जप दिवस -

Sep 5, 2024 - 07:52
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जप दिवस -

मंत्र-जप जीवन का श्रृंगार हैं ।इससे कई रोगों का उपचार होता है ।अश्व सा चंचल मन ,लहरों सा चित्तवन आदि इसे साधने में मंत्र जाप का सहयोग सघन होता है । मंत्रों के प्रयोग हमारी सोयी हुई शक्तियों को जगाते हैं । यह एकाग्रता को सधवाकर , हममें आत्मविश्वास बढ़ाते हैं जो हमें ऊर्जा से भर देते हैं ।

शुद्ध मंत्रोच्चार से कष्टों का निवारण होता है । जब सश्रद्धा सही समय-सही स्थान पर इनका उच्चारण है होता हैं तो मंत्र नाद से वातावरण में निर्मलता आती है ,पवित्रता हर ओर छा जाती है , मन को भीतर तक झंकृत कर जाती है ।मंत्र - जप , मन को साधने का सुन्दर उपक्रम है । इससे जीवन में शुद्ध भावों के योग से सकारात्मक परिवर्तन होता है । मन का उपवन मंत्रोच्चार से खिलता है , आध्यात्म की तरंग श्रद्धामय होती है ।जप बहुत तकनीकी विषय है ।

अति संक्षिप्त में साधारण समझ के लिए हम कह सकते हैं कि किसी निश्चित अवधि व निश्चित उद्देश्य के लिए मंत्रोच्चार जप है । किसी मंत्र या वाक्य का धीरे-धीरे , बार-बार बोल कर या मन ही मन जप किया जाता है । जप से मानसिक शक्ति बढ़ सकती है । अगर सविधि इसको किया जाए तो व्यक्ति को मानो उसके अन्दर स्वस्थ व शक्तिशाली परिधि निर्मित हो रही है यह महसूस होता हैं ।व्यक्ति बदलाव चाहता हैं । बदलाव का एक सूत्र हैं नादयोग का प्रयोग ।

एक शब्द की आवृति करना , उसे बार - बार दोहराना ।व्यक्ति जो बनाना चाहता हैं , उसे सामने रखकर उसकी स्मृति करना , ऐसे शब्द को दोहराना । उस शब्द का नाम बन गया - मंत्र । जप का अर्थ हैं मंत्र की पुनरावृति । वैदिक परंपरा को देखे , जैन अथवा बौद्ध परंपरा को देखे , लौकिक परंपराओं को देखे, सबने मंत्रो का चुनाव किया हैं । भारतीय दर्शनों में मंत्र का बहुत विकास हुआ हैं और वह इसलिए हुआ हैं कि उससे कुछ उपलब्धियां अर्जित की जा सकती हैं । जप हमारे आत्म शोधन में बहुत सहयोगी होता है।

हम मंत्रों के उच्चारण जप भौतिक उपलब्धि के लिए न करें बल्कि अपनी अंतरात्मा की शक्ति के उद्घाटन के लिए करें हमारी आत्म शुद्धि ही भव शुद्धि है । हमारे शुद्ध भावों का विकास हो जप के द्वारा तभी किये गए जप की सार्थकता है। हम विवेकपूर्वक जप करें ,हमारे भावों की शुद्धि उसके साथ जुड़ें , तन्मयता हो मंत्र के अक्षर के साथ हमारी , सिर्फ उच्चारण ही न हो,बल्कि जपाजप जाप चलता रहे अंदर ही अंदर। जहां वाणी मौन हो जाती है हमारा तादात्म्य सिर्फ अंतरात्मा के साथ हो ,मन के तार-आत्मा के तार बन जाएं ,ऐसा हो जप।यही हमारे लिए काम्य हैं ।

 प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)