दिल्ली शराब नीति ने केजरीवाल समेत आप के मंत्री और सांसद तक को पहुंचाया जेल? भड़के अन्ना हजारे
दिल्ली के कथित शराब घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने गुरुवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार कर लिया। उन्हें शुक्रवार दोपहर 2 बजे राउज एवेन्यू कोर्ट में पेश किया गया। ED ने कोर्ट से 10 दिन की रिमांड मांगी है।
इसके साथ ही जांच एजेंसी ने कहा कि अरविंद केजरीवाल इस शराब घोटाले के मास्टरमाइंड हैं। ईडी ने आरोप लगाते हुए कहा कि केजरीवाल दिल्ली शराब नीति को बनाने में सीधे तौर पर शामिल थे। अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर अन्ना हजारे की भी प्रतिक्रिया आई है।
अन्ना हजारे ने कहा, ''मैं इस बात से बहुत परेशान हूं कि जो अरविंद केजरीवाल मेरे साथ काम करते थे, शराब के खिलाफ आवाज उठाते थे, वे अब शराब नीतियां बना रहे हैं। उनकी गिरफ्तारी उनके अपने कर्मों के कारण हुई है।" इन तमाम घटनाक्रमों के बीच ये जानना जरूरी है आखिर ये शराब घोटाला क्या है?
नई शराब नीति क्या थी... ये शराब घोटाला क्या है, ये कैसे हुआ है और इसमें कब-कब क्या हुआ है और आखिर में अरविंद केजरीवाल इसमें गिरफ्तार कैसे हो गए? दिल्ली शराब नीति क्या है? केजरीवाल सरकार ने 17 नवंबर 2021 को नई शराब नीति लागू की थी। नई पॉलिसी के तहत, शराब कारोबार से सरकार बाहर आ गई और पूरी दुकानें निजी हाथों में चली गईं। दिल्ली सरकार का दावा था कि नई शराब नीति से माफिया राज खत्म होगा और सरकार को 3500 करोड़ का फायदा होगा।
शराब नीति में हुए बदलाव इसके अलावा एक और बदलाव ये हुआ कि नई नीति लागू होने के बाद दिल्ली सरकार ने शराब की दुकान के लाइसेंस की फीस कई गुना बढ़ा दी। पहले जिस एल-1 लाइसेंस को लेने के लिए ठेकेदारों को 25 लाख रुपये देने होते थे अब ये बढ़कर 5 करोड़ रुपये हो गए। इसी तरह अन्य कैटेगिरी के लाइसेंस की फीस भी कई गुना बढ़ा दी गई। इससे पहले की नीति में ठेकों का लाइसेंस सरकार के पास होता था और सरकार के ही द्वारा निर्धारित मूल्यों पर शराब बेचा जा सकता था।
लेकिन नई नीति में सरकार इससे पूरी तरह से बाहर हो गई और निजी सेक्टर को शराब का मूल्य तय करने की छूट मिल गई। मार्केट में बढ़ा कंपटीशन अब शराब की कीमत मार्केट तय करने लगा तो इसका असर ये हुआ कि कंपटीशन बढ़ गया। फिर दुकानदार अधिक से अधिक शराब बेचने के चक्कर में कीमतें घटाने लगे। देखादेखी दूसरे दुकानदारों ने भी यही किया। आप अगर दिल्ली में रहते हों तो आपको शराब की बोतलों पर लुभावने ऑफर याद होंगे जिसमें एक बोतल के बदले एक या दो बोतल तक मुफ्त दिया जाने लगा था।
अब इसका असर ये हुआ कि शराब खूब बिकने लगी थीं। लेकिन शराब को इसका फायदा नहीं मिल रहा था। ये कैसे हुआ? दरअसल पहले की नीति में 750 एमएल की एक शराब की बोतल 530 रुपए में बेचने पर दुकादार को 33.25 का फायदा होता था। इसमें सरकार के हिस्से उत्पाद कर और वैट के रूप में क्रमशः 223.89 और 33.35 रुपये आते थे। नई नीति से सरकार को घाटा पहले की नीति में इस हिसाब से सरकार को हर एक बोतल पर 329.89 रुपए का फायदा होता था। लेकिन नई नीति में दुकानदारों का फायदा दस गुना बढ़कर 363.27 रुपये पहुंच गया। और वहीं सरकार को मिलने वाला 329.89 रुपए का फायदा घटकर 3.78 पैसे रह गया।
इसमें 1.88 रुपए उत्पाद शुल्क और 1.90 रुपए वैट शामिल है। जब ये शराब नीति लागू हुई तब इसका जिम्मा मनीष सिसोदिया के पास था। शराब नीति के लागू होने के कुछ महीने बाद इस पर गड़बड़ी के आरोप लगने लगे। इसके बाद दिल्ली के एलजी ने इस शराब नीति पर रिपोर्ट तलब की। 8 जुलाई 2022 को दिल्ली के मुख्य सचिव ने उपराज्यपाल को रिपोर्ट सौंपी। राजस्व का हुआ नुकसान इसमें डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया पर शराब कारोबारियों को अनुचित लाभ पहुंचाने का आरोप था। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक जहां पहले कहा गया था कि इससे शराब को हर साल 3500 करोड़ का लाभ होगा, मगर उल्टे इससे दिल्ली को 580 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो गया।
रिश्वत लेने के आरोप दिल्ली सरकार और आप के नेताओं पर आरोप लगा कि उन्होंने शराब कारोबारियों ने रिश्वत लेकर नई नीति लागू की। इसके बाद कोविड महामारी के नाम पर शराब ठेकेदारों के करोड़ रुपये माफ करने का भी आरोप लगा। इसके अलावा दिल्ली सरकार पर लाइसेंस देने में घूस लेने का भी आरोप लगा। केजरीवाल कैसे गिरफ्तार हुए? शराब मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ईडी ने पिछले साल 2 नवंबर को पहला समन भेजा था।
ये समन प्रिवेन्शन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत जारी किया गया था। ईडी की ओर से जारी चार्जशीट में आरोप है कि जब एक्साइज पॉलिसी 2021-2022 तैयारी की जा रही थी, उस वक्त केजरीवाल, आरोपियों के संपर्क में थे। इसके बाद से ईडी सीएम केजरीवाल को अब तक नौ समन जारी कर चुकी है। गुरुवार को ईडी की टीम 10वां समन लेकर उनके घर पहुंची थी। इस बीच केजरीवाल ने गिरफ्तारी से बचने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। हाईकोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था।