चुनावों का आवश्यक कर्मकांड बना ईवीएम को कोसना
दीवार फिल्म के दो भाईयों की तरह यदि नेताओं के पास, गाड़ी है, बंगला है,बैंक बैलेंस है तो जनता के पास क्या है ? क्या है हमारे पास ? तो इसका सॉलिड जवाब है - भाई,मेरे पास ईवीएम है।
दीवार फिल्म के दो भाईयों की तरह यदि नेताओं के पास, गाड़ी है, बंगला है,बैंक बैलेंस है तो जनता के पास क्या है ? क्या है हमारे पास ? तो इसका सॉलिड जवाब है - भाई,मेरे पास ईवीएम है।
ईवीएम प्रजातंत्र में वरदान है जो जनता को मिला है,जिसमें हम अपनी उंगली के इशारे से देश की दशा और दिशा तय कर सकते हैं लेकिन दिक्कत यह है कि आजकल ईवीएम को ही कटघरे में खड़ा किया जा रहा है और मजे की बात यह है कि ईवीएम के चरित्र पर लांछन उसी पार्टी के लोग लगा रहे हैं जो इसको देश में लेकर आए । जब भारत में मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन ने चुनाव प्रक्रिया में सुधार शुरू किया तो वोटर कार्ड और बाद में ईवीएम जनता को मिले। उद्देश्य यही थे कि चुनाव में धांधली को रोका जा सके और जनता बाहुबलियों के चंगुल से बाहर आ सके। लेकिन आज इसी ईवीएम पर सबसे ज्यादा सवाल उठाए जाते हैं।अब हर चुनाव के बाद ईवीएम को दोष देना चुनाव का ही एक हिस्सा बन चुका है,ये बिल्कुल वैसा ही है जैसा शादी के बाद सास ननद द्वारा दुल्हन में कमियां निकालना जबकि दुल्हन को पसंद भी ये ही लोग करके लाते हैं।
अब ईवीएम को कोसना चुनावों का एक आवश्यक कर्मकांड बन चुका है । यदि चुनावों के बाद ईवीएम को दोष न दिया जाए मतलब चुनाव प्रक्रिया पूरी नहीं हुई। इस बार महाराष्ट्र चुनाव के बाद भी यह मुद्दा बहुत जोर शोर से उठाया जा रहा है,पहली बार ईवीएम के खिलाफ जनता भी बोल रही है। यही कारण है कि पहली बार ऐसा हो रहा है कि करीब सौ सीटों पर नेताओं ने ईवीएम की जांच के लिए चुनाव आयोग से मांग की है और इसके लिए करीब अड़तालीस लाख रुपए फीस के रूप में जमा भी किए जा चुके हैं और गड़बड़ी पाए जाने पर पुनर्मतदान की मांग भी हो चुकी है। कुछ लोग तो निर्वाचन अधिकारी के अलावा कोर्ट भी जा रहे हैं अब देखते हैं इसका रिजल्ट कब और क्या निकलेगा,इंतजार करें। मुझे लगता है कि इसका कोई रिजल्ट नहीं मिलेगा और ईवीएम बेकसूर ही निकलेगी। मुझे इसका तकनीकी पक्ष नहीं मालूम लेकिन पराजित नेताओं के विरोधाभासी बयान से ऐसा प्रतीत होता है कि ईवीएम बेकसूर है ।
एक तरफ यह सारे नेता ईवीएम में गड़बड़ी का आरोप लगा रहे हैं दूसरी तरफ सत्ता पक्ष पर चुनाव में पैसा बांटने का आरोप भी लगा रहे है और कई नेता वोटर्स को वोट डालने से रोकने का आरोप भी लगा रहे हैं। इसलिए अब सवाल यह उठता है कि यदि ईवीएम में गड़बड़ी की जा सकती है तो पैसा बांटने की क्या जरूरत है ? और यदि चुनाव में पैसा बांटा जा रहा है या वोटरों को वोट देने से रोका जा रहा है इसका मतलब है ईवीएम में गड़बड़ी नहीं की जा सकती ,यह विरोधाभासी बयान खुद ही साबित कर देते हैं कि विपक्ष खुद सुनिश्चित नहीं है और दूसरी बात यह है कि यह कोई पहली बार नहीं हो रहा है इसके पहले भी ईवीएम कोर्ट तक जा चुकी है और कोर्ट से बाइज्जत बरी भी हो चुकी है इसलिए इस बार भी बड़ा उलटफेर नहीं होने वाला है।लेकिन दिल है कि मानता नहीं इसलिए लोग फिर से पहुंच रहे हैं कोर्ट । अब देखते हैं मीलार्ड क्या कहते हैं। बहरहाल हम तो ईवीएम के पक्ष में हैं क्योंकि इसके अलावा कोई विकल्प है नहीं ।
जिस दूसरे विकल्प की मांग विपक्ष लगातार कर रहा है वो है बैलेट पेपर । जिसमें धांधली के चांसेज ज्यादा होते हैं। पूर्व में हम देख भी चुके हैं कि बैलेट पेपर में बूथ लूट लिए जाते थे,एक ही बंदा पांच सौ छह सौ वोट डाल देता था और पूरा चुनाव डंडे और गुंडे मैनेज कर लेते थे । अंततः राजनीति पर बाहुबलियों का कब्जा हो जाता था लेकिन ईवीएम पर इतनी दादागिरी की संभावना नहीं होती । यही कारण है कि देश में वोटिंग परसेंटेज भी बढ़ा है। खासकर महिलाएं भी अब सुरक्षित रहकर वोट दे सकती हैं इसलिए वैलेट पेपर की वापसी तो बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए। हां यदि कोई और बेहतर विकल्प हो तो उस पर विचार किया जा सकता है वरना ईवीएम ही ठीक है।इस सारे परिदृश्य में आज कम से कम मतदाता कह तो सकता है कि "मेरे पास ईवीएम है।"
(डॉ. मुकेश "कबीर"-विभूति फीचर्स)