तथ्ययात्मक वचन
तथ्ययात्मक वचन
कुछ तथ्ययात्मक वचन जैसे यह सच हैं कि बहुत कम लोग जानते हैं कि वे बहुत कम जानते हैं। ज्ञान में अहंकार उसी प्रकार मिश्रित होता है जिस प्रकार दूध में पानी, वास्तविक ज्ञानी हंस के समान होता है, जो ज्ञान तो प्राप्त करता है किन्तु उसके साथ मिश्रित अहंकार त्याग देता है, अतः अहंकार रहित ज्ञान ही आत्म-ज्ञान की प्राप्ति का मार्ग है जिस पर चलता हुआ व्यक्ति ईश्वर साक्षात्कार के लक्ष्य तक पहुँचता है।
ज्ञान से जीवन का पथ आलोकित बनता है।ज्ञान का सूरज हर कदम पर साथ चलता है पर अहंकार का राहू जब डस लेता है सूरज को तो भरी दुपहरी मे भी सबकुछ धुंधला लगता है। खुद को क्या करना उसका तो पता ही नहीं हैं पर दूसरे को क्या करना चाहिए बड़े आत्मविश्वास से कहते हैं मानो केवल वही सही-सही जानते हैं।
जो धूप स्नान करते हैं उन्हें गर्मी बहुत अच्छी लगती है वंहि जिसका गर्मी के मारे पसीना बहता है उन्हें गर्मी बहुत ख़राब लगती है।पर्वतारोहियों को पहाड़ बहुत अच्छे लगते हैं तो किसी को चढ़ाई होने के कारण पहाड़ पर बसना ख़राब लगता है। किसी को जंगल में शिकार करना या सफ़ारी यात्रा करना अच्छा लगता है तो किसी पैदल यात्री को काँटा चुभने के डर से जंगल ख़राब नज़र आता है। इस संसार में हर किसी चीज़ को देखने के सकारात्मक और नकारात्मक नज़रिये होते हैं।
जिसको उपयोगी लगता है वो उसे सकारात्मक नज़रिये से देखता है और जिसको किसी भी वस्तु में उपयोगिता नज़र नहीं आती या उसे परेशानी नज़र आती है वो उसे नकारात्मक नज़रिये से देखता है।इसलिए किसी भी वस्तु में अपने उपयोगिता से मत सोचो कि इसमें यह ख़राबी है।अपने सोचने का दृष्टिकोण बदलो कि कंहि तो यह किसी के लिये ज़रूर उपयोगी होगी।उसमें कमी की जगह अच्छाईयां देखो। विडंबना तो देखिए लिबासों का शौक रखने वाले आदि अपने आखिरी वक्त में यह भी नहीं कह पाएँगे कि यह कफ़न ठीक नहीं हैं । यह कोई नहीं बता सकता कि उसकि आख़िरी साँस कौन सी होगी।
हर व्यक्ति यही सोचता है कि अभी मेरे जाने का समय आया नहीं।यह मिथ्या है। वर्तमान समय भौतिक्ता वाला है।इस चकाचौंध भरी दुनियाँ में दौलत के पीछे इंसान इस क़दर पागल हो गया कि वो धन प्राप्त करने के चक्कर में अपना सुख-चैन खो रहा है। जीवन में असली सुख की परिभाष देखनी है तो हम्हें देखना चाहिये हमारे पूर्वजों का जीवन।उनका जीवन सादा,सरल,सच्चा और संतोषी था।बड़ा परिवार होने के बावजूद वो अपना जीवन शांति से बिताते थे।इसलिये कहा है की जो कमाया वो साथ जायेगा नहीं,आप उसे पूरा खर्च भी नहीं कर पाओगे और कौन सी साँस आख़िरी होगी वो भी हम नहीं जानते।
प्रदीप छाजेड़