूषित मिट्टी में सूक्ष्म जीवों और कीड़ों के जीवित रहने में कठिनाई । होती है, जिससे जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर असर पड़ता है।

 इन रसायनों का असर मिट्टी पर लंबे समय तक बना रह सकता है, जिससे जमीन की उपजाऊ क्षमता कम हो जाती है। वहीं प्रक्षेपण से अंतरिक्ष मलबे का बनना एक बड़ी समस्या जब कोई राकेट अंतरिक्ष में भेजा जाता है, तो उसके अलग-अलग हिस्से जैसे बस्टर जसे बूस्टर और उपग्रह को अंतरिक्ष में ले जाने वाले अन्य उपकरण, अपने काम पूरे करने के बाद अलग हो । इनमें से कुछ पृथ्वी पर वापस गिरते हैं, लेकिन कई टुकड़े अंतरिक्ष में ही घूमते रहते हैं। पुराने और निष्क्रिय उपग्रह समय के साथ टूटने लगते हैं, जिससे छोटे-छोटे टुकड़े बन जाते हैं। जब दो उपग्रह या मलबे आपस में टकराते हैं, तो उनके टुकड़े और ज्यादा मलबा बनाते हैं। " राकेट और उपग्रह भेजने के के लिए अंतरराष्ट्रीय नियम और दिशा-निर्देश बनाए गए हैं, ताकि मलबे की समस्या को नियंत्रित किया सके। प्रक्षेपण स्थल के चारों ओर ध्वनि अवरोधक बनाए जा सकते हैं। राकेट प्रक्षेपण के दौरान जलवाष्प का उपयोग ध्वनि तरंगों की तीव्रता को कम करने के लिए किया जाता है। यह तरीका नासा और अन्य एजेंसियां अपनाती हैं। क्लोरीन आधारित ठोस ईंधनों को नाइट्रोजन आधारित यौगिकों से प्रतिस्थापित करना ओजोन परत की सुरक्षा के लिए एक बड़ा कदम है। वैज्ञानिकों ने कई नवाचार किए। जिनका उद्देश्य प्रक्षेपण के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना है। हरित ईंधन के विकास और उपयोग से प्रदूषण को काफी हद तक कम किया जा सकता है। जैव ईंधन, तरल हाइड्रोजन और तरल आक्सीजन जैसे ईंधन न केवल कम विषैले होते हैं, बल्कि इनके जलने से न्यूनतम प्रदूषण होता है।

राकेट प्रक्षेपण स्थलों को ऐसे क्षेत्रों स्थापित किया जाए, जहां पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव पड़े, जैसे समुद्र तट के नजदीक । । संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र और घनी आबादी वाले क्षेत्रों से प्रक्षेपण स्थलों को दूर रखना चाहिए। स्पेसएक्स जैसे संगठनों ने पुनः उपयोग योग्य राकेट विकसित किए हैं, जैसे फाल्कन 9, यह तकनीक हर प्रक्षेपण के लिए नए राकेट की जरूरत को समाप्त करती है। निकट राकेट प्रक्षेपण आधुनिक विज्ञान और अंतरिक्ष अन्वेषण की रीढ़ है, लेकिन इसके पर्यावरणीय प्रभाव को अनदेखा नहीं किया जा सकता। प्रक्षेपण से उत्पन्न प्रदूषण को नियंत्रित करना कोई सरल कार्य नहीं है, लेकिन यह असंभव भी नहीं। वायुमंडलीय प्रदूषण, ओजोन परत का क्षरण, जल और मिट्टी का प्रदूषण और अंतरिक्ष मलबा जैसी समस्याओं से निपटने के लिए हमें तकनीकी नवाचार, नीति निर्माण और र वैश्विक श्वक सहयोग की आवश्यकता है। नवीन प्रौद्योगिकियां, जैसे : उपयोग योग्य राकेट और और 'ग्रीन प्रोपेलेंट्स' तथा पर्यावरणीय क्षति को कम कोक करने के लिए क्रांतिकारी कदम हैं। स्पेसएक्स, नासा, और अन्य अंतरिक्ष एजेंसियां इस दिशा में निरंतर प्रयासरत हैं। अंतरराष्ट्रीय सहयोग और नियमों का पालन यह सुनिश्चित करेगा कि सभी देश पर्यावरण संरक्षण के महत्त्व को समझें और उनका अनुपालन करें। आने वाले समय में प्रौद्योगिकी और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। यह न केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्राचार्य शैक्षिक स्तंभकार गली कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब [1) मनुष्य के अस्तित्व के लिए चुनौती बनते हालात विजय गर्ग आज के समय में पर्यावरण, जैव विविधता और प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की जो स्थिति बनी है, वह मानव के असीमित लोभ और संसाधनों की अंधी चाहत का परिणाम है। मौसम में आए अत्यधिक बदलाव, पारिस्थितिकी तंत्र में गिरावट और आर्थिक-सामाजिक ढांचे में संकट इन सबका प्रत्यक्ष परिणाम हैं।

 यह बदलाव अचानक नहीं हुआ है, बल्कि वर्षों से पर्यावरणविद, हमें चेतावनी दे रहे थे कि यदि हमने समय रहते कदम नहीं उठाए, तो परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं। हम अब उस स्थिति में पहुंच चुके हैं जहां से वापसी करना बहुत मुश्किल है। दुनिया के स्तर पर जैव विविधता की बात करें तो अमेरिका की ए एण्ड एम यूनिवर्सिटी स्कूल आफ पब्लिक हैल्थ के एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि पेड़-पौधों की मौजूदगी लोगों को मानसिक तनाव से मुक्ति दिलाने में सहायक होती है। मानसिक रोगियों पर किये गये अध्ययन में कहा गया है कि हरियाली के बीच रहने वाले लोगों में अवसाद की आशंका बहुत कम पायी गयी है। वहीं, जैव विविधता वाली ज़मीन पर कब्ज़े की घटनाओं में तीव्र वृद्धि हो रही है, खासकर 2008 के बाद से। ये घटनाएं विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों में हो रही हैं, जिनका असर वैश्विक स्तर पर भूमि असमानता, खाद्य असुरक्षा, किसान विद्रोह और ग्रामीण पलायन में वृद्धि कर रहा है। इस प्रवृत्ति ने छोटे और मंझले खाद्य उत्पादकों को संकट में डाल दिया है। मानसिक स्वास्थ्य की विशेषज्ञ प्रोफेसर एंड्रिया मेचली के अनुसार, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता की तेज़ गिरावट से सिर्फ प्राकृतिक पर्यावरण नहीं, बल्कि उसमें रहने वाले लोगों का मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है। बीते दो दशकों में समूची दुनिया में 78 मिलियन हेक्टेयर पहाड़ी जंगल नष्ट हो गये हैं। जबकि पहाड़ दुनिया के 85 फीसदी से ज्यादा पक्षियों, स्तनधारियों और उभयचरों के आश्रय स्थल हैं। गौरतलब यह है कि हर साल जितना जंगल खत्म हो रहा है, वह एक लाख तीन हजार वर्ग किलोमीटर में फैले देश जर्मनी, नार्डिक देश आइसलैंड, डेनमार्क, स्वीडन और फिनलैंड जैसे देशों के क्षेत्रफल के बराबर है। लेकिन दुख और चिंता की बात यह है कि इसके अनुपात में नये जंगल लगाने की गति बेहद धीमी है।

 जहां तक धरती का फेफड़ा कहे जाने वाले दक्षिण अमेरिका के अमेजन बेसिन के बहुत बड़े भूभाग पर फैले अमेजन के वर्षा वनों का सवाल है, वे विनाश के कगार पर हैं। बढ़ते तापमान, भयावह सूखा, वनों की अंधाधुंध कटाई और जंगलों में आग की बढ़ती घटनाओं के चलते अमेजन के जंगल खतरे के दायरे में हैं। दरअसल, दुनिया में जंगलों का सबसे ज्यादा विनाश ब्राजील में हुआ है और यह सिलसिला आज भी जारी है। उसके बाद डेमोक्रेटिक रिपब्लिक आफ कांगो और बोलीविया का नम्बर आता है। यदि मैरीलैंड यूनिवर्सिटी और वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट के ग्लोबल वाच की हालिया रिपोर्ट की मानें तो दुनियाभर में साल 2023 में 37 लाख हेक्टेयर जंगल नष्ट हो गये। भारत में बीते 30 वर्षों में जंगलों की कटाई में भारी बढ़ोतरी हुई है। भले ही इसके प्राकृतिक कारण हों या मानवीय। इसमें देश के पांच राज्यों यथा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तराखंड, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश शीर्ष पर हैं जहां देश में आग से सबसे ज्यादा जंगल तबाह हुए हैं। यह सिलसिला आज भी जारी है। यदि ग्लासगो में हुए कॉप-26 सम्मेलन की बात करें तो इसमें दुनिया के 144 देशों ने 2030 तक इन जंगलों को बचाने का संकल्प लिया था। गौरतलब है कि यदि दुनिया में वनों की कटाई पर रोक लगायी जाती है तो एक अनुमान के आधार पर उस हालत में 900 अरब डालर की रकम खर्च होगी। जबकि अभी दुनिया में जंगलों को बचाने पर सालाना तीन अरब डालर की राशि खर्च की जा रही है। