जस को तस नहीं
जस को तस नहीं
कोई हमारे साथ गलत करे तो उसके साथ हम गलत नहीं करे क्योंकि करने वाले के साथ वैसा ही हमारा व्यवहार हमारे जीवन आचरण के अनुरूप नहीं होता है क्योंकि उसमें और हमारे में क्या अन्तर रह जायेगा ।
सोने की खदान में से मिट्टी निकाली जाती है उसके बाद मिट्टी को सोने से अलग किया जाता हैं और आगे सोने को भिन्न - भिन्न रूपों से सुसज्जित किया जाता है लेकीन कीचड़ से कीचड़ को कभी भी साफ नहीं किया जा सकता है ।
हम जो भी काम करे पूरी लगन मेहनत और निष्ठा से करेगे तो उसको करके मन मे अति प्रसन्नता के अनुभव होता है इसके विपरीत बेमन से मजबूरी समझ कर किया गया काम हमें प्रसन्नता नही मन का भारीपन देता है खुशी नहीं देता तो हमें अपने कार्य को अपनी जिम्मेदारी समझकर खुशी खुशी से पूरी तन्मयता से करना चाहिए प्रसन्न मन से किये गये कार्य से हमें आत्म सन्तुष्टि होती है कहा भी गया है कि जैसा करेंगे वैसा पाएंगे जैसे को तैसा ।
ठीक इसी तरह हमारे साथ कोई बुरा करे तो हम बुरे का जवाब सही करके करेंगे तो सामने वाला कितना हमारे साथ गलत करेगा फिर भी अगर मन में संतुष्टि नहीं हो तो यह सोचे की कोई मेरा बुरा करे वह उसका कर्म मैं किसी का बुरा न करूँ यह मेरा धर्म। अतः करणीय व्यवहार यही है कि अच्छे के साथ अच्छा बनें पर बुरे के साथ बुरा कभी नहीं बने ।
प्रदीप छाजेड़