बसंत पंचमी
बसंत पंचमी ऐसी करनी हम करते चले -2 ॥ध्रुव॥
हो जाये हमारा जीवन साकार ऐसी करनी हम करते चले -2 ॥ध्रुव॥
चहुँ और हो बसंत जैसी बहार जीवन बने सदैव सुखकार रहे निरामय हमारे विचार ऐसी करनी हम करते चले -2 ॥ध्रुव॥
निर्लिप्तता से जीवन जिये भार मुक्त हम खुद भी बने ना औरों का हो हमारे भार ऐसी करनी हम करते चले -2 ॥ध्रुव॥
हमको करे हमारे कृत कर्मों से हमेशा - हमेशा ज़माना याद सदियों तक जिन्दा रहे हमारे संवाद ऐसी करनी हम करते चले -2 ॥ध्रुव॥
खुले हमारे ज्ञान के द्वार अपनी आत्मा अपना खुद करे शुद्ध रूप साक्षात्कार ऐसी करनी हम करते चले -2 ॥ध्रुव॥
ना राग रहे ना द्वेष हमारे बुझे हमेशा हमेशा के लिये जन्म मरण की यह आग ऐसी करनी हम करते चले -2 ॥ध्रुव॥
हो जाये हमारा जीवन साकार ऐसी करनी हम करते चले -2 ॥ध्रुव॥
प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )