बढ़ रहा सोशल मीडिया का प्रभाव-जिम्मेदारी और जागरूकता जरूरी (30 जून विश्व सोशल मीडिया दिवस पर विशेष आलेख)

30 जून को 'विश्व सोशल मीडिया' दिवस मनाया जाता है। आज के युग में सोशल मीडिया का बहुत महत्व है। यह सोशल मीडिया(फेसबुक, व्हाट्स एप, ट्विटर, इंस्टाग्राम) ही है जिसके कारण आज दुनिया श्रिंक हो गई है। यह आपस में लोगों को जोड़ने, विचारों का आदान-प्रदान करने तथा समाज और देश में पाज़ीटिव बदलाव लाने का एक सशक्त और शानदार माध्यम है।
वास्तव में, यह दिन सोशल मीडिया के हमारे जीवन में महत्व को पहचानने और इसका जश्न मनाने के लिए मनाया जाता है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि वर्ष 1997 में, पहला सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'सिक्सडिग्रीज़' लॉन्च किया गया था, और वर्ष 2010 में मैशेबल द्वारा विश्व सोशल मीडिया दिवस की शुरुआत की गई थी। गौरतलब है कि एंड्रयू वेनरिच द्वारा स्थापित, इस वेबसाइट पर उपयोगकर्ता अपने मित्रों और परिवार के सदस्यों को सूचीबद्ध कर सकते थे और इसमें प्रोफ़ाइल, बुलेटिन बोर्ड और स्कूल संबद्धता जैसी सुविधाएँ थीं। हालांकि, दस लाख से ज़्यादा उपयोगकर्ताओं के बावजूद वर्ष 2001 में इसे बंद कर दिया गया था। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पहला आधुनिक सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म 2002 में फ्रेंडस्टर था। इसी प्रकार से लिंक्डइन, पहला व्यवसाय-केंद्रित सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म 2003 में लॉन्च किया गया था। माईस्पेस 2004 में लॉन्च हुआ, उसी साल फ़ेसबुक(कैम्ब्रिज, मैसाचुसेट्स में स्थापित इस वेबसाइट के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग) भी लॉन्च हुआ। बाद में वर्ष 2006 तक माईस्पेस दुनिया का सबसे बड़ा सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म बन गया।यूट्यूब(विडियो वेबसाइट जिसका जन्म कैलिफोर्निया के सैन मेटियो में हुआ) ने वर्ष 2005 में और उसके बाद ट्विटर ने वर्ष 2006 में सीमित अक्षरों वाला अपना प्लेटफॉर्म शुरू किया।इंस्टाग्राम साल 2010 में लॉन्च हुआ और इसने तेज़ी से विकास किया।
बहरहाल, आज दिन-ब-दिन सोशल मीडिया की लोकप्रियता बढ़ती ही चली जा रही है लेकिन यह बहुत ही दुखद है कि तकनीक का आज मिसयूज(ग़लत उपयोग) किया जा रहा है। आज सोशल मीडिया पर डेटा चोरी किया जाता है। अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया जाता है। फर्जी खबरों को लेकर विवाद होता है। ऐसी ऐसी सामग्री या कंटेंट का प्रचार प्रसार देखने को मिलता है, जिससे मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य(अवसाद और चिंता के कारण) पर बहुत बुरा असर पड़ता है। साइबर बुलिंग(एक दूसरे को धमकाना, परेशान करना) की समस्या जैसे आज आम हो चली है।सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग वास्तविक दुनिया के रिश्तों को कम कर सकता है, जिससे सामाजिक अलगाव हो सकता है। इतना ही नहीं, सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग छात्रों के शैक्षणिक प्रदर्शन को भी प्रभावित करता है। वास्तव में आज सोशल मीडिया पर नकारात्मक(नेगेटिव), ग़लत और भ्रामक सूचनाओं, जानकारियों से बचने की जरूरत है। यह ठीक है कि हमारे देश में अभिव्यक्ति की आजादी सबको प्रदान की गई है, लेकिन पिछले कुछ समय से देश और समाज के कुछेक लोगों ने तकनीक और अभिव्यक्ति की आजादी का बहुत ही ग़लत उपयोग किया है। विशेषकर यू ट्यूबर्स-नैतिकता और मर्यादा को तांक पर रखकर कुछ भी ऊल-जुलूल इन माध्यमों पर बेरोकटोक परोस रहे हैं।
यू-ट्यूबर्स और फेसबुक पर कंटेंट प्रस्तुतीकरण का तरीका बहुत ही अजीबोगरीब व ग़लत हो गया है। फेसबुक, यूट्यूब पर ज्यादा से ज्यादा लाइक्स, शेयर और कमेंट्स पाने के लिए यूट्यूबर्स और फेसबुक संचालक अपनी मर्यादाएं भूल रहें हैं और उन्हें समाज और देश से कोई भी सरोकार नहीं रहा है। बहरहाल, पाठक जानते हैं कि यू-ट्यूब और फेसबुक सार्वजनिक मंच हैं और आज संपूर्ण विश्व इन मंचों से जुड़ा हुआ है। कोई भी पोस्ट इन मंचों पर पोस्ट की जाती है तो उसके दूरगामी प्रभाव होते हैं, इसलिए यह बहुत ही जरूरी है कि इन मंचों पर प्रामाणिक और विश्वसनीय जानकारी ही पोस्ट की जाए और देश की सुरक्षा का हमेशा ध्यान रखा जाए। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि सोशल मीडिया के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव हैं। सोशल मीडिया संचार और सामाजिकीकरण को बढ़ावा देता है। यह विभिन्न सामाजिक मुद्दों, राजनीतिक आंदोलनों और शैक्षिक अवसरों के बारे में जानकारी प्राप्त करने का एक शक्तिशाली उपकरण है। यह सोशल मीडिया ही है जो रचनात्मकता और आत्म-अभिव्यक्ति को अवसर प्रदान करता है। यह व्यावसायिक अवसरों को जन्म दे सकता है। सामाजिक परिवर्तन लाने की अभूतपूर्व क्षमताएं रखता है।सोशल मीडिया संकट के समय में लोगों को समर्थन और प्रोत्साहन प्राप्त करने, दूसरों के साथ जुड़ने और अकेलेपन को कम करने में मदद करता है।
सीखने के अवसरों के साथ ही सोशल मीडिया व्यक्तिगत विकास में भी सहायक सिद्ध होता है। बस जरूरत इस बात की है कि हम तकनीक का प्रयोग पूरी जिम्मेदारी, जागरूकता और संतुलित तरीके से करें। तभी वास्तव में इस दिवस को मनाने की सार्थकता सिद्ध हो सकती है।
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।