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की कंजरवेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट की वैज्ञानिक के अनुसार जंगलों को बचाने के लिए दुनियाभर की सरकारों को सालाना 130 अरब डालर खर्च करने होंगे। यदि 2030 तक वनों की कटाई पर काबू नहीं पाया गया तो आने वाले समय में यह खर्च कई गुणा बढ़ जायेगा और कार्बन उत्सर्जन में बढ़ोतरी से पर्यावरणीय समस्याएं और विकराल रूप धारण कर लेंगी। चिंता की बात यह है कि वैज्ञानिकों की इस बारे में एकमुश्त राय है कि ऊर्जा, उत्पाद और दूसरी सामग्रियों के लिए दुनियाभर की कंपनियों की नजर जैव विविधता पर है। अनुमान है कि जैव विविधता के दोहन के लिए दुनियाभर के देश 2030 तक 400 अरब डालर का निवेश करेंगे जो मौजूदा समय से 20 गुणा ज्यादा होगा। दरअसल, जैव विविधता को संरक्षित करने में वन की उपयोगिता जगजाहिर है लेकिन विडम्बना है कि हम उन्हीं के साथ खिलवाड़ कर अपने जीवन के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। बीते तीन दशक इसके सबूत हैं कि उनमें हमने तकरीबन एक अरब वन मानवीय स्वार्थ के चलते खत्म कर दिये हैं। हम यह क्यों नहीं समझते कि यदि अब भी हम नहीं चेते तो हमारा यह मौन हमें कहां ले जायेगा

 और क्या मानव सभ्यता बची रह पायेगी? विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्राचार्य शैक्षिक स्तंभकार गली कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब [2) डिजिटल उपवास की सार्थक मुहिम विजय गर्ग किसी भी सकारात्मक कार्य को करने के लिए साझा मुहिम की दरकार होती है। मिलजुलकर की गई कोशिशें न केवल समग्र परिवेश की भागीदारी सुनिश्चित करती हैं, बल्कि सफल भी होती हैं। तकनीक के लती बनते बच्चों - बड़ों के बढ़ते आंकड़ों के चलते डिजिटल उपवास के मोर्चे पर भी अब मिलकर कदम उठाने की स्थितियां बन गई हैं। बीते दिनों महाराष्ट्र के सांगली जिले के एक गांव के लोगों ने स्क्रीन से दूरी बनाने को लेकर एक सार्थक पहल की शुरुआत की। डिजिटल डिटाक्स के माध्यम से स्क्रीन समय घटाने की राह चुनी। गौरतलब है कि मोहित्यांचे वडगांव गांव में हर रात सात बजे सायरन बजते ही लोग स्मार्ट फोन और दूसरे इलेक्ट्रानिक उपकरण बंद कर देते हैं। तकनीक के नियत और सधे इस्तेमाल की यह मुहिम सचमुच महत्वपूर्ण है। सामाजिक मेलजोल को बढ़ावा देने के लिए डिजिटल गतिविधियों में बीत रहे असीमित समय से बढ़ती स्वास्थ्य समस्याओं से बचाने वाली है। भारत ही नहीं, दुनिया के हर हिस्से में बसे लोगों के जीवन का ऐसा कोई पहलू नहीं, जो वर्चुअल व्यस्तता के दुष्प्रभाव से बचा हो। लोग तकनीक के इस जाल में फंसकर अपनों से दूर हो रहे हैं। अपने आप को खो रहे हैं। क्लिक क्लिक की धुन में जीवन की सहजता भुला बैठे हैं। स्क्रीन पर हर पल कुछ न कुछ देखते हुए अपने परिवेश से कट रहे हैं। नतीजन, देश-दुनिया में डिजिटल डिटाक्स से जुड़ी मुहिम देखने को मिल रही हैं। तकनीकी व्यस्तता से बचने का पाठ राजस्थान में ब्रह्माकुमारी सिस्टर्स स्कूल और कालेजों में भी पढ़ाया जा रहा है। वहां 'डिजिटल डिटाक्स हेल्थ एंड अवेयरनेस और सेल्फ एंपावरमेंट टू डिजिटल डिटाक्स' जैसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। कर्नाटक सरकार भी गेमिंग और इंटरनेट मीडिया के सधे इस्तेमाल की सजगता के लिए इंडिया गेम डेवलपर्स फोरम के साथ डिजिटल डिटाक्स पहल कर चुकी है।

 वस्तुतः लोगों को जोड़ने के मोर्चे पर जीवन का हिस्सा बनी तकनीक अब दूरियां बढ़ाने लगी है। स्मार्ट स्क्रीन मित्रों, परिजनों और सगे-संबंधियों को दिया जाने वाला समय चुरा रही है। वर्चुअल व्यस्तता का असर आपराधिक घटनाओं की लिप्तता से लेकर सामाजिक जीवन में बढ़ते अकेलेपन तक दिखने लगा है। साझे प्रयास ही लोगों को इस जाल से निकाल सकते हैं। वर्तमान में तनाव, व्यग्रता और पोस्चर से जुड़ी समस्याओं का एक कारण स्मार्ट स्क्रीन स्क्रॉलिंग भी है। इतना ही नहीं, रात को बिस्तर पर जाने के बाद भी घंटों स्मार्ट स्क्रीन में ताकना नींद की कमी और आंखों से जुड़ी व्याधियों को बढ़ा