उठ जाग मुसाफिर भोर भई
उठ जाग मुसाफिर भोर भई
सुबह होती है तो हम आम बोलचाल की भाषा में बोलते है उठो - जागो । जैसे सूर्य उदय होता है ठंडी हवाओं की बहार चलती है,पक्षियों की चह-चहाट सुनायी देती है और प्रात: भ्रमण करने से शरीर की थोड़ी कसरत भी हो जाती है।
शास्त्रों में कहा गया है कि प्रात: के समय हम जिस वातावरण में व्यतीत करते हैं वो ही वातावरण हम्हें दिन भर महसूस होता है।ताजी आक्सीजन शरीर के अंदर जाती है,चेहरे पर एक नयी ही ऊर्जा आती है और आलस हमेशा के लिये भाग जाता है। स्मरण रहे जब सुबह सेर पर जायें तो खूब ठहाका लगायें, नित्य सेर करने वालों से मेल-मिलाप बढ़ायें जिससे आपको नये-नये अनुभव भी सीखने को मिलेंगे और आपकी दोस्ती का दायरा भी बढ़ेगा।
बीमारी जल्दी से आपके पास नहीं फटकेगी। प्रातः जल्दी उठना चुस्ती फुर्ती और नई ताजगी बढ़ाता है, बीमारियों से लड़ने की शक्ति जगाता है , दिन भर काम करने का जोश दिलाता है ,आलस्य को दूर भगाता हैं , प्रकृति से रुबरू करवाता हैं यह सब अनुपम दृश्य देख दिल प्रसन्न हो जाता हैं । विभिन्न दैनिक क्रियाओं से मुक्त नव स्फूर्ति लेकर तन का पुर्जा-पुर्जा जागता हैं ।
दिमाग भी शांत व रचनात्मक रहता है । इसीलिए कहा जाता है सुबह की हो सुनहरी बेला उसमें बैठकर अकेला शांतचित्त से आत्म चिंतन की साधना, भगवत स्तुति की आराधना और साथ में यह कहना भी सही हैं कि उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो सोवत है। जो सोवत है सो खोवत है, जो जागत है सो पावत है। प्रदीप छाजेड़