भगवान महावीर का 2551 वां निर्वाण कल्याणक दिवस
भगवान महावीर का 2551 वां निर्वाण कल्याणक दिवस -
भगवान महावीर ने कार्तिक बदी ( कृष्ण पक्ष ) तेरस को आखिरी बार उपवास शुरू किया था और बेले के बाद उनका आज के दिन निर्वाण हुआ । यह पर्व है मेरे वीर के निर्वाण का, पर्व है गौतम के केवलज्ञान का, पर्व है आत्मा की पवित्रता के कल्याणक का ,पर्व है ऋद्धि सिद्धि का , पर्व है महालक्ष्मी की साधना का , पर्व है माँ सरस्वती की आराधना का , पर्व है दीपो की दीपमालिकाओ का , तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी के निर्वाणोत्सव और दीपावली आदि का ।
अध्यात्म के दीपक रूपी आगम, ग्रंथ व शास्त्र आदि हमारे पथ प्रदर्शक हैं।जो हमें जीवन में सही राह दिखाते हैं । ज्योति पर्व दीपावली प्रकाश पर्व है। आज के इस पुनीत अवसर का संबंध भारतीय संस्कृति में भगवान राम का 14 वर्ष के वनवास के पश्चात अयोध्या लौटना, जैन संस्कृति में भगवान महावीर के निर्वाण कल्याणक के साथ भी दीपावली का संबध है।अमावस्या के दिन देवता रत्नों से उद्योत करते है।
आध्यात्मिक समृद्धि का प्रकाश चंहुदिशी में फैल गया अत: यह दिन प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाने लगा। आज भी महावीर के सिद्धान्त आउटडेट नहीं बल्कि हर युग में अपडेट टू डेट है। उन्होने बताया कि धर्म वैयक्तिगत तत्व है जो पवित्र ह्रदय में ही सदैव ठहरता है ।सामुदायिकता तो उसके विकास के लिए होती है।पशुबली का विरोध करते हुए उन्होने कहा जिस प्रकार खुन का सना वस्त्र खुन से साफ नहीं हो सकता वैसे हीं हिंसा से धर्म नहीं हो सकता हैं । अंहिसा सच्चा धर्म हैं।
संयम का कोई विकल्प नही है।नारी समानता के प्रबल पक्षधर महावीर ने दासप्रथा को कंलक बताकर इसकी जडे हिला दी।आचारव्यवहार में अंहिसा,विचारों में अनेकान्त, वाणी में स्यादवाद और समाज में अपरिग्रह के संदेशो के साथ मनुष्यजाति को तीर्थकर महावीर ने जीवन जीने की कला सिखाई। जैन दर्शन का घोष है ज्ञान प्रकाशकर है। भारत कृषि प्रधान देश है। किसानों के लिए भी फसल काटकर त्योहार मनाने का समय है दीवाली। यह एक ऐसा पर्व जो सबमे उमंग, जोश, स्फूर्ति आदि से भर देता है। खुशियों का , प्रसन्नता का मैत्री का उल्लास आदि का वातावरण बन जाता है। मैत्री सौहार्द का सुंदर माहौल बन जाता है।
यह निश्चित सत्यम है और सभी जानते भी हैं कि आदमी खाली हाथ आया है और खाली हाथ ही जायेगा ।पूत सपूत तो क्यो धन संचै पूत कपूत तो कर्मों धन संचै के फिर इतनी भागदौड़ की जरूरत करता है । हां तेल और बाती दिये था जितनी तो चाहिए परंतु उससे सबक भी लें।बाहरी प्रकाश के साथ भी भीतर में भी ज्ञान की तरावट भी तो जरुरी है।आपस में मतभेद हो सकता है ।परंतु मनभेद नहीं होने चाहिए । दीये अनेक तरह के होते हैं पर जब जलते तो एक ही तरह से हैं।इसीलिए धीरे से भी सब सीख लें।
भगवान महावीर के निर्वाण कल्याणक के दिन आज हम संकल्प करें कि अपने कषायों को उपशान्त करते हुए कर्मों की विवेकपूर्वक उदीरणा करते हुए और नए कर्मों के आगमन में सचेत रहते हुए इस जन्म में कर्म निर्जरा का महान उपक्रम कर अगर हम जो भी गति बांध चुके हो या न बंधी हो सचेत होकर निरन्तर मंगलभावना भाते हुए तीसरे भव में भगवानमहावीर जैसेबनकर उनके पास अवस्थित हो जाएं ,भवभवान्तर से मुक्त होकर शुद्ध चैतन्य आत्मा बनकर।
आज से हमारा ये संकल्प निरन्तर आगे से आगे गतिमान हो जिससे प्रतिदिन हमारे जीवन में दीवाली पर्व के प्रकाश का अभ्युदय वर्धमान होता रहे। भगवान महावीर के निर्वाण कल्याणक दिवस व दीपावली पर्व के शुभ प्रकाशमय चैतन्य की रश्मियां आप और हम सबको आलोकित करती रहे । प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )