आखिर इन सब चीजों का जिम्मेदार कौन है और भविष्य में कौन होगा?
आखिर इन सब चीजों का जिम्मेदार कौन है और भविष्य में कौन होगा?
विनाश तो शुरू हो गया इन रोजगारों से इसे रोकने का जिम्मेदार कौन होगा--
विनाश के पहले या फिर अपने आप--
आजकल व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम , स्टेट्स फेसबुक, सबसे ज्यादा खतरनाक हो चुके हैं हमारे पर्सनल फोन से सिर्फ जो चीजें एड होती थी आज बो सार्वजनिक कैसे हो रही है,कोई भी किसी के भी ग्रुप में एड हो जाता है फोन सिस्टम इतना आसान कैसे हो रहा है और अगर हो रहा है तो इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है,कभी एड आता था फोन के लिए कि दुनियां मुट्ठी में करलो- वाकई दुनियां मुट्ठी मे आ गई पर कितनों के, इसको किसने मुट्ठी में कर लिया परिणाम किसे नहीं दिखाई दे रहा है।
आज आपके फोन में इतनी चीजें भर रही है अपने आप कैसे, जब हमने नहीं--जिन्हें देखकर सुनकर आप हैरान रह जाएंगे आपके रिस्तेदारों से लेकर आपके घर की हर बात सुनी और देखी जा रही है, तब पूछना है इन सब एजेंसियों से आखिर इस रोजगार में आप की तरफ से जनता की सुरक्षा के लिए क्या गारंटी और जिम्मेदारी है,जब सारे सीक्रेट ही हमारे आज के माहौल में बाहर जा रहे हैं।
आज हमारे किसी भी खास की आई डी, और चेहरे का स्तेमाल करके हमारे हर ग्रुप और पर्सनल फोन में प्रवेश हो रहा हैं पर कैसे,लेकिन इतना कटु सत्य जरूर है जो चीज ज्यादा जल्दी प्रभाव साली होती है उतनी ही जल्दी प्रभाव हीन,और ध्वस्त भी हो जाती है और जिसमें इंसान को खतरा हो सेफ्टी की बजाय तो बो स्तेमाल क्यों की जाएगी-आज सोशल मीडिया की नग्नता किसको नहीं दिखाई दे रही है जो पूरा बैडरूम नजर आता है तब जबाव देय है ।
ये सवाल क्या आपके परिवार और बच्चे कोई संस्कार वान सोशल मीडिया अलग से चला रहे हैं,अपराध कहां खोज रही हैं व्यबस्थाएं सारा तो इस सोशल मीडिया पर खुले आम नंगा नाच रहा है और चीख चीख कर अपनी शिक्षा, से लेकर टेलेंट,और समाज सेवा का मे ज्ञान-- सर्मनाक हम अंधे,बहरे,और मूंक,और अपनी कायरता को भी--- है, क्या आज किसी एक की तकनीफ रह गई है क्या किसी एक की लड़ाई है,जिस तरह समाज अपनी सोच का परिचय दे रहा है, कोई बताएगा।
जो देश और जनता के लिए सेनाएं हमारी सुरक्षा के लिए जान की बाजी लगाकर अपने फर्ज को पूरा करती है,क्या उनके परिवार बच्चे या खुद इंसान नहीं है क्या उन्हें अपनी जान प्यारी नहीं-- सब कुछ है पर जहां की रोटियां खाते हैं जीने के लिए उस वर्दी, उस कर्ज का फर्ज जरूर निभाते हैं कहीं एसा न हो बो भी अपनी जान और परिवार बच्चों को पालने लगें क्यों कि जरूरी नहीं है कि रोटियां देश और जनहित से जान देकर ही कमाई जाएं आजकल किसी की भी कमाई लूट कर जीवन बसर कर सकते हैं तब उनकी सोच बदलने और उनमें इस तरह सौतेला व्यबहार हम खुद भरने का काम कर रहे हैं ।
जब कि उन्हें हम अपने साथ चलने का हौसला देते-- ये कुर्सी नहीं है जिसे हम राजनीति,और अपने माई बाप कभी समझते थे कभी अब ये हमारे विनाश का रूप ले चुकी है कभी कभी की भविष्य बाणियां सही भी होती है क्योंकि ईश्वर पत्थर में नहीं हमारी ही किसी की जुवान से बहुत कुछ साफ-साफ शब्दों में बोल जाता है और हम बहरे हो जाते हैं, विनाश ने जब जब और जहां जहां दस्तक दी है आदमी गायब और ये सारे संसाधन यहीं पड़े मिले हैं,हम मानव है इस धरती पर सब कुछ हमारा ही तो है यह क्यों भूल रहे हैं, और अपनी मानसिक विसंगतियों को दूर करने और अधिकारों के लिए न्यायिक सहारा भी तो ले सकते हैं।
लेकिन उसमें बक्त लगता है,इतना तो इंसान की सोच में हमारी लेट न्यायिक प्रक्रिया ने भी इंसाफ की जगह बेसब्री भरी है परिणाम आज इंसान खुद इंसाफ का दाता बन बैठा और खरीद बैठा विनाश का फैसला अपने लिए, पर एक बात सत्य है कि हर चीज का भोग करता इंसान ही है और जब यही नहीं रहेगा तो किसके लिए है ये जमीन,मकान,अधिकार,और देश- कहीं ये अंतिम पतझड़ तो नहीं जो पत्तों के साथ साथ पेड़ ही उखाड़ने लगा है, प्रकृति परिवर्तन सील है,हम सब जानते हैं और हम खुद उसे नया बीज बोने के लिए दे रहें हैं ।
इससे अंजान जरूर है क्यों कि कर्म ही ईश्वर है-कर्म ही पूजा है-कर्म ही तप और तपस्या है-और हम सब का ईश्वर यही एक है-- इसी के बनाए हम सब खिलौना है जो आज हम आपस में खेलने लगे हैं यह भूल कर इसका खेल पल भर का होता है-जिसे हम महीनों और एक जिंदगी में भी पूरा नहीं खेल---तब हम क्यों भूल गए कि यह सब कुछ हम इंसानों के लिए ही तो है किसी पर कम किसी पर ज्यादा, गरीब की कोई जाति नहीं होती--अमीर कोई ईश्वर नहीं होता-- पर कर्म पता नहीं कब किसको क्या दिन दिखा दे पता नहीं-- ये जो आदमी-आदमी का खेल,खेल रहा है आदमी बो खेल नहीं ये विनाश है जो हम सबसे खेल रहा हैं। लेखिका-पत्रकार-दीप्ति चौहान।