कितनी ऊँची सोच
कितनी ऊँची सोच कहते है कि मानव अपने गुणों व उच्च सोच से अच्छा बनता हैं ।
गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी कितनी बार फरमाते है कि पत्थर का जवाब फुलो से दो । किसी ने आपको कुछ कहा मन के प्रतिकूल तो बोलो नहीं उसका सही करके क्रिया से जवाब दो प्रतिक्रिया से जवाब नहीं दो । सदियों पहले महावीर जन्मे । वे जन्म से महावीर नही थे।
उन्होंने जीवन भर अनगिनत संघर्षों को झेला, कष्टों को सहा, दुखः से सुख खोजा और गहन तप एवं साधना के बल पर सत्य तक पहुँचे वे हमारे लिए आदर्श की ऊँची मीनार बन गए।उन्होंने समझ दी की महानता कभी भौतिक पदार्थों,सुख-सुविधाओं,संकीर्ण सोच एवं स्वार्थी मनोवृत्ति से नही प्राप्त की जा सकती उसके लिए सच्चाई को बटोरना होता हैं ।
नैतिकता के पथ पर चलना होता हैं और अहिंसा की जीवन शैली अपनानी होती हैं। श्रेष्ठता का आधार कोई ऊँचे आसन पर बैठना नही होता हैं । श्रेष्ठता का आधार हमारी ऊँची सोच पर निर्भर करता है। हम कितनी ही आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर ले किंतु जब तक सोच ऊँची एवं व्यावहारिक अनुभव अद्धभूत नही रहेगा हम में कोई ना कोई कमी रहती रहेगी।
सुनी हुई बात हैं पर आज भी आचरण करने योग्य स्वर्ग पाना है या सच्चा सुख ।सोच को अपनी ले जाओ शिखर तक की उसके आगे सितारे भी झुक जाए। न बनाओ अपने सफ़र को किसी कश्ती का मोहताज चलो इस शान से की तूफ़ान भी झुक जाए । थोड़े से ज्यादा निकाल लेना जीवन की सबसे बड़ी कला है ।
इसी से सशक्त बनता हमारे इस जीवन का हर सिलसिला है।यदि सोच बड़ी हो तो परिणाम भी बड़ा आता है और संकल्प मजबूत हो तो सागर को भी आदमी अपनी बाहों के सहारे तर जाता है । फिर देखो कमाल इसलिए ऊँची रखे सोच । प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)