गरीब दोस्त की बेटी का अस्पताल
गरीब दोस्त की बेटी का अस्पताल -
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एक गांव में एक ही जाति के 2 परिवार रहतेथे दोनों परिवार आपसी मेलजोल से रहते थे ।एक दूसरे के दुख सुख में आपसी संबंधों के कारण एक दूसरे की मदद करते रहते थे ।
पंडित दीनदयाल दुबे पुराने जमाने के जमीदार थे और100 बीघा खेती के मालिक थे। बहुत बड़ी शानदार कोठी में रहते थे ।उनका दूसरा साथी दोस्त राम दुलारे दुबे केवल 20 बीघा खेती के ही मालिक थे औरउसी खेती से अपने घर का खर्च चलाते थे। वह भी अच्छे शानदार पक्के मकान में रहते थे। पंडित दीनदयाल दुबे के दो लड़के थे।
जब की राम दुलारे काफी पूजा अर्चना मनौतियो के बाद केवल एक एक लड़का तथा सुंदर कन्यारत्न को जन्म दे पाए थे।वह कन्या रत्न पाकर बहुत खुश रहते थे । दोनों दुबे परिवार आमने सामने रहने के कारण दोनों परिवारों के बच्चे आपसी बड़े प्रेम से रहा करते थे और एक दूसरे के साथ बड़े प्रेम से आंख मिचौली का खेल खेला करते थे । समय बीतने के साथ-साथ तीनों बच्चे उमर में बढ़े हुए।
जिमीदार पंडितदीनदयाल दुबे के बड़े लड़के का नाम नरेंद्र था जिस की उम्र 7 वर्ष की थी और छोटे वीरेंद्र की उम्र 5 वर्ष की थी। पंडित राम दुलारे दुबे के लड़के का नाम ज्योति नंदन दुबे उम्र 8 वर्ष और लड़की का नाम गीता दुबे जिसकी उम्र की उम्र 6 वर्ष थी। चारों बच्चे जब कुछ बड़े हुए तो गांव के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने जाने लगे । चारों बच्चे विद्यालय साथसाथ जाते और साथ- साथ लौटते थे।
प्राथमिक विद्यालय में पांच तक शिक्षा पाने के बाद चारों गांव से 2 किलोमीटर दूर इंटर कॉलेज मेछठवी क्लास में भर्ती होकर कॉलेज में भी चारों साथ साथ पैदल स्कूल जाने लगे ।जब कभी रूपवती चलते चलते थक जाती थी ।तो नरेंद्र उसके किताबों के भारी बस्ते को स्वयं ले लेता था औरगीता को कष्ट नहीं होने देता था। एक बार ऐसा हुआ गीताका बड़ा भाई ज्योति नंदन बीमार पड़ गयागीता को नरेंद्र व वीरेंद्र के साथ कॉलेज जाना पड़ा ।
कॉलेज से लौटते समय गीता का पैर अचानक मुड़ गया और पैर में मोच आ गई। नरेंद्रको गीताको अपनी पीठ पर चढ़ा कर घर तक लाना पड़ा । समय चक्र तेजी से चल रहा था चारों बच्चों ने इंटर की परीक्षा प्रथम श्रेणी मे उत्तीर्ण की। आगे की पढ़ाई करने के लिए पंडित दीनदयाल दुबे के दोनों लड़के बीए एमए की पढ़ाई करने के लिए अपने मामा धीरेंद्र दुबे के यहां दिल्ली चले गए। पंडित राम दुलारे दुबे का लड़का ज्योति नंदन तथा बेटी गीता भी अपने मामा डॉक्टर रूप किशोर दुबे कानपुर के पास पढ़ ले के लिए चली गई ।
चारों बच्चे काफी बड़े हो चुके थे ।एमए की परीक्षा. प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करते समय दिल्ली में रहने वाले नरेंद्र की उम्र उस समय 25 वर्ष तथा वीरेन की उम्र 24 वर्ष हो गई थी ।कानपुर में पढ़ने वाले ज्योति नंदन की उम्र 26 वर्ष तथगीता की उम्र 24 वर्ष की हो गई थी। कानपुर सेगीता अक्सर नरेंद्र को पत्र व्यवहार करती रहती थी और नरेंद्र को उक्त घटना की भी याद दिलाती रहती थी जब नरेंद्र गीता के मोच आने पर उसको अपनी पीढ पर लेकर घर तक लाया था ।
एक दिन गीता ने अपनी मां से अपने नरेंद्र सिंह प्रेम संबंधों की बात बताई और अपनी मां से नरेंद्र की मां से अपनी शादी की बातभी चलाने की बात अपने भेजें पत्र में कही। गीता की मां ने नरेंद्र की मां से नरेंद्र गीता की शादी की बात चलाई। लेकिन नरेंद्र के पिता ने गीता के पिता की माली हालत देखकर शादी करने से मना कर दिया। जब गीता को मां के द्वारा यह बात पता चली तो गीता ने एक प्रेम पत्र लिखते हुए नरेंद्र को लिखा मेरे पिता की माली हालत खराब होने के कारण तुम्हारे पिता ने मेरी तुम्हारी शादी की बात नामंजूर कर दी है और तुम्हारे पिता जिस कॉलेज में तुम लेक्चरर होगयेहो उस कालेज के प्रिंसिपल की बेटी से तुम्हारी शादी करना चाहते हैं ।
