पंक्तियाँ जो बन गई सूक्तियाँ
पंक्तियाँ जो बन गई सूक्तियाँ
हर मानव की चाह होती है कि मैं अमीर हों जाऊँ । किसी ने कहा की अपनी भावी पीढ़ी को अमीर बनने के लिए कभी भी न करें प्रेरित बल्कि उन्हें कर्मशील एवं श्रमशील बनाएँ ।श्रम-सह-कर्म करेंगे तो वह अमीर स्वतः ही हो जाएँगे इसमें कोई भ्रम नहीं है । क्योंकि सब सुख खोज रहें हैं और-और में ।
इस अंतहीन हीन दौड़ में।एक कामना हुई पूरी उससे पहले ही दूसरी उभर आती है। कोई नहीं जानता कहाँ जाकर संतोष करना हैं ।लखपति चाहता है करोड़पति होना। करोड़पति चाहता है अरबपति बनना।कोई नहीं जानता कहाँ जाकर रुकना है। गरीब तो गरीब है ही पर अमीर की भी तृष्णा नहीं मिटती हैं तो एक मायने में है वह भी तो गरीब ही हैं । ठीक इसी तरह नियमित करें उचित व्यायाम।
कम खाएँ, गम खाएँ और जहॉं जरूरी हो वहाँ बेझिझक नम जाएँ ताकि तनाव रहित रहें। सूरज की रौशनी, उचित आराम,नियमित व्यायाम, संयमित आहार व कभी न खोएँ अपने आत्मविश्वास का आधार।आजकल सबके चेहरे से हँसी दुर्लभ भी हो गई है। अतः कोई संदर्भ न हो तो भी हँसने की क्रिया बनाएँ सुलभ।
इतना हँसे कि हँसते-हँसते पागल से हो जाएँ।हँसना और खाना शुद्ध हवा हैं ,स्वस्थ रहने के लिए बहुत कारगर दवा हैं । भोजन लें सुपाच्य व हल्का। जितना हो सके लें फल, हरी सब्जी का आहार ताजा। कभी न हो बासी कल का। समझें प्रकृति बहुत प्रभावी औषधि हैं ।किन्तु हमने तो सम्पर्क इससे प्रायः निषेध ही कर रखा है।करें इस पर चिन्तन रखें अधिकाधिक प्रकृति का सम्पर्क। दृढ़ता से भीतर में यह महसूस कीजिए जो शतप्रतिशत सच है कि आप भगवान की सर्वोच्च रचना हैं।इसका पूर्ण आनन्द लेते हुए आपको जीना है।
प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )