Editorial : डिजिटल पत्रकारिता आधुनिक दुनिया को कैसे प्रभावित करती है?
डिजिटल पत्रकारिता आधुनिक दुनिया को कैसे प्रभावित करती है?
डिजिटल पत्रकारिता आधुनिक दुनिया को कैसे प्रभावित करती है?
डिजिटल पत्रकारिता ने आधुनिक दुनिया में हमारे समाचार उपभोग, उत्पादन और समझने के तरीके को बदल दिया है, जिससे समाज कई महत्वपूर्ण तरीकों से प्रभावित हुआ है: 1. सूचना की गति और पहुंच डिजिटल पत्रकारिता वास्तविक समय में समाचार अपडेट प्रदान करती है, जिससे जानकारी लगभग तुरंत उपलब्ध हो जाती है। यह तात्कालिकता दुनिया भर के लोगों को मिनटों के भीतर वर्तमान घटनाओं, संकट स्थितियों या ब्रेकिंग न्यूज के बारे में सूचित रहने की अनुमति देती है। पारंपरिक प्रिंट मीडिया के विपरीत, डिजिटल समाचार प्लेटफ़ॉर्म इंटरनेट एक्सेस के साथ कहीं से भी पहुंच योग्य हैं, वैश्विक पहुंच बढ़ाते हैं और अधिक विविध दर्शकों को सूचित रहने में सक्षम बनाते हैं।
2. इंटरएक्टिव और आकर्षक कहानी सुनाना डिजिटल पत्रकारिता कहानी कहने को बढ़ाने के लिए वीडियो, इन्फोग्राफिक्स, सोशल मीडिया और इंटरैक्टिव मानचित्र जैसे मल्टीमीडिया टूल का लाभ उठाती है। यह अन्तरक्रियाशीलता पाठकों को अपनी गति से जानकारी तलाशने और विभिन्न प्रारूपों के माध्यम से जटिल कहानियों को समझने की अनुमति देती है। सोशल मीडिया ने दर्शकों को पत्रकारों के साथ बातचीत करने और समाचार चर्चाओं में भाग लेने का एक तरीका भी दिया है, जिससे पत्रकारिता पहले से कहीं अधिक दोतरफा बातचीत बन गई है। 3. विविध परिप्रेक्ष्यों का विस्तार डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म स्वतंत्र पत्रकारों, ब्लॉगर्स और छोटे समाचार आउटलेट्स को दर्शकों तक अधिक आसानी से पहुंचने की अनुमति देते हैं। इसने अधिक विविध दृष्टिकोणों और आवाज़ों को जन्म दिया है, मुख्यधारा की कहानियों को चुनौती दी है और वैकल्पिक दृष्टिकोण पेश किए हैं। परिणामस्वरूप, दर्शक विचारों के व्यापक स्पेक्ट्रम तक पहुंच सकते हैं, जिससे अधिक सहानुभूति, जागरूकता और वैश्विक मुद्दों की समझ को बढ़ावा मिलता है।
4. समाचार उद्योग में आर्थिक बदलाव डिजिटल बदलाव ने पारंपरिक मीडिया संगठनों को अनुकूलन के लिए मजबूर किया है, कई ऑनलाइन सदस्यता मॉडल की ओर बढ़ रहे हैं या डिजिटल विज्ञापन पर निर्भर हैं। इस बदलाव ने समाचारों को उन लोगों के लिए अधिक सुलभ बना दिया है जो प्रीमियम सामग्री के लिए भुगतान कर सकते हैं, साथ ही उद्योग पर ग्राहकों को आकर्षित करने और बनाए रखने का दबाव भी डाला है। विज्ञापन राजस्व Google और Facebook जैसे तकनीकी दिग्गजों की ओर स्थानांतरित हो गया है, जो अक्सर उपयोगकर्ताओं के लिए समाचार तैयार करते हैं। इसने समाचार आउटलेट्स के संचालन के तरीके को नया रूप दे दिया है, कुछ समाचार संगठन लाभप्रदता बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 5. गलत सूचना और "फर्जी समाचार" की चुनौतियाँ डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म जानकारी को तेजी से फैलाने में सक्षम बनाते हैं, लेकिन वे गलत सूचना या "फर्जी समाचार" प्रसारित करना भी आसान बनाते हैं। सोशल मीडिया एल्गोरिदम सनसनीखेज या भ्रामक सामग्री को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर सकते हैं, जिससे प्रतिध्वनि कक्ष बन सकते हैं जो कुछ पूर्वाग्रहों को मजबूत करते हैं। परिणामस्वरूप, डिजिटल पत्रकारिता को दर्शकों को विश्वसनीय स्रोतों की पहचान करने के बारे में शिक्षित करते हुए विश्वसनीयता और सार्वजनिक विश्वास बनाए रखने की चुनौती का सामना करना होगा।
6. नागरिक पत्रकारिता और भीड़-स्रोत समाचार स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के साथ, आम नागरिक अब समाचारों को कैप्चर और साझा कर सकते हैं। यह नागरिक पत्रकारिता उन मुद्दों पर ध्यान दिलाने में महत्वपूर्ण रही है जो अन्यथा रिपोर्ट नहीं किये जा सकते। हालाँकि, यह नैतिक और गुणवत्ता नियंत्रण चुनौतियों का भी परिचय देता है, क्योंकि सभी नागरिक-जनित सामग्री की तथ्य-जाँच नहीं की जाती है या उसे पत्रकारिता मानकों के अनुरूप नहीं रखा जाता है। 7. सामाजिक आंदोलनों और राजनीतिक परिवर्तन पर प्रभाव डिजिटल पत्रकारिता ने जलवायु परिवर्तन, नस्लीय असमानता और मानवाधिकारों के हनन जैसे मुद्दों पर दृश्यता लाकर सामाजिक न्याय और राजनीतिक जागरूकता को बढ़ावा देने में एक शक्तिशाली भूमिका निभाई है। हैशटैग, ऑनलाइन याचिकाएं और डिजिटल अभियानों को पत्रकारिता के माध्यम से बढ़ाया जाता है, जिससे लोगों के लिए मुद्दों पर संगठित होना और मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करना आसान हो जाता है।एक वैश्विक स्तर. संक्षेप में, डिजिटल पत्रकारिता ने जनता की राय, लोकतांत्रिक प्रवचन और वैश्विक जागरूकता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हुए समाचारों के उत्पादन, उपभोग और साझा करने के तरीके को फिर से परिभाषित किया है। प्रौद्योगिकी की प्रगति, नए डिजिटल रुझानों को अपनाने और आधुनिक समाज में मीडिया की भूमिका को नया आकार देने के साथ-साथ इसका विकास जारी है।
◆ कहानी 'अधखुली गिरह’
मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि जीवन में कुछ ऐसा, कभी मेरे साथ भी घट सकता है। घट सकता है नहीं, घट चुका था। यह जो फूलों से सजे पलंग पर, दुल्हन का लाल जोड़ा पहने, सोलह सिंगार किये, बाल बिखराये, मुँह खोले बेसुध सी पड़ी लड़की सो रही है, उससे कल मेरी शादी हुई है और आज शाम ही मैं बाजे-गाजे के साथ उसे विदा करा कर बरेली से दिल्ली, अपने घर लाया हूँ। रात काफी हो चुकी है और भावनात्मक और मानसिक रूप से पूरी तरह से टूटा हुआ मैं,अभी थक-हार कर यहाँ, अपने कमरे के बाहर वाली एनेक्सी में आकर, सोफे पर ढह गया हूँ। मेरा दिमाग अभी भी कुछ देर पहले घटी घटना की जाँच-पड़ताल में लगा है। माँ मेरे लिए सर्वोपरि थीं। पापा के बाद, मुझे और दीदी को उन्होंने अकेले ही पाला था। पापा की दोनों फैक्ट्रियों का काम अकेले सम्हालने में काफी मुश्किलों का सामना करते हुए देखा था हमने उन्हें। दीदी की शादी हो चुकी थी। बड़े होकर मैंने भी पढ़ाई पूरी कर,उनके साथ काम में हाथ बँटाना शुरू कर दिया था। मैं माँ के बहुत अधिक करीब था। किसी भी हाल में उनका दिल नहीं दुखा सकता था। वैसे तो मैं किसी का भी दिल नहीं दुःखा सकता था।
गरीबों और दुखियारों के लिए भी अक्सर कुछ-न-कुछ करता ही रहता था। दोस्त मुझे 'मामा'ज़ बॉय' कहकर चिढ़ाते थे। विवाह के लिए भी मैं तैयार नहीं होता था। आजकल की लड़कियाँ कैसी होती हैं इसका अंदाजा था मुझे। कहीं आने वाली लड़की ने मेरे परिवार को अपना न माना तो? मुझे लेकर अलग रहने की मांग की तो? न बाबा न, इन सब पचड़ों में पड़ना ही नहीं था मुझे । पर मेरी इस बेतुकी ज़िद को माँ और दीदी ने नहीं माना। मेरे पीछे पड़-पड़ कर इन लोगों ने मेरी शर्त मानते हुए शादी के लिए हाँ कहलवा ली। मेरी एकमात्र शर्त यही थी कि लड़की बहुत अधिक आज़ाद ख्यालों वाली, मॉडर्न और फैशन की दीवानी न हो, बल्कि धीर-गंभीर व्यक्तित्व की स्वामिनी हो, जो मेरी माँ और परिवार को उचित आदर-सम्मान दे सके। मैंने माँ और दीदी पर ही सब कुछ छोड़ दिया था। अच्छी तरह से देखभाल कर, एक सुशील और घरेलू सी लड़की, जो माँ से भी बात तक करने में शर्मा रही थी, पसंद की गयी थी। माँ और दीदी पहले ही इस लड़की और इसके घरवालों से मिल चुकी थीं और अंदरूनी तौर पर पसंद भी कर चुकी थीं। बस एक बार, औपचारिकता पूरी करने के लिए ही, मैंने एक मॉल में लड़की, उसकी माँ और भाई-भाभी के साथ एक छोटी सी मुलाकात कर ली थी और शादी के लिए हामी भर दी थी। मेरे घर वालों की तरह, लड़की वाले भी शादी जल्दी ही चाहते थे तो एक महीने के बाद ही, यानि कल हमारी शादी हुई थी और आज मैं अपनी दुल्हन को बाजे-गाजे के साथ, बरेली से विदा करा कर, अपने घर दिल्ली ले आया था।
खूब रौनक और उत्साह का माहौल था घर में। मेरे दोस्त, रिश्ते की भाभियाँ, बहनें, यहाँ तक कि भाई लोग भी मुझे छेड़ने में लगे थे। मैं तो खैर, कभी भी अधिक बोलने और हंसी मज़ाक करने वाला नहीं रहा था, पर मुझे इस लड़की की अच्छी बात यह लगी थी कि वह इस सब हंसी मज़ाक का हिस्सा नहीं बन रही थी। किसी को कुछ जवाब नहीं दे रही थी, बस, धीरे से सिर झुका कर, शालीनता से मुस्कुरा भर देती थी। तो इतनी तसल्ली तो मुझे हो ही गयी थी कि मेरी नयी नवेली पत्नी आजकल के चलन के मुताबिक चंचल नहीं है, सोबर नेचर की है, जैसी मैं चाहता था। कुल मिलाकर लड़की और उसकी फैमिली पसंद आयी थी मुझे। विदा के समय, बरेली से वापस दिल्ली आने वाली, हम बारातियों की गाड़ियों के संग, एक गाड़ी उसके भाई-भाभी की भी थी। अपनी कार में वे बराबर मेरी कार के संग संग चलते रहे थे और रास्ते में भी उसे हाथ हिला-हिला कर हंसाते रहे थे। जहाँ दिव्यांशी, हाँ यही नाम था उसका, रोने-रोने को होती, उसके भैया-भाभी उसे हंसा देते और वह रिलैक्स हो जाती थी। दीदी और उसके सरदार पति यानि मेरे योगेंद्र जीजाजी और हम सब खुश थे कि कितना केयरिंग हैं इस परिवार में सब। घर यानि दिल्ली पहुँचते-पहुँचते सांझ होने को आयी थी। घर में हर तरफ शोर-शराबे और हँसी-मज़ाक के दौर चल रहे थे।
माँ ने उन लोगों को भी खाना खाकर ही जाने के लिए रोक लिया था। देव्यांशी के भैया-भाभी दोनों उसे उसे खूब देर तक पता नहीं क्या क्या समझाते रहे थे। मैं आते जाते देख रहा था कि वह भी सिर हिला-हिला कर सब समझ रही थी। खाना-पीना निपटते-निपटते दस बजने को आये थे, तब वे लोग उसे सुला कर वापस लौट गए थे। उनके जाने के बाद मैं भी बाहर अपने दोस्तों के बीच पहुँच गया था। सब पूरी मस्ती के मूड में थे। काफी देर बाद दीदी ने आकर सब दोस्तों को जबरदस्ती उनके घरों को रवाना किया। कुछ रिश्तेदार, जो हमारे घर में ही ठहरे हुए थे, वे भी थकान के कारण अब तक अपने-अपने कमरों में सोने जा चुके थे। दीदी ने मुझे ठेला तो मैं भी शर्माता हुआ अपने कमरे में चला आया था। कमरे में घुसते ही मैंने देखा, इस बीच मुझसे छुपा कर मेरा कमरा बड़ी सुंदरता से सजा दिया गया था। ऊपर से पलंग पर लटकती रजनीगंधा और गुलाबों की लम्बी-लम्बी की लड़ियों के बीच वह सो रही थी। मैंने भारी-भरकम शेरवानी उतारी और कुछ हलके कपड़े निकालने के लिए अपनी आलमारी खोली। मैं जान-बूझ कर थोड़ी अधिक ही खटर-पटर कर रहा था, जिससे पलंग पर सोइ यह शख़्स, जो अब तक मेरी पत्नी बन चुकी थी, जाग जाए।
मुझसे बात करे और हम दोनों एक दूसरे को थोड़ा बहुत जानें तो सही। जैसी मेरी तमन्ना थी, थोड़ी देर बाद ही पलंग पर कुछ हलचल हुई और फिर वह उठ कर बैठ गयी। उसने अपने आसपास चारों तरफ निगाहें दौड़ायीं जैसे किसी को ढूंढ रही हो। मैं आलमारी का खुला पल्ला पकड़े पीछे मुड़कर चुपचाप उसकी ओर देख रहा था। मैंने पहले से ही सोच रखा था कि अपने कई दोस्तों की तरह, मैं पति नाम का हिटलर बन कर नहीं रहूँगा। बल्कि अपनी पत्नी को समानता का दर्ज़ा दूँगा और बहुत प्यार करूँगा। जब उसकी आँखें मेरी आँखों से टकरायीं, तब मैं आँखों ही आँखों में, उसे ढांढस बंधाते हुए मुस्कुराया ताकि उसे लगे कि वह किसी अजनबी के साथ नहीं, वरन अपने घर में, किसी अपने के ही साथ है। पर उसने बड़ी व्याकुलता से पूछा "भैया कहाँ हैं?" "वे लोग तो चले गए" मैंने प्यार भरे स्वर में ही दुलराते हुए जवाब दिया। मेरा इतना कहना भर था कि वह बिजली की तेज़ी से बिस्तर से नीचे उतरी और चीखती हुई दरवाज़े की तरफ भागी, "भैया, भैया, कहाँ हो?", जल्दी आओ"। इस पूर्ण रूप से अनअपेक्षित और अचानक हुए क्रिया-कलाप के चलते मैं अवाक सा आलमारी का अधखुला पल्ला पकड़े वहीं खड़ा रह गया था और वह दरवाज़े की चिटखनी खोल, बला की फुर्ती से बाहर जा चुकी थी। कुछ पलों बाद मुझे सुध आयी, तो मैं भी तेज़ी से कमरे से बाहर की तरफ दौड़ा।
हमारे बड़े से दोमंजिले घर का अभी उसे कुछ अंदाजा नहीं था, वह उतावली से 'भैया', 'भाभी', 'मम्मी' पुकारती हुई इधर-उधर उन्हें ढूंढने की कोशिश कर रही थी। कॉरिडोर में एक अजीब सा दृश्य था। नख-शिख सोलह श्रृंगार किये, बालों में गजरा सजाये, लाल जोड़ा पहने, एक दुल्हन, उन्मादिनी सी इधर से उधर भाग रही थी । पीछे उसका लम्बा आँचल धरा को बुहारता चल रहा था। वह तेज़ी से सीढ़ियाँ उतरने ही वाली थी की मैंने दौड़ कर उसे पीछे से पकड़ लिया। मुझे डर था कि कहीं नीचे के कमरों में ठहरे हुए रिश्तेदार इस नाटक के शोर से जागकर बाहर न आ जाएं। उसे अकेले सम्हालने में मुझे काफी मशक्कत करनी पड़ रही थी। मैंने बाएं हाथ से उसका मुँह दबोच लिया जिससे वह चीख न पाए और दायें हाथ से उसका दाहिना हाथ पकड़ मैं उसे थोड़ा धकेलते हुए अपने कमरे की तरफ लाने लगा। तब तक दीदी अपने कमरे से बाहर आ गयी। वहां का दृश्य देख पहले तो वह भी भौचक सी खड़ी रह गयी। फिर जाने वह कितना समझी, कितना नहीं, पर उसने भी प्यार से पुचकार-पचकार कर इस अजूबा लड़की को अंदर लाने में मेरी मदद की।
अंदर कमरे में बैठा कर दीदी ने उसे पानी दिया, जो उसने नहीं पिया। दीदी उसे बहुत प्यार से समझाती रही कि यह उसी का घर है और यहाँ उसे डरने की कोई ज़रुरत नहीं। फिर भी वह बहुत डरी हुई दिख रही थी। बिना आवाज़ के सिसकियाँ ले-लेकर रो रही थी। डरे हुए तो हम दोनों भी बुरी तरह थे। आज के ज़माने में इतनी ज़्यादा घबराने वाली दुल्हन की तो हमने कल्पना भी नहीं की थी। उसे प्यार से तसल्ली देकर कि कोई बात नहीं है, मैं अभी तुम्हारे भैया को बुला कर लाता हूँ, मैं दीदी के पास उसे छोड़ कर माँ के कमरे में आ गया। माँ को जगा कर मैंने उन्हें पूरी बात बतायी। वह बुरी तरह से हड़बड़ा गयीं। जब तक मैं माँ को साथ लेकर वापस अपने कमरे में वापस पहुंचा तो पता चला वह लड़की कमरे से गायब थी और दीदी उसे ढूंढ रही थी। दीदी का बेटा सनी उठ कर, रोते हुए, उसे ढूंढता हुआ वहाँ आ गया था, तो वह, बस दो मिनट के लिए उसे वापस योगेंद्र जीजाजी के पास छोड़ने गयीं थीं। वापस आईं तो यह लड़की कमरे से गायब थी। अब यह एक नयी समस्या उठ खड़ी हुई थी।
उस सात कमरों वाले दोमज़िले घर में, जहाँ नीचे के सभी कमरों में मेहमान ठहरे हुए हैं, नयी-नवेली दुल्हन को कहाँ-कहाँ जाकर ढूंढें ? तभी ऊपर कॉरिडोर से हमने नीचे देखा कि घर का मुख्य द्वार खुला हुआ है। पास ही टूटा हुआ गजरा भी पड़ा था। हम समझ गए कि वह घर से बाहर जा चुकी है। बिना एक भी पल गँवाये, हम नीचे भागे। दीदी ने स्कूटी निकाली, मैंने दौड़ कर अंदर से कार की चाभी लेकर आया और हम दोनों विपरीत दिशाओं में चल दिए। थोड़ी दूर जाकर ही मुझे वह सड़क पर बदहवास सी भागते हुए दिखी। शायद बिना कुछ सोचे समझे वह बस भागी जा रही थी, क्योंकि बरेली तो दूसरी दिशा में था। सड़क पर हलकी आवाजाही अभी भी थी। लोग उसे देखते हुए जा रहे थे। किनारे पर कुछ ऑटो और रिक्शे वाले भी खड़े थे। जो तमाशा सा देख रहे थे। अगर मैं इस समय यहाँ न पहुंचा होता तो? सोच कर ही मेरा जी काँप गया। मैंने एक तरह से जबरन उसे गाड़ी में ठूँस कर चाइल्ड लॉक लगाया। दीदी को फोन कर बताया और उसे पकड़ कर सीधा ऊपर अपने कमरे में पहुँच गया। गनीमत थी कि रास्ते में किसी रिश्तेदार से टक्कर नहीं हुई, वरना पता नहीं मैं क्या कहानी बनाता। कमरे में पहुँच कर मैंने उसे पलंग के सिरहाने पर तकिये लगाकर बैठा दिया। रो तो वह अब भी रही थी, पर चीख नहीं रही थी। उसकी हालत देखकर, अब तक हमें उसकी दिमागी हालत के बारे में शक़ होने लगा था। हाँलाँकि उस पर मुझे तरस भी आ रहा था। पर तरस तो मुझे स्वयं पर और अपने घरवालों पर भी बहुत आ रहा था जिनके सामने यह भयानक सच्चाई मुँह खोले खड़ी थी।
जाने हमें कितनी जगहंसाई झेलनी पड़ेगी। कितनी बातें, कितने ताने सुनने होंगे। धीरे-धीरे लड़की वालों की सारी योजना, चालाकी से उठाया हुआ उनका एक-एक क़दम, सब कुछ हमें समझ आ रहा था। इस बीच माँ और दीदी उसे सम्हालने में लगी थीं। दीदी ने उसे पानी का गिलास पकड़ाया तो वह उसने ज़ोर से हाथ मार कर फ़ेंक दिया। 'झनाsssssssssक' की आवाज़ के साथ, फर्श पर दूर तक पानी और कांच के टुकड़े बिखर गए थे। माँ और दीदी के चेहरों पर क्रोध साफ़ झलक रहा था। उनके चेहरों की भाव-भंगिमाएं देख, वह और अधिक खीझ रही थी। वह स्वयं भी अस्त व्यस्त सी हो रही थी। बिस्तर पर बैठी कभी तकिया पटकती, कभी दाँत पीसती। बिस्तर पर यहाँ-वहाँ उसकी चूड़ियां, बिछिये, गज़रे बिखरे पड़े थे। कहाँ तो एक ओर मैंने आज के लिए क्या-क्या स्वप्न संजोये थे और कहाँ यह मुसीबत गले पड़ गयी थी। हमारे क्रोध की सीमा नहीं थी। मैंने उसके भैया को फ़ोन लगाया कि आप लोग वापस आ जाइये। यहाँ इसे अचानक पता नहीं क्या हो गया है। उधर से जवाब आया, "वापस तो नहीं आ पाएंगे, हम घर पहुँचने ही वाले हैं। अब कल दोपहर तक ही पहुँच पाएंगे वहाँ"। फिर बोले, "दिव्यांशी के पर्स के बाहर वाली पॉकेट में जो दवा रखी है, वह किसी तरह उसे खिला दें। कुछ देर में ही वह ठीक हो जायेगी।
