डिप्टी सीएम की प्रेसवार्ता के बाद जिले के पत्रकार और पत्रकारिता शक के घेरे में
डिप्टी सीएम की प्रेसवार्ता के बाद जिले के पत्रकार और पत्रकारिता शक के घेरे में
डिप्टी सीएम की प्रेसवार्ता के दौरान पत्रकारों ने पत्रकारिता को किया शर्मशार
सूत्रों की मानें तो पत्रकारों को लेकर जिला प्रशासन और सूचना विभाग बना रहा है ठोस रणनीति
अमित माथुर (उप संपादक) एटा। देश का स्वघोषित चौथा स्तंभ आयेदिन अपनी कार्यशैली को लेकर शासन-प्रशासन से लेकर आमजनता के निशाने पर है। कहते हैं पत्रकार समाज का दर्पण होता है वह समाज में व्याप्त कुरीतियों से लेकर हर उस वर्ग की आवाज बनता है जो पीड़ित कमजोर होता है, लेकिन वर्तमान समय में पत्रकारिता के नाम पर एजेंडा धारी होना स्वयं किसी घटना में पार्टी बनकर नेतागिरी करना पत्रकारिता के नाम पर फैशन बन गया है।
लेकिन यह तरीका कहीं ना कहीं पत्रकारिता के लिए घातक साबित हो रहा है और पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े कर रहा है, साथ ही आज के इलैक्ट्रोनिक मीडिया के दौर में सबसे आगे, सबसे तेज और सबसे पहले खबर दिखाने के चक्कर में न्यूज चैनल के रिपोर्टरों द्वारा शासनिक एवं प्रशासनिक लोगों की बाइट लेने के दौरान जो आचरण रहता है वह एक प्राइमरी स्कूल के बच्चों से भी ज्यादा बुरा रहता है जिसके चलते इलैक्ट्रोनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के बीच टकराव की स्थिति पैदा कर देता है जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान शासनिक एवं प्रशासनिक लोगों को होता है।
पुलिस विभाग से लेकर नेताओं की प्रेसवार्ता में इलैक्ट्रोनिक मीडिया के बंधु सबसे पहले बाइट लेने के चक्कर में अपनी माइक आईडी मुंह में घुसेड़ देते हैं और सवाल-जवाब में इतना समय हो जाता है कि अधिकारी- नेतागण ऐसे में प्रिंट मीडिया के बंधुओं को समय देना भूल जाते है तो ऐसे में प्रिंट मीडिया से जुड़े पत्रकारों द्वारा जानबूझकर खबरों को प्रकाशित नहीं किया जाता।
हालांकि इसमें गलती इलैक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े पत्रकारों की भी नहीं है उन्हें भी बाइट चाहिए, ऐसे में अधिकारियों को तय करना पड़ेगा एक-एक करके दोनों को समय दिया जाए जिससे प्रशासनिक अधिकारियों के साथ ही इलैक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया में भी सामंजस्य स्थापित हो सके। अब बात करते हैं डिप्टी सीएम की प्रेसवार्ता की दरअसल सूचना विभाग द्वारा ससम्मान पत्रकारों को प्रेसवार्ता में बुलाया गया लेकिन प्रेसवार्ता में तमाम ऐसे लोग पहुंचे जिनका पत्रकार और पत्रकारिता से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं था दरअसल यह शौकिया पत्रकार थे जो पत्रकारों के सम्पर्क में रहते हैं और उनको अधिकारियों से हाथ मिलता देख उनके साथ बैठते देखकर उनको पत्रकार बनने का शौक चढ़ जाता है और फिर उन्हीं पत्रकारों की खातिरदारी करके अपने कार्ड बनवा लेते हैं फिर उनपर पत्रकारिता वाला रौब चढ़ता हर प्रेसवार्ता में पहुंचना चौकी थानों में पुलिस वालों से दोस्ती-यारी करना उनके साथ फोटो खींचकर सोशल मीडिया में वायरल करना और खुद को अधिकारियों कर्मचारियों में अच्छी पहुंच होने का दिखावा करना ऐसे पत्रकारों की पहचान होती है।
ऐसे शौकिया पत्रकारों में कुछ हाईस्कूल फेल तो कोई जैसे-तैसे इंटर किए होते हैं जिन्हें ना बात करने का लहज़ा होता है ना खबरों का ज्ञान सिर्फ एक क्वालिटी होती है वो है अधिकारियों के सामने ठसक के बैठना और ज्यादा बोलना जिससे अधिकारी का ध्यान उनपर आकर्षित हो, जिससे अधिकारी उसकी शक्ल पहचानने लगे। उसके बाद ऐसे लोग पत्रकारिता के नाम पर लोगों को लूटते हैं और अधिकारियों कर्मचारियों पर रौब झाड़कर काम कराने की कोशिश करते हैं जब कार्य नहीं होता तो पार्टी बनकर उल्टी-सीधी खबर चलाते हैं, सबसे कमाल की बात इसमें यह है कि अधिकारी कर्मचारी ही फर्जी शौकिया पत्रकारों को बढ़ावा देते हैं अगर कोई पत्रकार उनसे किसी कार्य से मिलता है तो उसे भाव नहीं देते और फर्जी शौकिया पत्रकारों के साथ फोटो खिंचवाकर स्वयं गौरवान्वित महसूस करते हैं।
फिलहाल सूत्रों की मानें तो जिला प्रशासन और सूचना विभाग पत्रकारों को लेकर गंभीर है और आने वाले समय में पत्रकारिता के नाम पर बढ़ रही भीड़ को नियंत्रित करने के लिए ठोस रणनीति पर कार्य कर रहा है।