सुन्दरता बनाम अच्छा स्वभाव
सुन्दरता बनाम अच्छा स्वभाव
कहते कि केवल रूपवान बिना गुणों वाला उससे पीछे है जो गुणों से तो सुन्दर हैं लेकिन रूपवान नहीं हैं । सुन्दरता हो हमारे अच्छे स्वभाव कि ।
सुंदरता वो नहीं जो हमे आईने में दिखाई देती है बल्कि सुंदरता गुणों की होनी चाहिए जो दिल से महसूस की जाए। आज भी गोरा रंग ही पसंद किया जाता है। बौद्धिक क्षमता , कार्य क्षमता आदि के बदले शारीरिक आकर्षण देखा जाता है। बाहरी सुंदरता उम्र के साथ ढल जाती है । शरीर तो नाशवान है पर आन्तरिक सौंदर्य उम्र के साथ सदैव साथ में स्थाई रहता है ।
व्यक्ति अगर दुनिया में नहीं रहता है तो भी आंतरिक (सुंदरता )गुणों व अच्छा स्वभाव के बल पर सब के दिलों में राज करता है ।सब उसके कार्य को याद करते हैं । ऐसे बहुत से लोग है जो बाह्य दृष्टि से सुन्दर नहीं है लेकिन कृत्रिम तरीके अपनाकर सुन्दर दिखने का प्रयास करते हैं पर आंतरिक सौन्दर्य की अभिवृद्धि के लिए प्रयत्नशील भी नहीं होते हैं । ऐसे भी है लोग हैं जो जन्म से बाह्य दृष्टि से रूपवान होते हुये भी उस रूप को गौण करके आन्तरिक सौन्दर्य की अभिवृद्धि के लिए उद्यत हुए हैं ।
प्रसङ्ग वश मैं एक ऐतिहासिक घटना पाठकों के साथ बांट रहा हूं । ऋषभदेव भगवान की पुत्री सुन्दरी का उत्कृष्ट उदाहरण हमारे सामने है । उनका जैसा बाह्य रूप था उसकी शायद आज हम कल्पना भी नहीं कर सकते है , लेकिन वो रूप जब उनकी दीक्षा में कुछ अंश तक बाधक बना तो उन्होंने चिन्तन किया कि बाह्य सुन्दरता आंतरिक सुन्दरता की प्राप्ति में बाधक बने उस बाह्य सुन्दरता से क्या प्रयोजन रखना । उन्होंने आयम्बिल तप शुरू किये । 60,000 वर्षों तक लगातार आयम्बिल करने के बाद उनके शरीर की ऐसी हालत हो गई कि वो पहिचान में भी नहीं आती । बाद में उन्हें महाराज भरत से दीक्षा की अनुमति मिली । यह है बाह्य सौन्दर्य से आन्तरिक सौन्दर्य की तरफ प्रस्थान । 60,000 वर्षों तक दृढ़ संकल्प के साथ कठिन साधना । इसका परिणाम उसी भव में मोक्ष की प्राप्ति । इसलिये सुन्दरता बनाम अच्छा स्वभाव में अगर करना हो चुनाव तो आँख मूँद कर करिए अच्छा स्वभाव का चुनाव । प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )