आख़िर क्यू--? कथनी-करनी में असामानता
आख़िर क्यू--? कथनी-करनी में असामानता
मैंने मेरे जीवन में परिवार समाज आदि में यह देखा समझा अनुभव किया है कि कथनी-करनी में असामानता का चलन हर जगह हर क्षेत्र में हो रहा है । मेरे मन में यह देख प्रश्न आया कि आख़िर क्यू--? इसके पीछे की वजह क्या है ।
जब मैंने इसके उतर में झाँकने का प्रयास किया तो आश्चर्यचकित हुआ कि बात कहना मुश्किल है उससे ज्यादा बात को आचरणों में लाना और ज्यादा चुनौतिपूर्ण है । इसके पीछे की वजह हमारी भौतिक चकाचौंध में लिप्तता है । जीवन हमारा , चिन्तन हमारा , काम हमारा , व्यवहार हमारा आदि - आदि हमारे है फिर भी यह चलन । मैंने कुछ समय पूर्व यह लिखा पढ़ा था कि रिश्तों में झूठ है तो सही से चलन और सच है तब बिखराव तो मैं यह प्रश्न करूँगा कि हमारे द्वारा किए हुए कैसे भी कर्म उदय में आयेंगे तो उसको भोगेगा कोन ?
आज के समय में यहाँ हाथी के दाँत जैसे खाने के और हैं और दिखाने के और है ।आज कथनी- करनी में सामंजस्य रखने वाले लोगों की भारी कमी है जिसका दुष्परिणाम समाज में बिखराव व दिग्भ्रमित होने की स्थिति के रूप में देखा जा सकता है। कुछ लोग भावना में ही दिल की बात कह देते है और कुछ लोग कही पर हाथ रख कर भी सच नहीं बोलते हैं ।
गुरुदेव तुलसी कहा करते थे निज पर शासन -फिर अनुशासन और कथनी-करनी का एकमेक सफल जीवन का मेरुदंड है । सफलता उसी को वरमाला पहनाती है जिसके चिंतन में उत्साह-आशा और विश्वास का ज्वर होता हैं । अपना ज्ञान और अपनी क्रिया का मेल होना चाहिए।
हम भला दिखने की लाख कोशिश करलें पर मन में छल-कपट,मोह-माया,कथनी-करनी में फ़र्क़ आदि और मुँह में राम बग़ल में छुरी वाली प्रवृति है तो भले ही लाख कौशिश कर ले भले इंसान नहीं कहलायेंगे तभी तो कहा है कि आख़िर क्यू ? कथनी-करनी में असामानता ।
प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)