घबराने की बात नहीं है"। इसके बाद थोड़ा ठहर कर मृगांक भैया ने जो कहा, उसने मेरे होश उड़ा दिए। उन्होंने कहा, "अब जैसी भी है, वह आपकी पत्नी है। उसे इस तरह के दौरे पड़ते हैं कभी-कभी। आप लोग नए हैं उसके लिए, इसलिए दौरा पड़ गया होगा। धीरे-धीरे ठीक हो जायेगी। आप परेशान न हों"। मेरा क्रोध फट पड़ने को हो आया, "परेशान न होऊँ? किस मुँह से आप यह कह रहे हैं? आप लोगों ने अपनी ………………", तभी मेरी नज़र उस पर पड़ी। तत्क्षण बिना कुछ सोचे-समझे मेरी उँगलियों ने फोन काट दिया। क्योंकि इतने गुस्से में होने के कारण उस समय मेरे मुँह से जो शब्द निकलने वाले थे, वह बहुत अप्रिय होते और उनका सबसे अधिक असर मेरे सामने बैठी इस लड़की पर होता, जो रोना भूल कर, मुँह खोले, विस्फारित नेत्रों से मेरी ओर ताक रही थी। शायद वह वस्तुस्थिति को समझने की कोशिश कर रही थी। उस समय अपने अंदर मचे हुए तूफ़ान के बावजूद मुझे ऐसा लगा, जैसे वह एक छोटी सी बच्ची हो जिसे यह भी समझ नहीं है कि उसकी ग़लती क्या है। उसके घर वालों से बात करके इतना तो मुझे समझ आ ही गया था कि अब जो भी करना है, हमें ही करना है, हमें मतलब, मुझे।
मैंने इशारे से दीदी और माँ को वहां से हटने को कहा। थोड़ी आनाकानी के बाद वे लोग बाहर चली गयीं। फर्श पर बिखरे पानी और कांच के टुकड़ों से बचता और अपने अंदर के तूफ़ान को किसी तरह दबाता हुआ मैं धीरे से उसके पास पहुंचा और सहानुभूति से उसके सिर पर फेरने लगा। उसके कंधे और उसका हाथ थपकता रहा। शायद इस समय तक वह काफी थक चुकी थी, इसीलिये उस पर काबू पाया जा सका। मैंने उसे बच्चों की तरह बहला-फुसला कर दवा खिला दी। थोड़ी देर में वह बैठे-बैठे मेरे ही कंधे पर सिर टिका कर सो गयी। मैं धीरे से उसे बिस्तर पर चादर ओढ़ा कर लिटा दिया और कमरे से बाहर आ गया। और अब,मैंने अपने कमरे के बाहर ही, एनेक्सी में रखे सोफे पर आकर ढह गया हूँ। मेरा दिमाग अभी भी कुछ देर पहले घटी घटना की जाँच-पड़ताल में लगा है। थोड़ी देर में माँ भी आकर मेरे पास ही सोफे पर बैठ गयीं तो मैं अपने विचारों की दुनिया से बाहर आ गया। चुपचाप मेरे कमरे की सफाई कर दीदी, और सनी को सुलाकर योगेंद्र जीजाजी भी वहीं आ गए। हमारे दिमाग़ों में ढेर सारी उथल-पुथल मची हुई थी। मृगांक भैया और रंजीता भाभी के फोन उसके बाद से बराबर स्विचड ऑफ आ रहे थे। कोई लड़की इस तरह से ससुराल से कैसे भाग सकती है। अगर शादी से नाख़ुश थी तो पहले ही मना कर सकती थी। यह कैसे दौरे पड़ते हैं इसे। हमें कुछ नहीं पता था कि हमारे साथ हुआ क्या था। अगर किसी रिश्तेदार को हमसे पहले इसके बारे में कुछ पता चल गया तो ?
कहीं लड़की वालों ने हमारे साथ ------? आदि आदि। सवालों की लाइनें लगी थीं, पर जवाब हम चारों के ही पास नहीं थे। कल शाम को हम रिसेप्शन देने वाले थे। जिसमे शहर के कई प्रतिष्ठित लोग आने वाले थे। सबसे बड़ी टेंशन इस समय यही थी कि रिसेप्शन बिना किसी तमाशे के निपट जाए और दुल्हन की मानसिक ग्रंथि के विषय में किसी दूसरे के पहले हमें पता चले कि असलियत है क्या। सच्चाई क्या है। अगर रिसेप्शन के दौरान इसे फिर से दौरा पड़ गया या किसी रिश्तेदार को ज़रा भी शक़ हो गया तो हमें कितनी शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी। वैसे भी हमसे जलने वालों की कमी नहीं थी और इस केस में तो अभी हम खुद ही बिलकुल ब्लैंक थे। इस समय हमारे पास इसके अलावा कोई चारा नहीं था कि रिसेप्शन के बाद, रात या अगले दिन सुबह तक, जब तक सभी मेहमान वापस न चले जाएँ, हम - साम, दाम, दंड, भेद - किसी भी तरह इस लड़की को सम्हाले रहें। एनेक्सी में बैठे-बैठे हम देर रात तक अटकलें लगाते रहे । सुबह होने वाली थी। हम सब कुछ देर सोने के लिए आ गए। उस लड़की की वजह से, मुझे अपने कमरे में सोने जाते भी डर लग रहा था। तो मैं कमरे की बाहर से कुण्डी लगा कर, वहीं एनेक्सी में सोफे पर ही सो गया । दूसरे दिन सुबह जब दीदी तैयार होकर इधर आ गयीं, तो मैं माँ के कमरे में जाकर सो गया था और काफी देर तक सोता रहा था।
जब मैं उठा तो घर का माहौल काफी खुशगवार था। सजी-धजी घूंघट काढ़े उस लड़की को दीदी और उसकी भाभी, मुँहदिखाई के लिए रिश्तेदार औरतों से मिलाने नीचे ले जा रही थीं। मैंने चौंक कर इशारे से मना भी किया तो उसकी भाभी ने मुस्कुरा कर इशारों से ही मुझे तसल्ली दी कि कुछ नहीं होगा आप मत घबराइए। फिर भी जिज्ञासावश, मैं भी उन लोगों के पीछे-पीछे नीचे ड्राइंग रूम में आकर बैठ गया था । मन में डर था कि कहीं यहाँ मेरी ज़रुरत न पड़ जाए। रिश्तेदार औरतें उन लोगों को घेरे बैठी थीं, दिव्यांशी को छेड़ रही थीं। मैंने देखा उनकी हंसी-ठिठोली की बातों पर यह लड़की सिर्फ सिर झुका कर मुस्कुरा भर देती थी। लोगों की बातों के जवाब देने का काम तो उसकी भाभी और मेरी दीदी ही सम्हाल रही थीं। औरतें नयी दुल्हन के भोलेपन पर बलिहारी हुई जा रही थीं। जल्दी ही उसे वहां से उठा लिया गया। दीदी और उसकी भाभी उसे लेकर रिसेप्शन के लिए तैयार होने ब्यूटी पार्लर चली गयीं। उन लोगों को वहां से सीधे वेन्यू पर ही पहुंचना था। वह चली गयी तो मैंने राहत की सांस ली। मैं खुश था कि आज सुबह से हम दोनों का आमना-सामना नहीं हुआ था। शाम हो चुकी थी। फंक्शन के लिए तैयार होकर, इंतज़ाम वगैरह देखने के लिए मैं और योगेंद्र जीजाजी काफी पहले से ही वेन्यू पर पहुँच चुके थे। डेकोरेटर्स ने सजावट बिलकुल वैसी ही की थी, जैसी हमने पसंद की थी।
एंट्री-गेट के काफी आगे से ही से ही गुलाबी और नीली बिजली की लड़ियाँ ऐसी आभा प्रस्तुत कर रही थीं मानों आप इंद्रलोक में प्रवेश करने जा रहे हों। पूरे घुमावदार पैसेज में दोनों तरफ घने पेड़ों के झुरमुट में रंगीन बल्ब और नीचे ज़मीन पर पानी, फूलों और दीयों से भरे भव्य कलश सजे थे। साथ में गहरे मनभावन रंगो से भरवां रंगोली भी रची हुई थी। मैं सारा इंतज़ाम देखता हुआ बाहर आ ही रहा था कि तभी पैसेज में वह गाड़ी आकर रुकी जो दीदी, रंजीता भाभी और उस लड़की को ब्यूटी पार्लर से लाने गयी थी। दीदी, रंजीता भाभी गाड़ी से उतरीं फिर दोनों ने मिलकर उसे उतारा। नयी दुल्हन के श्रृंगार का सारा ताम-झाम सहेजने के बाद, कार से उतर कर, अपना आँचल सम्हालते हुए वह सीधी खड़ी हुई तो, सामने उसे मैं खड़ा दिख गया ।
■ गणित कौशल जीवन की गुणवत्ता में सुधार कैसे करते हैं?
गणित सिर्फ स्कूल में एक महत्वपूर्ण विषय नहीं है - यह आपके कई दैनिक कार्यों के लिए आवश्यक है। आप संभवतः किराने की खरीदारी, खाना पकाने और अपने वित्त पर नज़र रखने जैसे वास्तविक जीवन कौशल करने के लिए हर दिन इसका उपयोग करते हैं। जो बात गणित को विशेष बनाती है वह यह है कि यह एक सार्वभौमिक भाषा है - दुनिया भर में समान अर्थ वाला एक शक्तिशाली उपकरण। हालाँकि भाषाएँ हमारी दुनिया को विभाजित करती हैं, संख्याएँ हमें एकजुट करती हैं। गणित हमें नए नवाचारों और विचारों की दिशा में मिलकर काम करने की अनुमति देता है। गणित बच्चों और वयस्कों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है? साथ ही, पता लगाएं कि सबसे बुनियादी गणित सीखने से भी आपके परिवार के जीवन की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है। जीवन में गणित इतना महत्वपूर्ण क्यों है? एक व्यक्ति को खाना पकाने और पकाने के लिए गणित, माप और अंशों की समझ की आवश्यकता होती है। कई लोग अपने आहार या व्यायाम दिनचर्या के हिस्से के रूप में कैलोरी या पोषक तत्वों की गणना करने के लिए गणित का उपयोग भी कर सकते हैं। आपको यह गणना करने के लिए भी गणित की आवश्यकता है कि आपको समय पर पहुंचने के लिए अपना घर कब छोड़ना चाहिए, या आपको अपने शयनकक्ष की दीवारों को फिर से बनाने के लिए कितने पेंट की आवश्यकता है।
और फिर सबसे बड़ा, पैसा। वयस्कों के लिए वित्तीय साक्षरता एक अविश्वसनीय रूप से महत्वपूर्ण कौशल है। यह आपको बजट बनाने, बचत करने और यहां तक कि करियर बदलने या घर खरीदने जैसे बड़े निर्णय लेने में भी मदद कर सकता है। गणितीय ज्ञान कई अन्य गैर-स्पष्ट लाभों से भी जुड़ा हो सकता है। गणित में एक मजबूत आधार आपकी भावनाओं की बेहतर समझ और नियमन, बेहतर याददाश्त और बेहतर समस्या-समाधान कौशल में तब्दील हो सकता है। गणित का महत्व: एक महान गणित शिक्षा के 9 लाभ गणित ग्रेड स्कूल, मिडिल स्कूल और हाई स्कूल से परे अधिक अवसर प्रदान करता है। वास्तविक जीवन के परिदृश्यों में इसके अनुप्रयोग बहुत व्यापक हैं। हालाँकि कई छात्र गणित की कक्षा में बैठते हैं और सोचते हैं कि वे जो चीजें सीख रहे हैं उनका उपयोग कब करेंगे, हम जानते हैं कि वयस्कता में कई बार उनके गणित कौशल की आवश्यकता होगी। आपके बच्चे की सफलता में गणित के महत्व को कम करके आंका नहीं जा सकता। बुनियादी गणित एक आवश्यकता है, लेकिन अमूर्त गणित भी महत्वपूर्ण सोच कौशल को निखारने में मदद कर सकता है - भले ही आपका बच्चा एसटीईएम-शैली का करियर नहीं चुनना चाहता हो। गणित उन्हें पेशेवर, भावनात्मक और संज्ञानात्मक रूप से सफल होने में मदद कर सकता है।
उसकी वजह यहाँ है। 1. गणित स्वस्थ मस्तिष्क क्रिया को बढ़ावा देता है "इसे उपयोग करें या भूल जाएँ।" हम कई कौशलों के बारे में ऐसा कहते हुए सुनते हैं, और गणित कोई अपवाद नहीं है। गणित की समस्याओं को हल करने और अपने गणित कौशल में सुधार करने से हमारे मस्तिष्क को अच्छी कसरत मिलती है। और यह समय के साथ हमारे संज्ञानात्मक कौशल में सुधार करता है। कई अध्ययनों से पता चला है कि नियमित रूप से गणित का अभ्यास करने से हमारा मस्तिष्क स्वस्थ रहता है और अच्छी तरह काम करता है। 2. गणित समस्या-समाधान कौशल में सुधार करता है सबसे पहले, जॉनी द्वारा 42 तरबूज़ घर लाना और उनमें से 13 लौटा देना जैसी क्लासिक गणित की समस्याएं एक मूर्खतापूर्ण अभ्यास लग सकती हैं। लेकिन वे सभी गणित की शब्द समस्याएं जिन्हें हमारे बच्चे हल करते हैं, वास्तव में उनकी समस्या सुलझाने के कौशल में सुधार करती हैं। शब्द समस्याएं बच्चों को सिखाती हैं कि महत्वपूर्ण जानकारी कैसे निकाली जाए और फिर समाधान खोजने के लिए उसमें हेरफेर कैसे किया जाए। बाद में, जटिल जीवन की समस्याएं कार्यपुस्तिकाओं का स्थान ले लेती हैं, लेकिन समस्या-समाधान अभी भी उसी तरह होता है। जब छात्र एल्गोरिदम और समस्याओं को अधिक गहराई से समझते हैं, तो वे तथ्यों को डिकोड कर सकते हैं और समस्या को अधिक आसानी से हल कर सकते हैं। वास्तविक जीवन के समाधान गणित और तर्क से पाए जाते हैं।
3. गणित तार्किक तर्क और विश्लेषणात्मक सोच का समर्थन करता है गणित अवधारणाओं की मजबूत समझ का अर्थ केवल संख्या बोध से कहीं अधिक है। यह हमें समाधान के रास्ते देखने में मदद करता है। समीकरणों और शब्द समस्याओं को हल करने की सर्वोत्तम विधि निर्धारित करने से पहले उनकी जांच की जानी चाहिए। और मेंकई मामलों में, सही उत्तर पाने का एक से अधिक तरीका होता है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि गणित कौशल के साथ-साथ तार्किक तर्क और विश्लेषणात्मक सोच में भी सुधार होता है। गणितीय शिक्षा के सभी स्तरों पर तर्क कौशल आवश्यक है। 4. गणित लचीली सोच और रचनात्मकता विकसित करता है यह दिखाया गया है कि गणित का अभ्यास करने से खोजी कौशल, संसाधनशीलता और रचनात्मकता में सुधार होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि गणित की समस्याओं के लिए अक्सर हमें अपनी सोच को मोड़ने और समस्याओं को एक से अधिक तरीकों से देखने की आवश्यकता होती है। हो सकता है कि हमारे द्वारा आज़माई गई पहली प्रक्रिया काम न करे. समाधान के नए रास्तों के बारे में सोचने के लिए हमें लचीलेपन और रचनात्मकता की आवश्यकता है। और किसी भी अन्य चीज़ की तरह, सोचने का यह तरीका अभ्यास से मजबूत होता है।
5. गणित करियर के कई अलग-अलग रास्ते खोलता है ऐसे कई करियर हैं जो बड़ी संख्या में गणित अवधारणाओं का उपयोग करते हैं। इनमें आर्किटेक्ट, अकाउंटेंट और वैज्ञानिक शामिल हैं। लेकिन कई अन्य पेशेवर अपना काम पूरा करने के लिए हर दिन गणित कौशल का उपयोग करते हैं। सीईओ वित्तीय विश्लेषण के लिए गणित का उपयोग करते हैं। मेलमैन इसका उपयोग यह गणना करने के लिए करते हैं कि उन्हें अपने नए मार्ग पर चलने में कितना समय लगेगा। ग्राफ़िक डिज़ाइनर अपने डिज़ाइन में उचित पैमाने और अनुपात का पता लगाने के लिए गणित का उपयोग करते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपका बच्चा कौन सा करियर पथ चुनता है, गणित कौशल फायदेमंद होगा। आज के बच्चों के लिए गणित कौशल और भी महत्वपूर्ण हो सकते हैं! गणित निश्चित रूप से हममें से कई लोगों के लिए बहुत सारे अवसर खोल सकता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस करियर में गणित का अत्यधिक उपयोग होता है, वह आज के बच्चों के करियर शुरू करने के समय सबसे तेजी से बढ़ने वाली नौकरियों में से एक होगा? यह सिर्फ एसटीईएम नौकरियां नहीं हैं जिनके लिए गणित की आवश्यकता होगी। नर्सिंग और शिक्षण जैसे अन्य लोकप्रिय, उच्च विकास वाले करियर के लिए अब कॉलेज स्तर के गणित का न्यूनतम ज्ञान आवश्यक है। 6. गणित भावनात्मक स्वास्थ्य को बढ़ावा दे सकता है हालाँकि यह शोध अभी भी अपने प्रारंभिक चरण में है, हमने जो देखा है वह आशाजनक है। गणित की समस्याओं को हल करने के लिए उपयोग किए जाने वाले मस्तिष्क के हिस्से मस्तिष्क के उन हिस्सों के साथ मिलकर काम करते हैं जो भावनाओं को नियंत्रित करते हैं। इससे पता चलता है कि गणित का अभ्यास वास्तव में हमें कठिन परिस्थितियों से निपटने में मदद कर सकता है। इन अध्ययनों में, जो व्यक्ति संख्यात्मक गणना में जितना बेहतर था, वह भय और क्रोध को नियंत्रित करने में उतना ही बेहतर था। मजबूत गणित कौशल चिंता और अवसाद के इलाज में भी मदद कर सकते हैं। 7. गणित वित्तीय साक्षरता में सुधार करता है हालाँकि बच्चे अभी अपने वित्त का प्रबंधन नहीं कर रहे हैं, लेकिन कई बार ऐसा होगा जब गणित कौशल एक वयस्क के रूप में उनके जीवन में बड़े पैमाने पर बदलाव लाएगा। बजट बनाना और बचत करना बहुत बड़ी बात है। वे अपने खर्च में कहां कटौती कर सकते हैं? बजट बनाने से उन्हें अपने वित्तीय लक्ष्य तक पहुंचने में कैसे मदद मिलेगी? क्या वे अब इस नई खरीदारी का खर्च उठा सकते हैं? जैसे-जैसे उनकी उम्र वयस्क होने लगेगी, आपके बच्चे को घर या कार खरीदने से पहले यह समझने में लाभ होगा कि ऋण और ब्याज कैसे काम करते हैं।
उन्हें शेयर बाजार में निवेश करने से पहले लाभ और हानि को पूरी तरह समझ लेना चाहिए। और संभवतः उन्हें अपनी पहली नौकरी चुनने से पहले नौकरी के वेतन और लाभों का मूल्यांकन करने की आवश्यकता होगी। बच्चा मां के साथ गुल्लक में पैसे डाल रहा है। 8. गणित आपकी याददाश्त को तेज़ करता है मानसिक गणित सीखना प्राथमिक विद्यालय में शुरू होता है। छात्र जोड़ सारणी, फिर घटाव, गुणा और भाग सारणी सीखते हैं। जैसे-जैसे वे उन कौशलों में निपुण हो जाते हैं, वे अधिक युक्तियाँ और तरकीबें याद करना शुरू कर देंगे, जैसे 10 से गुणा करते समय अंत में एक शून्य जोड़ना। छात्र अपनी पूरी शिक्षा के दौरान एल्गोरिदम और प्रक्रियाओं को याद रखेंगे। 9. गणित दृढ़ता सिखाता है 'मैं यह कर सकता हूँ!' ये शब्द अक्सर हमारे बच्चों से सुने जाते हैं। यह वाक्यांश विकास का सूचक और गर्व का विषय है। बूजैसे-जैसे आपका बच्चा प्राथमिक विद्यालय में प्रवेश करता है, हो सकता है कि आप इन शब्दों को पहले की तरह बार-बार या उतने आत्मविश्वास के साथ न सुनें। यहां कुछ सबसे आम गणित संघर्ष हैं। बढ़ती जटिलता कभी-कभी कक्षा की गति आपके बच्चे की गति से थोड़ी तेज़ हो जाती है। या अवधारणाएँ इतनी अमूर्त और कठिन हैं कि उन्हें अपने दिमाग में एक पाठ में समेटना मुश्किल हो जाता है। कुछ गणित विचारों को सीखने में अधिक समय लगता है।
गलत शिक्षण शैली उच्च गुणवत्ता वाली गणित शिक्षा के लिए भरपूर अभ्यास के साथ एक अच्छी शिक्षण शैली आवश्यक है। यदि शिक्षक की शैली आपके बच्चे के सीखने के तरीके से मेल नहीं खाती है, तो गणित की कक्षा चुनौतीपूर्ण हो सकती है। विफलता का भय वयस्क होने पर भी, हमें असफल होने का डर महसूस हो सकता है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि हमारे बच्चे भी इसी डर का अनुभव करते हैं, खासकर स्कूल द्वारा लाये जा सकने वाले कई अन्य दबावों के साथ। अभ्यास का अभाव कभी-कभी, आपके बच्चे को बस थोड़े अधिक अभ्यास की आवश्यकता होती है। लेकिन यह कहना जितना आसान है, करना उतना आसान नहीं है। आप उन्हें भरपूर समर्थन और प्रोत्साहन देकर मदद कर सकते हैं ताकि उन्हें अभ्यास का समय मिल सके। गणित की चिंता एल्गोरिदम और जटिल समस्याएं किसी भी बच्चे (और कई वयस्कों) के दिल में चिंता पैदा कर सकती हैं। गणित की चिंता एक सामान्य घटना है। लेकिन सही मुकाबला रणनीतियों के साथ इसे प्रबंधित किया जा सकता है। प्रोडिजी मैथ के साथ सफलता के लिए अपने बच्चे के गणित कौशल को तैयार करें अब हमें पता चल गया है कि गणित हमारे रोजमर्रा और जीवन दोनों के फैसलों में कितना महत्वपूर्ण है, आइए अगली पीढ़ी को सही उपकरणों के साथ सफलता के लिए तैयार करें जो उन्हें गणित सीखने में मदद करेंगे। प्रोडिजी मैथ एक गेम-आधारित, ऑनलाइन शिक्षण मंच है जो बच्चों के लिए गणित सीखने को मजेदार बनाता है। जैसे-जैसे बच्चे खेलते हैं और मज़ेदार पात्रों और पालतू जानवरों से भरी एक सुरक्षित, आभासी दुनिया का पता लगाते हैं, वे गणित के सवालों का जवाब देंगे। ये प्रश्न पाठ्यक्रम-संरेखित हैं और एक अनुकूली एल्गोरिदम द्वारा संचालित हैं जो उन्हें गणित कौशल में अधिक तेज़ी से महारत हासिल करने में मदद कर सकता है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब