स्वाध्याय दिवस -
स्वाध्याय दिवस -
पर्युषण पर्व में आज का दिन स्वाध्याय दिवस हैं । अपने आपको जानने के लिए जो ज्ञान होता हैं वह स्वाध्याय हैं । वैसे तो अभीष्ट है नियमित स्वाध्याय पर आज स्वाध्याय दिवस सद्साहित्य पठन-मनन-लेखन की प्रेरणा का विशेष रूप से दिन हैं । पर यह प्रेरणा स्थायी रहे जो यह सिर्फ आज ही नहीं हमारी नियमित आदत बने ।
विश्व में ज्ञान का भंडार भरा है। उसे सीमाबंधित करना संभव नहीं है । हमारा प्रयत्न हो इस अनंत ज्ञान सागर का एक नियमित आदत के रूप में अधिकाधिक लाभ लेना।इसका हमे अनुभव होगा कि यदि एक बार स्वाध्याय की लगन लग गई तो स्वतः नव साहित्य पठन-लेखन का मन होने लगेगा ।ज्ञानावृत्ति तो सीधा लाभ हैं ।ज्ञान ज्ञान हैं । विद्यालयों , महाविद्यालयों में जो पढ़ाया जाता हैं वह भी स्वाध्याय हैं ।
आत्मा को जानने के लिए ज्ञान जरुरी होता हैं । स्वाध्याय का अर्थ होता हैं अध्ययन , शिक्षा , ज्ञान कि प्राप्ति । जो पढ़ा हुआ हैं उसकी स्मृति करना , पठनीय विषय का मनन करना , उसे दूसरों तक पहुँचाना ये सारे स्वाध्याय से जुड़े पहलू हैं । पढ़ने के बाद भी यदि यह विवेक नहीं जागा कि यह हेय हैं , छोड़ने योग्य हैं , वह उपादेय हैं , ग्रहण करने योग्य हैं तो पढ़ने का सारा श्रम व्यर्थ चला जाता हैं । पढ़ना किसलिए हैं ?
इसका उद्देश्य हैं उस विवेक - चेतना को जगाना , जिससे हेय और उपादेय का सम्यक् बोध हो सके । एक प्रश्न हैं ज्ञान का फल क्या हैं ? कहा गया ज्ञान का फल आचार हैं । प्रमाणशास्त्र में इस बात को विस्तार से बताया गया हैं । प्रमाण का फल हान , उपादान और उपेक्षा हैं ।जो छोड़ने योग्य हैं , उसे छोड़ना , जो उपादेय हैं उसे ग्रहण करना और जो उपेक्षणीय हैं उसकी उपेक्षा करना - प्रमाण के ये तीन फल हैं । कुछ बातें ऐसी होती हैं , जिन्हें लेना भी ठीक नहीं होता और छोड़ना भी ठीक नहीं होता ।
ऐसी बातों की उपेक्षा ही श्रेयस्कर होती हैं । ज्ञान का फल विवेक का जागरण हैं । यदि वह नहीं जागता तो शिक्षा की सार्थकता पर प्रश्नचिह्न लग जाता हैं । विवेक को हम परिभाषित करे । जो चीज अच्छी हैं , उसे ग्रहण करने की शक्ति , जो चीज त्याज्य हैं , उसे छोड़ने की शक्ति और जो उपेक्षणीय हैं , उसके प्रति तटस्थ या उदासीन रहने की शक्ति यह विवेक - चेतना हैं ।अतः हमारे जीवन के लिए स्वाध्याय बहुत आवश्यक हैं ।
प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)