वास्तविक के बरक्स आभासी दुनिया
 
                                वास्तविक के बरक्स आभासी दुनिया
सोशल मीडिया पर रोजाना न जाने कितने वीडियो, चित्र और समाचार साझा किए जाते हैं सर्वेक्षण बताते हैं कि इस तरह के वीडियो और समाचार किशोरों और कम उम्र के बच्चों में आत्महत्या, हिंसा, यौन अपराध और संवेदनहीनता पैदा करने में अहम भूमिका निभाते हैं। वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण के बाद समाज, संस्कृति और सोच में जिस तरह के बदलाव की आशंका जताई जा रही थी, वह अब सच साबित होता दिखाई दे रहा है। है।
बीसवीं और इससे जुड़ी साइटों और नए-नए साफ्टवेयरों के इस्तेमाल तथा उसके असर पर तब बहुत कुछ ऐसा लिखा जा रहा था, जिस पर नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह दी जा रही थीं, लेकिन मोबाइल के ऐस नकारात्मक सदी के अंतिम दशक में मोबाइल, , इंटरनेट और की प्रतिक्रियाएं दी जा रही थीं, प्रभाव देखने को मिलेंगे, किसी ने सोचा न होगा। "समाजशास्त्रिया और शोध संस्थाओं के सर्वेक्षण बताते हैं कि पिछले तीन-चार दशक में भारतीय समाज, खासकर युवाओं में एक नकारात्मक प्रवृत्ति देखी जा रही है। बहुत सारे अवसाद का शिकार हो रहे हैं। उनमें चिड़चिड़ापन, अकेले रहने की प्रवृत्ति गहरी हो रही है। माता-पिता, आस- पड़ोस, रिश्तेदारों से उनका लगाव तेजी से कम हो रहा है।
पढ़ाई-लिखाई में भी रुचि तेजी से घट रही है। इसका सबसे बड़ा कारण मोबाइल पर भा ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना और जो कुछ देखा-सुना उसे हासिल करने के लिए हद से गुजर जाने की जाने की भावना का का लगातार बढ़ते जाना है।। जाना है। एक किशोर औसतन हर दिन दस घंटे और आठ से बारह वर्ष के बालक औसतन आठ घंटे मोबाइल के साथ गुजारते हैं आनलाइन मित्रता करना, परिवार [और समाज से हर समय कटे रहना तथा केवल मौज मस्ती करना उनकी जिंदगी का उनकी जिंदगी का मकसद हो गया है। इससे परिवार और समाज दोनों पर गहरा असर पड़ रहा है। मनोवैज्ञानिकों के 1 के मुताबिक सोश सोशल मीडिया का लगातार इस्तेमाल इसकी लत लग जाती है। जब मोबाइल पर कोई खेल रहा होता है या कोई काम पूरा कर रहा होता है, तो उसे जितना हो सके, बेहतर करने की कोशिश करता है। एक बार जब इसमें सफलता मिल जाती है तो यह धीरे- धीरे आदत में बदल जाती है।
यह आदत फेसबुक, एक्स, टेलीग्राम और । जैसे तमाम सोशल मीडिया मंचों पर आठ-दस घंटे लगातार रहने से स्वभाव में बदल जाती है। सोशल मीडिया की लोग हिंसा, प्यार, नफरत, वेदना और का तमाम साइटों के जरिए विश्वासघात जैसी प्रवृत्तियों से गुजरने लगते हैं। आज मोबाइल स्क्रीन पर महज एक स्पर्श से सभी कुछ उपस्थित हो जाता है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक पचासी फीसद लोग संदेश भेजते हैं। इसी तरह चित्र साझा करने और उन्हें देखने में बयासी फीसद लोग शामिल होते हैं। मित्रों के साथ संपर्क में रहने के लिए अस्सी फीसद लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। वीडियो फिल्म और संगीत के लिए सोशल मीडिया का लगभग पचहत्तर फीसद लोग इस्तेमाल करते हैं। अपने निकटतम लोगों के संपर्क में बने रहने के लिए लगभग छिहत्तर फीसद लोग तो विभिन्न मुद्दों पर चर्चा के लिए साठ फीसद से अधिक लोग इसका प्रयोग करते हैं।
'साइट एप्लीकेशन' लगभग पैंसठ फीसद लोग और जीवन साथी की जानकारी रखने के लिए पचास फीसद लोग प्रयोग करते हैं। पिछले दशकों में सोशल मीडिया के दुरुपयोग की वजह से कश्मीर, पूर्वोत्तर भारत, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और असम सहित तमाम कई इलाकों में दंगे-फसाद हुए हत्या, अपहरण, नफरत, यौन अपराध, बदले की भावना और स्वार्थ की अतिशय प्रवृत्तियों को बहुत बढ़ावा मिला ऐसा नहीं कि सोशल मीडिया पर सब कुछ बुरा है, लेकिन मानव मन अच्छाइयों की तरफ न जाकर बुराइयों की ओर ही लपकता है। यही वजह है कि सोशल मीडिया पर फूहड़ सामग्री, वीडियो, आपत्तिजनक संवाद और भावना भड़काने वाले कार्यक्रमों के लेख और वीडियो कुछ ही मिनट में करोड़ों लोगों तक पहुंच जाते हैं। दरअसल, सोशल मीडिया अब महज सूचनाओं के आदान-प्रदान का मंच नहीं रह गया है। यह एक बड़ा कारोबार बन चुका है। इसलिए युवाओं को आकर्षित करने के लिए इसमें बहुत कुछ ऐसी सामग्री भी डाली जाने लगी है, जो युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से कतई उचित नहीं कही जा सकती।
ऐसा भी नहीं कि सोशल मीडिया का असर केवल शहरी इलाकों पर दिखाई दे रहा है। इसने ग्रामीण इलाकों को भी अपनी चपेट में ले लिया है। गांव की सहजता, मौलिकता, आतिथ्य सत्कार, कृषि संस्कृति, लोक धर्म, लोक संवाद, लोक चर्चा, लोक साहित्य, लोक संवाद और लोक 5 धुनों की मीठी गूंज गुम होती जा रही है। गांवों के चौपालों पर जो महफिलें सजती थीं, उसको सोशल मीडिया ने अपने आगोश में समेट लिया है। गांवों का स्वस्थ मनोरंजन अब यू ट्यूब, फेसबुक और वाट्सऐप के आने के बाद कहीं गायब हो गए हैं। महज तीन दशक में सोशल मीडिया ने भारतीय समाज को हर स्तर पर पतन की ओर धकेला है। और मूल्य परक साहित्य की संस्कृति, भाषा, स्वदेशी, शाकाहार, स्वावलंबन अहमियत सोशल मीडिया ने खत्म कर दी। सोशल मीडिया ने युवा पीढ़ी को एक तरह सम्मोहित कर लिया है। इससे उनमें भटकाव, नकारात्मकता, नफरत, बदले की भावना, कामुकता, अविश्वास, जीवन के प्रति लापरवाही, अच्छे कार्यों के प्रति अरुचि, संवदेनहीनता, , क्रूरता, बदपरहेजी, विकृत मनोरंजन, मानसिक तनाव, और विश्वासघात जैसी तमाम प्रवृत्तियां पैदा हुई हैं।
मानवीय, पारिवारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों में बिखराव पैदा करने में सोशल मीडिया की भूमिका से हम सब परिचित हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, विश्व समाज और प्रकृति की अज्ञात चीजों के बारे में जानने में सोशल मीडिया के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। हम इस बात से इनकार नहीं सकते है कि तमाम खामियों के बावजूद सोशल मीडिया शल मीडिया समाज, ज्ञान-विज्ञान, की और अद्यतन को जानने समझने का सबसे बेहतर जरिया है। गांवों लोक संस्कृति, लोक भाषा, लोक साहित्य और लोक संगीत भले संकट में दिखते हों, लेकिन सोशल मीडिया ने इन्हें जीवंत और संरक्षित करने में बड़ी भूमिका निभाई है। विश्व स्तर पर आतंक, पलायन, सांप्रदायिकता, क्रूरता, भ्रष्टाचार, व्याभिचार आदि विकृतियों को पोषित कर सोशल मीडिया ने ऐसी कई समस्याओं और संकटों को जन्म दिया है, जिन्हें दो दशक पहले तक कोई नहीं जानता था इसी तरह अंधविश्वास, पाखंड और कुप्रथाओं को बढ़ाने में भी सोशल मीडिया योगदान कर रहा है।
इससे व्यक्ति, परिवार और समाज तीनों में कमजोरी आई सोशल मीडिया के अधिक इस्तेमाल से अनेक तरह के शारीरिक और मानसिक रोग असमय ही पैदा होने लगे हैं दूसरी ओर कई बीमारियों के बढ़ने की बड़ी वजह सोशल मीडिया की लत है। नई पीढ़ी अपना ज्यादातर वक्त मोबाइल के संग बिताने में अधिक मशगूल दिखाई पड़ती है। इससे उसकी शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक शक्ति और हजता पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। मोबाइल भले जिंदगी का हिस्सा बन गया हो, पर इसने रातों की नींद और दिन का चैन छीनने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चांद एमएचआर मलोट पंजाब
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 







 
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                                                                                                                                     
                                             
                                             
                                             
                                             
                                            