रहा है। दुनिया भर के अपडेट्स देखते रहना मन को अशांत कर मानसिक तनाव का शिकार बनाता है। स्वास्थ्य समस्याओं के चलते कई देशों में तो महंगी फीस चुकाकर डिजिटल डिटाक्सिंग की सेवाएं ली जा रही हैं। विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्राचार्य शैक्षिक स्तंभकार गली कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब [3 कहानी स्वाभिमान विजय गर्ग कालिज पहुंचते ही तनु ने आज सब से पहले स्टाफ क्वार्टर के लिए आवेदन किया. इतने साल हो गए उसे कालिज में पढ़ाते हुए, चाहती तो कभी का क्वार्टर ले सकती थी पर इतना बड़ा बंगला छोड़ कर यों स्टाफ क्वार्टर में रहने की उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. फिर प्रणव को भी तनु के घर आ कर रहना पसंद नहीं था. उन का अभिमान आहत होता था. उन्हें लगता कि वहां वह ‘मिस्टर तनुश्री राय’ बन कर ही रह जाएंगे. और यह बात उन्हें कतई मंजूर न थी. आज सुबह ही प्रणव ने उसे अपने घर से निकल जाने को कह दिया जबकि तनु को इस घर में 30 साल गुजर चुके हैं. कहने को तो प्रणव ने उसे सबकुछ दिया है, बढि़या सा घर, 2 बच्चे, जमाने की हर सुखसुविधा…लेकिन नहीं दिया तो बस, आत्मसम्मान से जीने का हक. हर अच्छी बात का श्रेय खुद लेना, तनु के हर काम में मीनमेख निकालना और बातबात पर उस को ‘मिडिल क्लास मानसिकता’ का ताना देना, यही तो किया है प्रणव ने शुरू से अब तक. पलंग पर लेटेलेटे तनु अपने ही जीवन से जुड़ी घटनाओं का तानाबाना बुनने लगी. इतने वर्षों से तनु को लगने लगा था कि उसे यह सब सहने की आदत सी हो गई है पर आज सुबह उस का धैर्य जवाब दे गया. जैसेजैसे उम्र बढ़ रही थी प्रणव का कहनासुनना बढ़ता जा रहा था और तनु की सहनशीलता खत्म होती जा रही थी. तनु जानती है कि अमेरिका में रह रहे बेटे के विवाह कर लेने की खबर प्रणव बरदाश्त नहीं कर पा रहे हैं, बल्कि उन के अहम को चोट पहुंची है. अब तक हर बात का फैसला लेने का एकाधिकार उस से छिन जो गया था. प्रणव की नजरों में इस के लिए तनु ही दोषी है. बच्चों को अच्छे संस्कार जो नहीं दे पाई है…यही तो कहते हैं प्रणव बच्चों की हर गलती या जिद पर. जबकि वह अच्छी तरह जानते हैं कि बच्चों के बारे में किसी भी तरह का निर्णय लेने का कोई अधिकार उन्होंने तनु को नहीं दिया. यहां तक कि उस के गर्भ के दौरान किस डाक्टर से चैकअप कराना है, क्या खाना है, कितना खाना है आदि बातों में भी अपनी ही मर्जी चलाता. शुरू में तो तनु को यह बात अच्छी लगी थी कि कितना केयरिंग

 हसबैंड मिला है लेकिन धीरेधीरे पता चला यह केयर नहीं, अपितु स्टेटस का सवाल था. कितना चाहा था तनु ने कि बेटी कला के क्षेत्र में नाम कमाए पर उसे डाक्टर बनाना पड़ा, क्योंकि प्रणव यही चाहते थे. बेटे को आई.ए.एस. बनाने की चाह भी तनु के मन में धरी की धरी रह गई और वह प्रणव के आदेशानुसार वैज्ञानिक ही बना, जो आजकल नासा में कार्यरत है. ऐसा नहीं कि बच्चों की सफलता से तनु खुश नहीं है या बच्चे अपने प्राप्यों से संतुष्ट नहीं हैं लेकिन यह भी सत्य है कि प्रणव इस सब से इसलिए संतुष्ट हैं कि बच्चों को इन क्षेत्रों में भेजने से वह और तनु आज सोसाइटी में सब से अलग नजर आ रहे हैं. पूरी जिंदगी सबकुछ अपनी इच्छा और पसंद को ही सर्वश्रेष्ठ मानने की आदत होने के कारण बेटे की शादी प्रणव को अपनी हार प्रतीत हो रही है. यही हार गुस्से के रूप में पिछले एक सप्ताह से किसी न किसी कारण तनु पर निकल रही है. प्रणव को वैसे भी गुस्सा करने का कोई न कोई कारण सदा से मिलता ही रहा है. प्रणव यह क्यों नहीं समझते कि बेटे के इस तरह विवाह कर लेने से तनु को भी तो दुख हुआ होगा. पर उन्हें उस की खुशी या दुख से कब सरोकार रहा है. जब बेटे का फोन आया था तो तनु ने कहा भी था, ‘खुशी है कि तुम्हारी शादी होगी, लेकिन तुम अगर हमें अपनी पसंद बताते तो हम यहीं बुला कर तुम्हारी शादी करवा देते. सभी लोगों को दावत देते…वहां बहू को कैसा लगेगा, जब घर पर नई बहू का स्वागत करने वाला कोई भी नहीं होगा.’ ‘क्या मौम आप भी, कोई कैसे नहीं होगा, दीदी और जीजाजी आ रहे हैं न. आप को तो पता है कि अपनी पसंद बताने पर पापा कभी नहीं होने देते यह शादी. दीदी की बार का याद नहीं है आप को. डा. सोमेश को तो दीदी ने उस तरह पसंद भी नहीं किया था. बस, पापा ने उन्हें रेस्तरां में साथ बैठे ही तो देखा था. घर में कितने दिनों तक हंगामा रहा था. दीदी ने कितना कहा था कि डा. सोमेश केवल उन के कुलीग हैं पर कभी पापा ने सुनी? उन्होंने आननफानन में कैसे अपने दोस्त के डा. बेटे के साथ शादी करवा दी. यह ठीक है कि जीजाजी भी एकदम परफेक्ट हैं. ‘सौरी मौम, मेरी शादी के कारण आप को पापा के गुस्से का सामना करना पडे़गा. रीयली मौम, आज मैं महसूस करता हूं कि आप कैसे उन के साथ इतने वर्षों से निभा रही हैं. यू आर ग्रेट मौम…आई सेल्यूट यू…ओ.के., फोन रखता हूं. शादी की फोटो ईमेल कर दूंगा.’ तनु बेटे की इन बातों से सोच में पड़ गई. सच ही तो कहा था उस ने. लेकिन वह गुस्सा एक बार में खत्म नहीं हुआ था. पिछले एक सप्ताह से रोज ही उसे इस स्थिति से दोचार होना पड़ रहा है. सुबह यही तो हुआ था जब प्रणव ने पूछा था, ‘सुना, कल तुम निमिषा के यहां गई थीं. ‘हां.’ ‘मुझे बताया क्यों नहीं.’ ‘कल रात आप बहुत लेट आए तो ध्यान नहीं रहा.’ ‘‘ध्यान नहीं रहा’ का क्या मतलब है, फोन कर के बता सकती थीं. कोई काम था वहां?’ ‘निमिषा बहुत दिनों से बुला रही थी. कालिज में कल शाम की क्लास थी नहीं, सोचा उस से मिलती चलूं.’ ‘तुम्हें मौका मिल गया न मुझे नीचा दिखाने का. तुम्हें शर्म नहीं आई कि बेटे ने ऐसी करतूत की और तुम रिश्तेदारी निभाती फिर रही हो.’ ‘निमिषा आप की बहन होने के साथसाथ कालिज के जमाने की मेरी सहेली भी है…और रही बात बेटे की, तो उस ने शादी ही तो की है, गुनाह तो नहीं.’ ‘पता है मुझे, तुम्हारी ही शह से बिगड़ा है वह. जब मां बिना पूछे काम करती है तो बेटे को कैसे रोक सकती है. भूल जाती हो तुम कि अभी मैं जिंदा हूं, इस- घर का मालिक हूं.’ ‘मैं ने क्या काम किया है आप से बिना पूछे. इस घर में कोई सांस तो ले नहीं सकता बिना आप की अनुमति के…हवा भी आप से इजाजत ले कर यहां प्रवेश करती है…जिंदगी की छोटीछोटी खुशियों को भी जीने नहीं दिया…यह तो मैं ही हूं कि जो यह सब सहन करती रही…

.’ ‘क्या सहन कर रही हो तुम, जरा मैं भी तो सुनूं. ऐसा स्टेटस, ऐसी शान, सोसाइटी में एक पहचान है तुम्हारी…और कौन सी खुशियां चाहिए?’ तनु तंग आ गई इन बातों से. हार कर उस ने कह दिया, ‘देखो प्रणव, यह रोज की खिचखिच बंद करो. अब इस उम्र में मुझ से और सहन नहीं होता. मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता.’ ‘नहीं सहन होता तो चली जाओ यहां से, जहां अच्छा लगता है वहां चली जाओ. क्यों रह रही हो फिर यहां.’ ‘चली जाऊं, छोड़ दूं, उम्र के इस पड़ाव पर, आप को बेशक यह कहते शर्म नहीं आई हो, पर मुझे सुनने में जरूर आई है. इस उम्र में चली जाऊं, शादी के 30 साल तक सब झेलती रही, अब कहते हो चली जाओ. जाना होता तो कब की सबकुछ छोड़ कर चली गई होती.’ तनु तड़प उठी थी. जिंदगी का सुख प्रणव ने केवल भौतिक सुखसुविधा ही जाना था. पूरी जिंदगी अपनेआप को मार कर जीना ही अपनी तकदीर मान जिस के साथ निष्ठा से बिता दी, उसी ने आज कितनी आसानी से उसे घर से चले जाने को कह दिया. ‘हां, आज मुझे यह घर छोड़ ही देना चाहिए. अब तक पूरी जिंदगी प्रणव के हिसाब से ही जी है, यह भी सही.’ सारी रात तनु ने इसी सोच के साथ बिता दी. शादी के बाद कितने समय तक तो तनु प्रणव का व्यवहार समझ ही नहीं पाई थी. किस बात पर झगड़ा होगा और किस बात पर प्यार बरसाने लगेंगे, कहा नहीं जा सकता. कालिज से आने में देर हो गई तो क्यों हो गई, घरबार की चिंता नहीं है, और अगर जल्दी आ गई तो कालिज टाइम पास का बहाना है, बच्चों को पढ़ाना थोड़े ही है. दुनिया की नजर में प्रणव से आदर्श पति और कोई हो ही नहीं सकता. मेरी हर सुखसुविधा का खयाल रखना, विदेशों में घुमाना, एक से एक महंगी साडि़यां खरीदवाना, जेवर, गाड़ी, बंगला, क्या नहीं दिया लेकिन वह यह नहीं समझ सके कि सुखसुविधा और खुशी में बहुत फर्क होता है. तनु की विचारशृंखला टूटने का नाम ही नहीं ले रही थी…मैं इन की बिना पसंद के एक रूमाल तक नहीं खरीद सकती, बिना इन की इच्छा के बालकनी में नहीं खड़ी हो सकती, इन की इच्छा के बिना घर में फर्नीचर इधर से उधर एक इंच भी सरका नहीं सकती, नया खरीदना तो दूर की बात… क्योंकि इन की नजर में मुझे इन चीजों की, इन बातों की समझ नहीं है. बस, एक नौकरी ही है, जो मैं ने छोड़ी नहीं. प्रणव ने बहुत कहा कि सोसाइटी में सभी की बीवियां किसी न किसी सोशल काम से जुड़ी रहती हैं. तुम भी कुछ ऐसा ही करो. देखो, निमिषा भी तो यही कर रही है पर तुम्हें क्या पता…पहले हमारे बीच खूब बहस होती थी, पर धीरेधीरे मैं ने ही बहस करना छोड़ दिया. आज मैं थक गई थी ऐसी जिंदगी से. बच्चों ने तो अपना नीड़ अलग बना लिया, अब क्या इस उम्र में मैं…हां…शायद यही उचित होगा…कम से कम जिंदगी की संध्या मैं बिना किसी मानसिक पीड़ा के बिताना चाहती हूं. प्रणव तो इतना सबकुछ होने के बाद भी सुबह की उड़ान से अपने काम के सिलसिले में एक सप्ताह के लिए फ्रैंकफर्ट चले गए. उन के जाने के बाद तनु ने रात में सोची गई अपनी विचारधारा पर अमल करना शुरू कर दिया. अभी तो रिटायरमेंट में 5-6 वर्ष बाकी हैं इसलिए अभी क्वार्टर लेना ही ठीक है, आगे की आगे देखी जाएगी. तनु को क्वार्टर मिले आज कई दिन हो गए, लेकिन प्रणव को वह कैसे बताए, कई दिनों से इसी असमंजस में थी. दिन बीतते जा रहे थे. प्रोफेसर दीप्ति, जो तनु के ही विभाग में है और क्वार्टर भी तनु को उस के साथ वाला ही मिला है, कई बार उस से शिफ्ट करने के बारे में पूछ चुकी थी. तनु थी कि बस, आजकल करती टाल रही थी. सच तो यह है कि तनु ने उस दिन आहत हो कर क्वार्टर के लिए आवेदन कर दिया था और ले भी लिया, पर इस उम्र में पति से अलग होने की हिम्मत वह जुटा नहीं पा रही थी. यह उस के मध्यवर्गीय संस्कार ही थे जिन का प्रणव ने हमेशा ही मजाक उड़ाया है. ऐसे ही एक महीना बीत गया. इस बीच कई बार छोटीमोटी बातें हुईं पर तनु ने अब खुद को तटस्थ कर लिया, लेकिन वह भूल गई थी कि प्रणव के विस्फोट का एक बहाना उस ने स्वयं ही उसे थाली में परोस कर दे दिया है. कालिज से मिलने वाली तनख्वाह बेशक प्रणव ने कभी उस से नहीं ली और न ही बैंक मेें जमा पैसे का कभी हिसाब मांगा पर तनु अपनी तनख्वाह का चेक हमेशा ही प्रणव के हाथ में रखती रही है. वह भी उसे बिना देखे लौटा देते हैं. इतने वर्षों से यही नियम चला आ रहा है. तनु ने जब इस महीने भी चेक ला कर प्रणव को दिया तो उस पर एक नजर डाल कर वह पूछ बैठे, ‘‘इस बार चेक में अमाउंट कम क्यों है?’’ पहली बार ऐसा सवाल सुन कर तनु चौंक गई. उस ने सोचा ही नहीं था कि प्रणव चेक को इतने गौर से देखते हैं. अब उसे बताना ही पड़ा, ‘‘अगले महीने से ठीक हो जाएगा. इस महीने शायद स्टाफ क्वार्टर के कट गए होंगे.’’ अभी उस का वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था, ‘‘स्टाफ क्वार्टर के…किस का…तुम्हारा…कब लिया…क्यों लिया

