विषय आमंत्रित रचना - भाई - भाई का प्यार
विषय आमंत्रित रचना - भाई - भाई का प्यार
भाई - भाई का प्यार बहुत अनमोल होता हैं । बड़ा भाई पिता के समान होते हैं । जो छोटे भाई का सभी तरीके से सुख - दुःख समझ सहीसे उसके जीवन विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । विषय दाता के भावों को लेते हुए सूना सूना है भाई बिना परिवार अपना ।
जैसेकोई नीरस सपना । मिला जाये एक शुभ सुखद समाचार समाप्त हो जाये इंतजार । अब कब आएगी फिर से बहार । कब निर्झरित होगाभाई सा का स्नेह व प्यार । निमग्न हो रहे भाई - भाई के साथ आनंद से सरोबार । जिससे नई ऊर्जा का संचार होगा । जीवन में भाई कीप्रेरणा से खुलेंगे द्वार ।पास या दूर कही भी हो सदा छत्र बन, बना रहे हम सबके सर पर भाई आपका हाथ । सप्त रंगों के प्रेम का है भाईका प्यार । परिवार में सबके जीवन में सदा हो खुशियों की बौछार ।रिश्ते प्रेम के पनपे परिवार में ।
आपस में भाईचार हों । भाई कासुंदर मानहो छोटो से प्यार व्यवहार । कोई दुखी दरिद्र न हो न होवे लाचार । प्रेम पकवान से सुगंधित हो भाई - भाई का प्यार जिससे इन्द्रधनुषी बहार हों । समय अनुरुप भावो के हो उदगार प्रीति के रंग से सराबोरभाई भाई के प्यार का व्यवहार हो । हमारी सकारात्मक सोच दुःख और सुख दोनों को अशाश्वत समझते हुए हमारे को प्रसन्न रहने कारास्ता दर्शाती है।विवेक ही सबका आधारस्तंभ है।
भाई - भाई को दर्द का अहसास रहे । संवेदना सदैव पास रहे ।अच्छा करो अच्छा हीहोगा कर्मों पर इतना सबको विश्वास रहे। पहले आपसी प्यार बहुत था ।भाई - भाई एक दूसरे की मदद करने को तैयार रहते थे । पर आज परिवार की सोचपहले के माहौल से बिल्कुल भिन्न हैं। ऐसे ज्वलंत मुद्दे हैं जिन्हें आपसी तालमेल से हल किए जा सकते हैं पर आज हम सब अपने ईगो मेंरहते हैं।पहले लोग एक दूसरे को पहचानते थे पर अब पास में कौन रहता है क्या करता है यह भी मालूम नहीं है। मोबाइल के कारणआपसी संवाद जरूर हो जाता है पर बस उसी में सिमट कर रह जाते हैं। पहले बुजुर्गों के छांव में बच्चे लड़ते-झगड़ते, खेलते-कुदते कबबड़े हो जाते परिवार वालों को पता ही नहीं चलता ।बुजुर्गों का मान होता था।
आजकल बुजुर्गों का मान कम हो गया है। पर्यावरण दूषितहो रहा है, खाने पीने में केमिकल मिलाकर जहर दिया जा रहा है, लोग बीमार पड़ रहे हैं। जबकि पहले के लोग तंदुरुस्त रहते थे, और चैनकी बंसी बजाते हुए शांति से अपना जीवन बसर करते थे। भौतिक चकाचौंध से दूर, आओ चलें हंसी खुशी की दुनिया में जहां अपनों कासाथ हो , खुशी में भी, गम में भी और चैन की बंसी बजाते हुए फिर भाई - भाई के प्यार में उसी जमाने में लौट चलें । यूज अंड थ्रो केजामने मे सब क्यों वफ़ा की अपेक्षा करते हो ?
यहाँ अब तो मतलब से ही रिश्ते बनते हैं । दिल की बात छोड़िए ।दिलों में प्यार ही कहाँहै? जो मिल जाए आसानी से नहीं होती क़दर उसकी जो असम्भव है जाने क्यों ज़िद है उसकी ? ख़ुश रहना है तो जो पास है छोटे - बड़ेमिलकर करलो क़दर उसकी । नहीं मिलेंगे प्यार के ख़ून के भाई - भाई के रिश्ते । न समय आता जो जा रहा बीत ।जीना हो सकून सेजीओ । जो है उसे ही सही से प्रमाणकिता से भरसक प्रयास करके बेहतर बना लो । क्यों मकड़ी सा जाल बुन ख़ुद को ही तबाह कर रहेहो । ख़वायिशों का ताना बाना बुनकर जिसका नहीं कोई छोर है न अंत कहीं । भाई - भाई का प्यार अनमोल हो । जीवन में खुशियाँ हो। प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)