एटा बना 'सट्टा हब', खाकी-खादी की छांव में फल-फूल रहा गोरखधंधा
एटा बना 'सट्टा हब', खाकी-खादी की छांव में फल-फूल रहा गोरखधंधा
एटा। ज़िले में सट्टेबाज़ी ने अब ‘उद्योग’ का रूप ले लिया है, और इसमें सबसे बड़ा निवेश खाकी और खादी से आ रहा है! जहां एक ओर कानून की किताबें सट्टा को अपराध बताती हैं, वहीं दूसरी ओर स्थानीय प्रशासन और नेता इसे ‘ग्रोथ मॉडल’ मान बैठे हैं। सूत्रों की मानें तो मोहल्ला हो या मन्दिर के पीछे का गलियारा, हर नुक्कड़ पर शाम होते ही सट्टे की पर्चियाँ उड़ने लगती हैं। हद तो तब हो गई जब एक स्कूल के सामने सट्टा चलने की खबर आई – बच्चे पढ़ाई कर रहे थे, और बगल में 'गिल्ली-दाढ़ी' के नाम पर लाखों का खेल हो रहा था।
?♂️ **प्रशासन चुप क्यों?** जवाब साफ है – संरक्षण! स्थानीय लोगों का कहना है कि कुछ पुलिसकर्मी और सफेदपोश नेताओं को हर हफ्ते 'हफ्ता' पहुंचाया जाता है, तभी तो सट्टा माफिया बेखौफ हैं।
?️ **स्थानीय निवासी बोले – “यही है विकास?”** "अब तो यहां बिना सट्टा खेले नौकरी भी नहीं लगती", एक युवक ने व्यंग्य में कहा। बुजुर्गों का कहना है कि यह बीमारी पूरे समाज को खोखला कर रही है, पर कोई सुनने वाला नहीं।
? **प्रशासन का मौन = मौन स्वीकृति?** जब रिपोर्टर ने एसपी ऑफिस में संपर्क किया, तो जवाब मिला – “जांच कर रहे हैं।” ये जवाब पिछले कई महीनों से वही है, लेकिन सट्टा कभी रुका नहीं।





