कहानी - दायित्व निर्वाह का दर्द
कहानी - दायित्व निर्वाह का दर्द
कहानी - दायित्व निर्वाह का दर्द
आज जब मैं किशनपुर गांव से निकल रहा था तो अचानक वर्षा होने लगी और मुझे मजबूरी में एक कच्चे मकान की झोपड़ी के नीचे रुकना पड़ा । बुढी काकी ने मेरे लिए एक चारपाई डाल दी। मै उस पर बैठ गया। बुजुर्गों के सुख- दुख की चर्चा में उस ने अपने मालिक जिसके यहां उसने जवानी में काम किया था उस परिवार के एक कहानी बताने लगी और कहने लगी इस कहानी को आप अपने अखबार में जरूर छापना।
किशनपुर गांव की 100 वर्षी बुढी काकी रामा देवी ने मुझे बताया-- बहुत पुरानी बात है। इस गांव में जमीदार वृंदावन लाल रहते थे । जो जाति से कायस्थ सक्सेना थे। बड़े मिलनसार परोपकारी जीव थे ।गांव वाले उनसे बहुत खुश रहते थे । अंग्रेजों का जमाना था। स्वतंत्रता आंदोलन छिड़ चुका था।लाला वृंदावन लाल जी स्वतंत्रता सेनानियों की मदद करते थे । इसी लिए अंग्रेजों ने उनकी जमीदारी छीन ली थी। अब केवल थोड़ी कृषि भूमि की आमदनी पर निर्भर हो गए थे ।लाल वृंदावन लाल जी के दो लड़के रघुनंदन लाल बृजनंदन लाल थे ।दोनों भाइयों में बड़ा प्रेम था। रघुनंदन बड़े थे।
बृजनंदन छोटे थे ।रघुनंदन गांव की खेती देखते थे और बृजनंदन मथुरा में रह कर एक सहकारी बैंक में मैनेजर बनकर नौकरी करते थे। जब बाबू वृंदावन लाल वृद्धावस्था में मृत्यु सैया पर थे तो उन्होंने दोनों लड़कों को बुलाकर कहा था। एक धागा को धागा कहा जाता है वो केवल सीने के काम में आता है। जब वही धागा तमाम धागो मे मिल जाता हैं तो कपड़ा बन जाता हैं और उनकी अच्छी सी कीमत हो जाती है।तुम दोनों मिलजुल कर अगर रहोगे तो गांव समाज में तुम्हारी इज्जत रहेगी ।
दोनों लड़कों ने पिता को आश्वासन दिया कि वह मेल जोल से रहेंगे और एक दूसरे के सुख-दुख में खड़े रहेंगे। वृंदावन की मृत्यु के बाद दोनों भाई मिलजुल कर रहने लगे। रघुनंदन के तीन संताने हुई। एक लड़का दो लड़कियां हुई ।लड़का का नाम राम कुमार था । बड़ी लड़की का नाम विद्या देवी तथा छोटी का नाम प्रेमलता था। अभी तीनों बच्चे छोटे नाबालिक थे ।तभी रघुनंदन लाल को मियादी बुखार आने लगा। उस जमाने मे यह बुखार बहुत भयंकर माना जाता था। रघुनंदन का गांव के आयुर्वेदिक चिकित्सकों ने इलाज किया ।लेकिन अच्छे नहीं हो रहे थे तो उनके छोटे भाई बृजनंदन लाल को मथुरा से बुलाया गया ।
बृजलाल लाल ने मथुरा से आकर अपने बड़े भाई का अच्छे से अच्छे डॉक्टर वैद्यो से बहुत अच्छा इलाज कराया। लेकिन उनको कोई फायदा नहीं हुआ। मरते समय रघुनंदन ने अपने छोटे भाई बृजनंदन को तीनों बच्चों के हाथ पकड़ कर सौपते हुय कहा कि--- अब तुम को उन की देखभाल पालन पोषण करना पड़ेगा । मैं किसी हालत में अब बच नहीं सकूंगा । दो दिन के बाद रघुनंदन की दुखद मौत हो गई । परिवार में कोहराम मच गया । अपने बड़े भाई रघुनंदन का दाह संस्कार करने के बाद छोटे भाई बृजनंदन लाल को गांव में रहने के कारण मथुरा की नौकरी से त्यागपत देना पड़ा ।
समय चक्र बड़ी तेजी से चल रहा था । जब दोनों लड़कियां विद्या देवी प्रेम लतादेवी तथा लड़का रामकुमार बड़ा हुआ तो बृजनंदन लाल ने अपने हिस्से की खेती बेची तथा मथुरा से लाये पैसे को उनके पालन पोषण में लगाया और मृतक बड़े भाई रघुनंदन को दिए गए वचनको निभाया। बच्चों को पिता के ना रहने का अभाव नहीं महसूस होने दिया। स्वर्गीय रघुनंदन के लड़के राज कुमार को पढ़ा लिखा कर सरकारी स्कूल का अध्यापक बना दिया। स्वर्गी बड़े भाई रघुनंदन की बड़ी बेटी विद्या की शादी करने के लिए बृजनंदन ने बैंक से कर्जा लिया कुछ अपनी खेती भी बेची और विद्या की शादी बड़े धूमधाम से की । बारात में आई हुई 30 बैलगाड़ियां रथ घोड़े बारातियों के स्वागत सम्मान के लिए खेतों में अच्छे टेंट लगवा दिए गए थे ।
कुआं में शरबत बनाने के लिए शक्कर के बोरे डाले गए थे। दहेज की गायों की सोने से सिंग मढवाये गये थे। उस जमाने में यह शादी काफी चर्चा की विषय की रही थी। दूसरी बेटी प्रेमलता की शादी भी बड़े धूमधाम से हुई थी । इन लड़कियों की शादी के कारण बृजनंदनलाल कर्ज से जकड़ गए थे। बृजनंदन लाल की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी । कर्जे में फंसे होने के बाद भीउन्होंने भतीजे मास्टर राजकुमार की शादी भी धूमधाम से की । बड़ेभाई स्वर्गीय,रघुनंदन लाल को दिया गया बचन सब दुखों को को झेलने के बाद भी दायित्व निभाया । समय चक्र बड़ी तेजी से घूम रहा था ।बृजलाल की आर्थिक स्थिति दिन पर दिन और खराब हो गई थी ।
वह बीमार रहने लगे थे । ऐसे समय जब मास्टर राजाराम को अपने चाचा की मदद करने थी । उस समय राजा राम अध्यापक अपने चचा से न्यारे हो गए । घर संपत्ति बंटवाने की बात करने लगे । इस समय चाचा बृजनंदन लाल ने अपना धर्म को निभाते हुए ऐसी मुसीबत में भतीजे रामकुमार कि उसके पिता हिस्से की 20 बीघा पुरी खेती उसे दे दी और मकान का बंटवारा करके मकान मे भी आधा हिस्सा उसे दे दिया । अपने पास केवल दो बीघा जमीन ही रखी।भतीजेभतीजियों की शादी विवाह शिक्षा पालन पोषण अपने हिस्से की 18 बीघा खेती पहले ही बैच दी थी ।
चाचा बृजनंदन लालभतीजे को 20 बीघा खेती देने के बाद जो अपने पास केवल दो बीघा जमीन रह गई थी उसी दो बीघा खेती पर ही अपने परिवार का पालन पोषण करने करने लगे और गरीबी में अपने दिन काटने लगे। 60 वर्षीय बृजनंदन की करुणा दुख भरी कहानी कहते कहते डोकरी के आंखों में आंसू आ गए और आंखों के आंसू पोछते हुए बोली - बृजनंदन लाल नेअपने स्वर्गीय बड़े भाई रघुनंदन लाल को दिये गये वचन को निभाने के लिए बहुत दुख सहे। जो भतीजा रामकुमार अपने चाचा से न्यारा हुआ उसे भतीजे के लिए चाचा तथा चाची ने बहुत दुख झेले थे । छोटी सी अवस्था में जब वह बीमार पड़ गया था। तब चाचा चाची ने रात रात भर जाग के इसकी देखरेख कर पालन पोषण किया था।
इसे बचाने के लिए जाने कितने देवी देवताओं की पूजा की थी । लेकिन यह भतीजा चाचा का नहीं हो सका ।चाचा बृजनंदन लाल के परिवार में भी दो लड़के थे। आर्थिक दशा खराब होने के बाद भी फिर बृजनंदन लाल दो बीघा खेती से ही अपने बच्चों को पढ़ाया लिखाया और उन्हें नौकरी से लगाए ।भतीजे ने कभी भी कोई सहायता नहीं की। एक बार चाचा बृजनंदन लालबहुत बीमार पड़ गए। भतीजा राज किशोर कोबुलाने पर भी चाचा को देखने को नहीं आया जबकि एक ही घर में रह रहा था। चाचा बृजनंदन लाल को भतीजे भतीजियों पर की गई कुर्बानी का जब ईश्वर ने उन्हें अच्छा फल मिला और उनके अच्छे दिन आये जब वह मथुरा में अपने छोटे लड़के के साथ रह कर सुखी जिंदगी जी रहे थे। तभी मथुरा में उनकी मृत्यु हो गई ।
बृजनंदन लाल दुख भरी कहानी सुना कर वृद्ध महिला कहने लगी -इस कहानी को युवा पीढ़ी को जरूर बताएं कि आज समाज में युवा पीढ़ी को दायित्व निभाने की विकृति आ रही है ।आज का समाज बड़ा स्वार्थी होता चला जा रहा है और अपने दायित्व कर्तव्यों को निभाना नहीं जानता है । जगह-जगह वृद्धा आश्रम खुल रहे हैं ।इन आश्रमों में प्राय देखा जा रहा की वही वृद्ध आ रहे हैं जिन लड़के अच्छे पदों पर हैं ।अच्छा धन कमा रहे हैं। लेकिन अपने मां-बाप को अपने पास नहीं रख सकते हैं । डोकरी मुझे बहुत सी बातें कहना चाहती थी । लेकिन मैं जल्दी होने के कारण यह कह कर चलाया माताजी में फिर आऊंगा और आप से ही कहानियों की कथा वस्तु लिया करूंगा । लेकिन माता जी शिक्षात्मक कहानियों कोई पढ़ता नहीं हैऔर न पढ़कर कोई शिक्षा लेता है ।
आज की युवा पीढ़ी पश्चात सभ्यता में रंग गई है । सेक्सी प्रेम कहानी पढ़ना पसंद करती है ।आज की युवा पीढ़ी अपनी भारतीय संस्कृतिक आचार्य विचार को भूल रही है। युवा पीढ़ी इसीलिए बुढ़ापे में अपनी संतान से सुख नहीं पाती है।
बृज किशोर सक्सेना किशोर इटावी कचहरी रोड मैनपुरी