क्षमापना महापर्व -
क्षमापना महापर्व -
क्षमा अगर हमारे पास नहीं हैं तो जीवन नहीं है, जहाँ क्रोध रूपी विष नहीं है वही अमृत है क्योकि क्षमा शांति की उपासना हैं ।मैत्री और अहिंसा की भावना हैं ।क्षमा का आदान प्रदान करना अपनी आत्मा को समुज्ज्वल और सरल बनाना हैं ।आंतरिक शत्रुओं से अपनी सुरक्षा हेतु ,क्षमा का कवच पहनना जरुरी है ।
क्षमा मांगना सच में अमृत की धार बहाना हैं इससे विष तो धुलता ही है और मैत्री का अमृत मय झरना बहने लगता हैं । सच्ची क्षमा याचना शब्दोच्चारण के साथ मन में जमे शत्रुता के भावों को बहा देता है । साथ मे रहनें से मनमुटाव, बोलचाल, तकरार आदि होना तो स्वाभाविक हैं,लेकिन सामने वाले से कोई गलती हो गई हो तो, सरल मन से माफ कर देना चाहिए, और हमसे स्वंय से कोई गलती हो गई हो माफी मांग लेनी चाहिए।
अतः गलती स्वीकार करना उस झाडू के समान है,जो गंदगी को हटाकर उस सतह् को साफ कर देती है। क्षमा शूरवीरों का भूषण है । क्रोध के उत्तर में क्षमा का भाव हो , वैर-विरोध में प्रेम, सद्भाव , दीन-दुखियों के प्रति करूणा सहयोग आदि इसके व्यवहारिक प्रयोग हैं । इस पर्व पर हम किसी को भी उसकी भूल पर क्षमा करने में नहीं हिचकिचाएँ । कहते हैं कि घृणा के भावों से निष्कासित उर्जा आदमी को गर्त में ले जाएगी क्योंकि वह सदैव नकारात्मक उर्जा होगी। किन्तु इसके विपरीत क्षमा की उर्जा आदमी के जीवन को सकारात्मकता से भर देगी क्योंकि वह सकारात्मक उर्जा होगी।अतः हम क्षमाशील बने रहे यही हमारे लिए काम्य हैं ।
आज के दिन विगत में हुई भूलों को हम सरलमना स्वीकारें , पुनरावृत्ति न हो इनकी, सजगता से यह धारें । बैर-द्वेष, कटुता-शत्रुता आदि को मिटाकर हम कलुषित आत्मकणों को स्वच्छ बनायें ।दुराभाव के कचरे को फेंक , मन को हम हल्का बनायें व मनभेद हटायें,सद्भावना के कण फैलायें । बीज प्रेम के बो कर हम ख़ुशहाली का खेत लगायें जिससे हर पल्लव ,हर फूल मुस्काये ।
हम इस मृदु पवन की स्नेहिल धारा में , इक-दूजे को बहायें । अहम् से अर्हम् बन लहलहायें । विगत में मेरे द्वारा कोई भी कटु शब्द बोलने या लिखने मे आया हो या मेरे व्यवहार से आपको किंचित भी आशातना हुई हो तो मैं शुद्ध अंतःकरण से आप सबसे क्षमा याचना करता हूँ ।
प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)