तुम इस संबंध में क्या निर्णय ले रहे हो ?मुझे लिखना। नरेंद्र ने संक्षिप्त सा एक पत्र लिखते हुए गीता को लिखा मैं पिता का आज्ञाकारी पुत्र हूं ।वह जो कहेगे वही करूंगा। तुम मुझे भूल जाओ। गीता ने इस पत्र का कोई जवाब भी नहीं दिया समय चक्र हर स्थिति को बदल देता है और मनुष्य को समय चक्र के निर्णय का लाचारी में मानना पड़ता है ।एक दिन जब नरेंद्र अपनी मोटरसाइकिल से कॉलेज से लौट रहा था ।तो रास्ते में नीलगाय के आ जाने से उसका एक्सीडेंट हो गया और स्थानीय डॉक्टरों ने बताया कि नरेंद्र की पसलियां टूट गई है।
उसको तुरंत कानपुर के किसी अस्पताल में ले जाना चाहिए। नरेंद्र के पिता ने फौरन एक टैक्सी किराए पर की और गांव के प्रधान के साथ नरेंद्र को लेकर कानपुर पहुंच गए। नरेंद्र के पिता को उनके साले ने सुझाव दिया कि कानपुर का सबसे मशहूर अच्छा अस्पताल गीता चिकित्सा सेवा संस्थान है उसी अस्पताल में नरेंद् को तुरंत दिखाना चाहिए। साले के सुझाव के अनुसार नरेंद्र के पिता नरेंद्र को लेकर गीत चिकित्सा सेवा पर पहुंचे। वहां के डॉक्टरों ने नरेंद्र की पूरी जांच करने के बाद कहा -इन्हें तुरंत दिल्ली ले जाइए।
हृदय के पास की हड्डियों टूटने का ऑपरेशन कठिन होता है । जिस समय डॉक्टर नरेंद्र के पिता को यह सुझाव दे रहे थे उसी समय गीता मरीजों को देखती हुई ऑपरेशन रूम में पहुंची ।उसने देखते ही नरेंद्र को पहचान लिया और अपने मामा डॉक्टर से बोली। इनका पसलियों का ऑपरेशन मैं करूंगी। घबराने की कोई बात नहीं है गीता बहन के कहने पर भाई खून देने को तैयार हो गया। गीता ने डॉक्टरों की टीम जब तक इस मरीज को दिल्ली तक ले जाया जाएगा इसकी रास्ते में में मौत हो जाएगी ।
खून काफी निकल चुका है और फेफड़ों के पास जमा है। गीता ने अपने भाई को बुलाकर नरेंद्र कोखुन देने के लिए कहा तो भाई तैयार हो गयाथा। गीता डॉक्टरों की टीम के साथ ऑपरेशन करने में लग गई ठीक4 घंटे के प्रयास के बाद फेफड़ों के पास जमा हुआ खून निकाल कर नया । खून देकर पसलियों को ठीक कर के सुधारने ऑपरेशन सफलता पूर्वक कर दिया गया और बाहर आकर नरेंद्र के पिता से गीता बोली -पिता जी आपने मुझे नहीं पहचाना है ।
मैं तुम्हारे गरीब दोस्त की बेटीगीता हूं मैंने आपको और नरेंद्र को आते ही पहचान लिया था इस ऑपरेशन में आपका कोई पैसा नहीं देना पड़ेगा। एक गरीब बाप की बेटी का फर्ज था उसे मैंने फर्ज जानकर निभाया है ।अब10 दिनों के अंदर नरेंद्र ठीक हो जाएंगे और और इन्हें आप घर ले जा सकेंगे। 15 दिन अस्पताल में रहने के बाद जब नरेंद्र बिल्कुल ठीक हो गया तो नरेंद्र के पिता ने गीता से पूछा - क्या बेटी तुम्हारी शादी हो गई है?गीता ने कहा गरीब बाप की बेटी की शादीएसेबिनापैसेनही होती है ।
जब मैं अपनी कमाई से यहां एक बहुत बड़ा अस्पताल खड़ा कर लूंगी। तभी किसी से शादी करूंगी ।अभी इस गरीब की बेटी से कोई शादी करने के लिए एकदम तैयार नहीं होगा । नरेंद्र के पिता बोले- बेटी मैं तुम्हारी सभी बातों को सुनकर समझ गया हूं। तुम मुझे लज्जित कर रहे हो। मैं धन दौलत के चकाचौंध में सच्चे प्रेम को नहीं पहचान पाया था । अपने प्रेमी नरेंद्र को तुमने जीवनदान दिया है। अब नरेंद्र तुम्हारा है। तुम चाहो तो इसे स्वीकार करो या ठुकरा दो ।
गीता ने नरेंद्र के पिता के पैर पकड़ लिए और बोली -मुझे क्षमा करना मैं कुछ ज्यादा ही भूल गई हूं ।नरेंद्र से में तब भी प्यार करती थी आज भी प्यार करती हूं। मैं नरेंद्र को कैसे ठुकरा सकती हूं ।केवल आपकी आज्ञा लेनी है। नरेंद्र के पिता ने गीता के सिर पर हाथ फेरा। तुम मेरी बहू ही नहीं एक अच्छी बेटी भी हो। तुम्हारी नरेंद्र की शादी धूमधाम से विशाल स्तर पर होगी। मैं तुम्हें गांव में ही एक बहुत बड़ा अस्पताल बनवा कर दूंगा। जिसकी तुम मालिक होगी ।
मैं बस तुमको यही देना चाहूंगा जो तुम्हारी एक कल्पना गरीबों की सेवा करने की है वह पूरी होगी । नरेंद्र गीता की धूमधाम से शादी हुई और गांव में एक बहुत विशाल जनता की सेवा के लिए गीता अस्पताल बन गया। बृज किशोर सक्सेना किशोर इटावी कचहरी रोड मैनपुरी