मां बाप का आशीर्वाद

मां बाप का आशीर्वाद

Jun 8, 2024 - 06:24
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मां बाप का आशीर्वाद 

10 जुलाई 1958 को बल्लभ इंटर कॉलेज मे पूर्व परंपरा केअनुसार बारहवीं कक्षा के उत्तीर्ण हुए छात्रों क सम्मान समारोह काआयोजन था ।विद्यालय को पतंगी कागज की हरी पीली लाल झडिया सुतली मे लगाकर पूरे पंडाल को बहुत सुंदर ढंग से सजाया गया था। चबूतरे पर बना मंच के दोनों कोनों पर केला आम के पत्ते लगाए खंबे खड़े किए गए थे। सभी उत्तीर्ण छात्रों को बैठने के लिए नीचे कुर्सियां पड़ी थी lजिन पर छात्र बैठे हुए थे।

चबूतरा मंच पर नक्काशी दार कुर्सियां रखी गई थी । इन कुर्सियों पर प्रधानाचार्य कॉलेज प्रबंधन समिति के अध्यक्ष मंत्री बैठे थेऔर इनके इधर-उधर अध्यापक बैठे हुए थे। समारोह आरंभ होते प्रधानाचार्य माइक पर आकर बोले- - आज का दिन हमारे कॉलेज के लिए गौरव खुशीका दिन है । इंटरमीडिएट बोर्ड की परीक्षा में हमारे विद्यालय के छात्रों ने विद्यालय का जिले में नाम चमका दिया है । अधिकांश छात्र प्रथम श्रेणी मैं उत्तीर्ण हुए है और हमारे विद्यालय का रिजल्ट 98% रहा है । इससे कॉलेज का मान सम्मान बढ़ा है । हमारे सभी उत्तीर्ण छात्रों ने अनुशासन में रह कर बड़ी त्याग तपस्या में शिक्षा ग्रहण की है । मुझे आशा है मेरे विद्यालय के निकले हुए सभी छात्र उन्नति के शिखर पर पहुंचकर देश समाज की ईमानदारी से सेवा करके इस विद्यालय का नाम रोशन करेंगे ।

सभी उत्तीर्ण छात्रों कोआगे की पढ़ाई करने के लिए तथा डिग्री कॉलेज में एडमिशन लेने के लिए टी सी और मार्कशीट चरित्र प्रमाण पत्र देदी गई है। मै छात्रों को आशीर्वाद देते हुए अपने होनहार छात्रों से कहूंगा कि वह मंच पर आकर वह क्या बनना चाहते हैं इस पर अपने विचार प्रकट करें । नीचे कुर्सियों पर बैठे उत्तीर्ण छात्रों ने मंच के ऊपर आकर माइक पर अपने विचार प्रकट करते हुए किसी ने कहा कि वह सरकारी उच्च पदों पर पहुंचकर जनता समाज राष्ट्र की सेवा करेंगे ।तो कुछ छात्रों ने राजनीति में भाग लेकर मंत्री विधायक बनने की इच्छाएं प्रकट की । छात्र संघ की मंत्री सुधा ने अपना भाषण देते हुए कहां कि वह शासन के उच्च पदों पर पहुंचकर संवेदनशील अधिकारी बनकर राष्ट्र समाज की ईमानदारी से सेवा करेगी ।

महिला शक्ति को जागृतकरउनमेंआत्मविश्वास आत्मबल जागृत करेगी । यूनियन के अध्यक्ष मदन किशोर बोलना नहीं चाहते थे ।अध्यापक छात्रों के बहुत कुछ कहने पर माइक के पास जाकर सभी गुरुजनों को हाथ जोड़कर प्रणाम करते हुए कहा - मेरे सभी साथियों के अपने अपने सपने हैं। लेकिन मेरा कोई सपना नहीं है ।मैं तो केवल अपने बुजुर्ग मां-बाप की सेवा करने के लिए कोई छोटी सी नौकरी तलाश करूंगा और माता-पिता की आर्थिक स्थिति को मजबूत करके उन्हें सुख दूंगा। उनके आशीर्वाद से ही जो मुझे आगे उन्नति के अवसर मिलेंगे उससे राष्ट्र देश समाज की सेवा करूंगा। माता -पिता बुजुर्गों का आशीर्वाद हमेशा लेता रहूंगा ।माता पिता के आशीर्वाद से अगर मुझे किसी मान्यता प्राप्त विद्यालय में अध्यापकी मिल गई तो प्राइवेट फॉर्म भर के अपनी शिक्षा भी पूरी करूंगा ।