… और मुझे बताया भी नहीं?’’ तनु से जवाब देते नहीं बना. बहुत मुश्किल से टूटेफूटे शब्द निकले, ‘‘एकडेढ़ महीना हो गया…मैं बताना चाह रही थी…लेकिन मौका ही नहीं मिला…वैसे भी अब मैं उसे वापस करने की सोच रही हूं…’’ ‘‘एक महीने से तुम्हें मौका नहीं मिला…मैं मर गया था क्या? यों कहो कि तुम बताना नहीं चाहती थीं…और जब लिया है तो वापस करने की क्या जरूरत है…रहो उस में… ’’ ‘‘नहीं…नहीं, मैं ने रहने के लिए नहीं लिया…’’ ‘‘फिर किसलिए लिया है?’’ ‘‘उस दिन आप ने ही तो मुझे घर से निकल जाने को कहा था.’’ ‘‘तो गईं क्यों नहीं अब तक…मैं पूछता हूं अब तक यहां क्या कर रही हो?’’ ‘‘आप की वजह से नहीं गई. समाज क्या कहेगा आप को कि इस उम्र में अपनी पत्नी को निकाल दिया…आप क्या जवाब देंगे…आप की जरूरतों का ध्यान कौन रखेगा?’’ ‘‘मैं समाज से नहीं डरता…किस में हिम्मत है जो मुझ से प्रश्न करेगा और मेरी जरूरतों के लिए तुम्हें परेशान होने की आवश्यकता नहीं है…जिस के मुंह पर भी चार पैसे मारूंगा…दौड़ कर मेरा काम करेगा…मेरा खयाल कर के नहीं गई…चार पैसे की नौकरी पर इतराती हो. अरे, मेरे बिना तुम हो क्या…तुम्हें समाज में लोग मिसिज प्रणव राय के नाम से जानते हैं.’’ तनु का क्रोध आज फिर अपना चरम पार करने लगा, ‘‘चुप रहिए, मैं ने पहले ही कहा था कि अब मुझ से बरदाश्त नहीं होता. ’’ ‘‘कौन कहता है कि बरदाश्त करो…अब तो तुम ने मकान भी ले लिया है. जाओ…चली जाओ यहां से…मैं भूल गया था कि तुम जैसी मिडिल क्लास को कोठीबंगले रास नहीं आते. तुम्हारे लिए तो वही 2-3 कमरों का दड़बा ही ठीक है.’’ तनु इस अपमान को सह नहीं पाई और तुरंत ही अंदर जा कर अपना सूटकेस तैयार किया और वहां से निकल पड़ी. आंखों में आंसू लिए आज कोठी के फाटक को पार करते ही तनु को ऐसा लगा मानो कितने बरसों की घुटन के बाद उस ने खुली हवा में सांस ली है. सारी रात आंखों में ही काट दी तनु ने अपने नए घर में…सुबह ही झपकी लगी कि डोरबेल से आंख खुल गई. सोचा, शायद प्रणव होंगे पर प्रोफेसर दीप्ति थी.

 ‘‘बाहर से ताला खुला देखा इसलिए बेल बजा दी. कब आईं आप?’’ शालीनता से पूछा था दीप्ति ने. ‘‘रात ही में.’’ ‘‘ओह, अच्छा…पता ही नहीं चला. और मिस्टर राय?’’ ‘‘वह बाहर गए हैं…तब तक दोचार दिन मैं यहां रह कर देखती हूं, फिर देखेंगे.’’ दीप्ति भेदभरी मुसकान से ‘बाय’ कह कर वहां से चल दी. पूरा दिन निकल गया प्रतीक्षा में. तनु को बारबार लग रहा था प्रणव अब आए, तब आए. पर वह नहीं ही आए. रात होतेहोते तनु ने अपने मन को समझा लिया था कि यह किस का इंतजार था मुझे? उस का जिस ने घर से निकाल दिया. अगर उन्हें आना ही होता तो मुझे निकालते ही क्यों…सचमुच मैं उन की जिंदगी का अवांछनीय अध्याय हूं. लेकिन ऐसा तो नहीं कि मैं जबरदस्ती ही उन की जिंदगी में शामिल हुई थी… कालिज में मैं और निमिषा एक साथ पढ़ते थे. एक ही कक्षा और एक जैसी रुचियां होने के कारण हमारी शीघ्र ही दोस्ती हो गई. निमिषा और मुझ में कुछ अंतर था तो बस, यही कि वह अपनी कार से कालिज आती जिसे शोफर चलाता और बड़ी इज्जत के साथ कार का गेट खोल कर उसे उतारताबैठाता, और मैं डीटीसी की बस में सफर करती, जो सचमुच ही कभीकभी अंगरेजी भाषा का ‘सफर’ हो जाता था. मेरा मुख्य उद्देश्य था शिक्षा के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना और निमिषा का केवल ग्रेजुएशन की डिगरी लेना. इस के बावजूद वह पढ़ाई में बहुत बुद्धिमान थी और अभी भी है… ग्रेजुएशन करने तक मैं कभी निमिषा के घर नहीं गई…अच्छी दोस्ती होने के बाद भी मुझे लगता कि मुझे उस से एक दूरी बनानी है…कहां वह और कहां मैं…लेकिन जब मैं ने एम.ए. का फार्म भरा तो मुझे देख उस ने भी भर दिया और इस तरह हम 2 वर्ष तक और एकसाथ हो गए. इस दौरान मुझे दोचार बार उस के घर जाने का मौका मिला. घर क्या था, महल था. मेरी हैरानी तब और बढ़ गई जब एम.फिल. के लिए मेरे साथसाथ उस ने भी आवेदन कर दिया. मेरे पूछने पर निमिषा ने कहा था, ‘यार, मम्मीपापा शादी के लिए लड़का ढूंढ़ रहे हैं, जब तक नहीं मिलता, पढ़ लेते हैं. तेरे साथसाथ जब तक चला जाए…’ बिना किसी लक्ष्य के निमिषा मेरे साथ कदम-दर-कदम मिलाती हुई बढ़ती जा रही थी और एक दिन हम दोनों को ही लेक्चरर के लिए नियुक्त कर लिया गया. इस खुशी में उस के घर में एक भव्य पार्टी का आयोजन किया गया था. उसी पार्टी में पहली बार उस के भाई प्रणव से मेरी मुलाकात हुई. बाद में मुझे पता चला कि उस दिन पार्टी में मेरे रूपसौंदर्य से प्रभावित हो कर निमिषा के मम्मीपापा ने निमिषा की शादी के बाद मुझे अपनी बहू बनाने पर विचार किया, जिस पर अंतिम मोहर मेरे घर वालों को लगानी थी जो इस रिश्ते से मन में खुश भी थे और उन की शानोशौकत से भयभीत भी. इस सब में लगभग एक साल का समय लगा. प्रणव कई बार मुझ से मिले, वह जानते थे कि मैं एक आम भारतीय समाज की उपज हूं…शानोशौकत मेरे खून में नहीं…लेकिन शादी के पहले मेरी यही बातें, मेरी सादगी, उन्हें अच्छी लगती थी, जो उन की सोसाइटी में पाई जाने वाली लड़कियों से मुझे अलग करती थी. तनु को यहां रहते एक महीना हो चुका था. कुछ दिन तो दरवाजे की हर घंटी पर वह प्रणव की उम्मीद लगाती, लेकिन उम्मीदें होती ही टूटने के लिए हैं. इस अकेलेपन को तनु समझ ही नहीं पा रही थी. कभी तो अपने छोटे से घर में 55 वर्षीय प्रोफेसर डा. तनुश्री राय का मन कालिज गर्ल की तरह कुलाचें मार रहा होता कि यहां यह मिरर वर्क वाली वाल हैंगिंग सही लगेगी…और यह स्टूल यहां…नहीं…इसे इस कोने में रख देती हूं. घर में कपडे़ की वाल हैंगिंग लगाते समय तनु को याद आया जब वह जनपथ से यह खरीद कर लाई थी और उसे ड्राइंग रूम में लगाने लगी तो प्रणव ने कैसे डांट कर मना कर दिया था कि यह सौ रुपल्ली का घटिया सा कपडे़ का टुकड़ा यहां लगाओगी…इस का पोंछा बना लो…वही ठीक रहेगा…नहीं तो अपने जैसी ही किसी को भेंट दे देना. तनु अब अपनी इच्छा से हर चीज सजा रही थी. कोई मीनमेख निकालने वाला या उस का हाथ रोकने वाला नहीं था, लेकिन फिर भी जीवन को किसी रीतेपन ने अपने घेरे में घेर लिया था. कालिज की फाइनल परीक्षाएं समाप्त हो चुकी थीं. सभी कहीं न कहीं जाने की तैयारियों में थे. प्रणव के साथ मैं भी हमेशा इन दिनों बाहर चली जाया करती थी…सोच कर अचानक तनु को याद आया कि बेटा ‘यश’ के पास जाना चाहिए…उस की शादी पर तो नहीं जा पाई थी…फिर वहीं से बेटी के पास भी हो कर आऊंगी. बस, तुरतफुरत बेटे को फोन किया और अपनी तैयारियों में लग गई. कितनी प्रसन्नता झलक रही थी यश की आवाज में. और 3 दिन बाद ही अमेरिका से हवाई जहाज का टिकट भी भेज दिया था. फ्लाइट का समय हो रहा था… ड्राइवर सामान नीचे ले जा चुका था, तनु हाथ में चाबी ले कर बाहर निकलने को ही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई, उफ, इस समय कौन होगा. देखा, दरवाजे पर प्रणव खड़े हैं. क्षण भर को तो तनु किंकर्तव्य- विमूढ़ हो गई. उफ, 2 महीनों में ही यह क्या हो गया प्रणव को. मानो बरसों के मरीज हों. ‘‘कहीं जा रही हो क्या?’’ प्रणव ने उस की तंद्रा तोड़ते हुए पूछा. ‘‘हां, यश के पास…पर आप अंदर तो आओ.’’ ‘‘अंदर बैठा कर तनु प्रणव के लिए पानी लेने को मुड़ी ही थी कि उस ने तनु का हाथ पकड़ लिया, ‘‘तनु, मुझे माफ नहीं करोगी. इन 2 महीनों में ही मुझे अपने झूठे अहम का एहसास हो गया. जिस प्यार और सम्मान की तुम अधिकारिणी थीं, तुम्हें वह नहीं दे पाया. अपने ‘स्वाभिमान’ के आवरण में घिरा हुआ मैं तुम्हारे अस्तित्व को पहचान ही नहीं पाया. मैं भूल गया कि तुम से ही मेरा अस्तित्व है. मैं तुम्हारे बिना अधूरा हूं…यह सच है तनु, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं…पहले भी करता था पर अपने अहम के कारण कहा नहीं, आज कहता हूं तनु, तुम्हारे बिना मैं मर जाऊंगा…मुझे माफ कर दो और अपने घर चलो. बहू को पहली बार अपने घर बुलाने के लिए उस के स्वागत की तैयारी भी तो करनी है…मुझे एक मौका दो अपनी गलती सुधारने का.’’ तनु बुढ़ापे में पहली बार अपने पति के प्यार से सराबोर खुशी के आंसू पोंछती हुई अपने बेटे को अपने न आ पाने की सूचना देने के लिए फोन करने लगा. विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्राचार्य शैक्षिक स्तंभकार गली कौर चंद एमएचआर मलोट