आर्थिक स्थिति सही ना होने के कारण किसी डिग्री कॉलेज में एडमिशन नहीं लूंगा। माता पिता के आशीर्वाद से जो मिलेगा उसे ही अब स्वीकार कर लूंगा ।मैं अपने सभी साथियों से अनुरोध करूंगा कि वह भी अपने बुजुर्ग मां-बाप की सेवा अवश्य करें। बुजुर्ग मां-बाप ही ईश्वर तुल्य होते हैं ।उनका हृदय से दिया गया आशीर्वाद उन्हें उन्नति के शिखर पर पहुंचाएगा . । इस से ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता हूं । मैं अपने प्रधानाचार्य तथा अपने गुरुजनों को प्रणाम करके उनसे भी कहूंगा कि कभी भी उन्हें अपने शिष्य की सेवा की आवश्यकता हो तो निसंकोच कहे । वह सेवा के लिए तत्पर रहें गा।गुरु शिष्य का संबंध अटूट होता है । सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है।इतना कहने के बाद मदन किशोर ने मंच पर बैठे हुए सभी गुरुजनों वृद्धजनों के चरण स्पर्श करके अपनी कुर्सी पर आकर बैठ गया।

मदन के ओजस्वी भाषण से पूरा पंडाल भावुक होकर मदन की ओर निहारने लगा। कार्यक्रम समाप्ति के बाद जब सब लोग जाने लगे तो मदन किशोर ने सभी का हाथ जोड़कर अभिवादन करकेसभीकोधन्यवाद दिया ।प्रधानाचार्य ने उठकर मदन की पीठ को थपथपा कर धीरे से मदन से बोले - -तुम बिना मिले मुझसे जाना मत ।मदन मंच से उतरकर अपने सभी साथियों से गले मिलने लगा और सभी को इस बात का धन्यवाद देने लगा कि सभी साथियों ने उसको भरपूर सहयोग दिया। जिस से विद्यालय में अनुशासन शांति का वातावरण रहा। सभी साथियों से मिलकर जब मदन प्रधानाचार्य के कक्ष की ओर जाने लगा तो सुधा ने पास आकर मदन से कहा- मेरी माता जी ने तुमको याद किया है ।

तुम बिना उनसे मिले जाना नहीं ।सुधा की ओर देखकर मदन मुस्काया और बोला- पहले तुम्हारी माता जी से मिलने चल रहा हूं । बाद में आकर प्रधानाचार्य से मिलूंगा ।सुधा के साथ मदन सुधा के घर पहुंचा। सुधा के माता पिता का चरण स्पर्श किया और एकओर पड़ी कुर्सी पर सुधा के पिता के पास चुपचाप बैठ गया। सुधा के पिता ने सुधा की ओर देखते हुए मदन से कहा- मैंने सुना है कि तुम आगे की पढ़ाई करने के लिए कानपुर नहीं जा रहे हो। तुम्हारे पिताजी से मेरे अच्छे संबंध है ।मैं चाहूंगा तुम आगे की पढ़ाई जारी रखो ।कानपुर में सुधा के मामा अच्छे एडवोकेट धनाढ्य व्यक्तियों में है। उनकी आलीशान कोठी भी है। नौकर चाकर लगे हुए है। सुधा वही रहेगी ।तुम भी उस कोठी में रहना ।खाने पीने की कोई दिक्कत नहीं होगी ।

एडमिशन और किताबों के लिए मैं पैसा दूंगा ।तुम कानपुर जाकर एडमिशन अवश्य लो। पिता की बात सुनकर सुधा के चेहरे पर खुशी दौड़ गई। वह पिता की ओर देखते हुए मदन किशोर से बोली - अब तुम्हें एडमिशन लेने में क्या परेशानी है? मदन सुधा और सुधा के पिताजी की ओर देखते हुए बोला- -मेरा पहला उद्देश माता पिता के पास रहकर उन्हें खुश रखना है। मेरी पढ़ाई का तो इंतजाम हो जाएगा ।लेकिन मेरे बूढ़े मां बाप आर्थिक स्थिति परेशान का क्या होगा? मेरे मां-बाप इतने स्वाभिमानी है। किसी का एहसान नहीं लेना चाहते हैं ।घर का खर्च चलाने के लिए भरी दोपहर में खेतों पर पहुंच जाते हैं ।कहीं खेतों की फसल को नीलगाय हिरण बर्बाद ना कर दे उसकी रखवाली करते हैं । जब से उन्होंने नौकरी छोड़ी है आर्थिक स्थिति से बहुत परेशान हैं ।

 उन्होंने ईमानदारी से नौकरी कीहै। इसलिए अपनी आर्थिक स्थिति नहीं बना सके। वह मुझेभी किसी का एहसान लेने की आज्ञा नहीं देंगे। वह तो बराबर मुझे एडमिशन लेने के लिए कह भी रहे हैं ।लेकिन मैंने जो निश्चय किया है ।मैं वही करूंगा ।सुधा के पिता मदन की ओर देखते रह गये।तभी सुधा की मां तीन कटोरा में खीर ले आई और उन्होंने एक एक कटोरा तीनों को पकड़ा दिया। सुधा की ओर देखते हुए मदन ने जल्दी-जल्दी खीर खाकर सुधा के पिताजी से कहा - बाबूजी अब मुझे प्रिंसिपल साहब से मिलने के लिए जाना है ।क्योंकि वह मेरे इंतजार में बैठे होंगे। इतना कहकर मदन उठा और चल दिया । सुधा भी पीछे पीछे आई ।दरवाजे पर आकर आंसू बहाते हुए सुधा ने कहा- मदन तुम जो कुछ कह रहे हो वह ठीक नहीं है । मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं। तुमसे ही शादी करना चाहती हूं ।

तुम्हें हमारे पिताजी की बात मान लेना चाहिए ।मेरे सपनों का तो ध्यान रखो। आज तक जो बात मैंने तुमसे नहीं कही है । वह बात आज तुमसे कह दी है।सुधा के आंसू पोछते मदन बोला- सुधा तुम घबराओ मत। मैं तुम्हारी पिता की बात पर विचार करूंगा ।इतना कहकर मदन सीधे प्रधानाचार्य के पास पहुंचा। मदन को देखते ही चपरासी बोला - साहब बहुत देर से तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं और उसने प्रधानाचार्य के दरवाजे पर पड़ी चिक उठाई। मदन अंदर पहुंच कर चुप चाप खड़ा हो गया। प्रधानाचार्य ने बैठने का इशारा करते हुए उसे एक लिफाफा पकड़ा दिया और पधानाचार्य बोले- देखो मदन मैं तुम्हारे आचरण व्यवहार से हमेशा खुश रहा हूं ।मैं तुम्हें इस कॉलेज में इसलिए नौकरी नहीं दे सकता हूं ।मुझ पर जातिवाद का आरोप लग जाएगा। मैं आज के नेताओं जैसा नहीं हूं । मैंने तुम्हें तोमर साहब के लिए चिट्ठी लिखी है । तोमर साहब मेरे मित्र हैं ।

अच्छे प्रिंसिपल है। तमाम दफे मुझसे यहां मिलने भी आए हैं ।तुम्हें अच्छी तरह से से जानते हैं। तुम्हें वहां अध्यापक की नौकरी मिल ही जाएगी। बीए का फॉर्म भी भर जाएगा और तुम अपनी पढ़ाई कर लेना । तोमर साहब तुम्हारा फॉर्म फॉरवर्ड कर देंगे ।अध्यापक नौकरी के साथ साथ बीए की पढ़ाई भी अच्छी तरह से करना और बी ए एमए में . फास्ट डिवीजन लाना । मदन के चेहरे पर खुशी झलक आई। मदन ने चिट्ठी लेकर प्रधानाचार्य के पैर छुए और जल्दी से सीधे घर पहुंचा ।घर पहुंच कर उसने बूढ़ी माता पिता के पैर छुए और उन्हें चिट्ठी दिखाते हुए कहा -मैं तोमर साहब के कॉलेज कल जाऊंगा ।वहां मुझे नौकरी मिल जाएगी। मेरा प्राइवेट परीक्षा देने का फॉर्म भी फारवर्ड हो जाएगा ।आपके आशीर्वाद से यह सब कुछ चमत्कार हुआ है।

दूसरे दिन मदन तोमर साहब स्कूल में पहुंचकर वह चिट्ठी तोमर साहब दी। तोमर तोमर साहब कहीं बाहर जाने वाले थे। इसीलिए उन्होंने जल्दी में चिट्ठी पड़ी और मदन से बोले-- तुम जाकर अध्यापकों की उपस्थिति रजिस्टर में हस्ताक्षर कर देना ।मैं आकर तुम्हारा नियुक्ति पत्र दे दूंगा और वाइस प्रिंसिपल से बोले-- कल से कुछ टाइम टेबल चेंज करके इन्हें हिंदी नागरिक शास्त्र पढ़ाने के इन के छह पीरियड नाइंथ क्लास में लगा देना। अगर यह रात में यही रहना चाहे तो इनके ठहरने रुकने खाने का छात्रों के छात्रावास में में इंतजाम कर देना । मदन बोला-- आज मैं चला जाऊंगा और घर से अपने बिस्तर पहनने के कपड़े लेकर कल आ जाऊंगा।

प्रतिदिन ना जाकर इतवार के दिन ही जाया करूंगा । मदन की बातें सुनकर तोमर साहब कुछ भी नही बोले और अपनी तैयार खड़ी गाड़ी पर जाकर बैठ कर चले गए। मां बाप बुजुर्गों के आशीर्वाद से जब अच्छे दिन आने का चक्र घुमा तो 4 साल का समय जाते पता नहीं चला। इन 4 सालों में मदनने तोमर साहब के स्कूलमें रहकर बी ए एम ए भी प्रथम श्रेणी में कर लिया। मदन के कार्य व्यवहार पढ़ाने के ढंग से अध्यापक छात्र सभी खुश थे । मदन के पास सुधा के प्रेम पत्र 2 साल बराबरआते रहे। मदन कभी-कभी सुधा को सांत्वना के प्रेम पत्र भी भेजता रहा ।शादी की बात को टाल मटोल करता रहा ।अचानक सुधा के प्रेम पत्र आने बंद हो गए ।मदन अपने उद्देश्य को पाने के लिए स्कूल की नौकरी के साथ-साथ दिन रात आईएएस की तैयारी करने में लगा रहता था । सुधा के अब पत्र न आने मदन चिंतित तो रहता था लेकिन उसके घर जाने के लिए तैयार नहीं हो पता था ।

अपनी आईए एसकी तैयारी में लगा रहता था। जब ईश्वर खुशी देता है तो छप्पर फाड़ के देता है। आईएएस की परीक्षा में मदन की दसवीं पोजीशनआई I प्रिंसिपल साहब तथा विद्यालय के सभी अध्यापक कर्मचारियों ने मदन के आईएएस होने अध्यापक मदन काभव्य स्वागत करते हुए उन्हें शुभकामनाएं बधाई दी ।मदन ने नम्रता को दिखाते हुए प्रधानाचार्य तोमर के पैर छुए और उनसे आशीर्वाद लिया ।दूसरे दिन तोमर साहब के कॉलेज से अपने घर आकरमदन अपने वृद्ध मां बाप का आशीर्वाद लेने के बाद सीधा बल्लभ इंटर कॉलेज में पहुंचा और अपने गुरुजनों प्रधानाचार्य का चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लिया ।इसके बाद सुधा के घर पहुंच कर सुधार के माता पिता चरण स्पर्श कर उन्हें अपने आईएएस बनने की खबर सुनाई ।सुधा के माता पिता यह खबर सुनकर बहुत खुश हुए और बोले -यह तुम्हारे माता-पिता गुरुजनों के आशीर्वाद का फल है। तुम्हें सुधा ने बहुत से पत्र लिखें ।लेकिन तुमने किसी का उत्तर नहीं दिया ।

सुधा के मामा ने सुधा के बीए पास करने के बाद सुधा की शादी एक इंटर कॉलेज के लेक्चरर से कर दी। सुधा तुम्हें बहुत याद करती रही। मैं सुधा कोतुम्हारीकामयाबी का आज ही एक पत्र लिख रहा हूं ।मदन ने सुधाके माता पिता के पैर छूकर उदास चेहरा लिए हुए अपने घर लौट आया। रास्ते भर मदन किशोर सोचता रहा कि एक उद्देश लक्ष्य के पाने के लिए कुछ न कुछ कुर्बानी कुछ खोना ही पड़ता है। कैसा दुर्भाग्य रहा सुधा का प्यार नहीं पा सका।

बृज किशोर सक्सेना किशोर इटावीकचहरी रोड मैनपुरी

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