खाद्य संयम दिवस
खाद्य संयम दिवस
साधना के लिये शक्ति चाहिए और शक्ति के लिए शरीर चाहिए। शरीर को धारण करने के लिए खाना जरुरी है । इसलिए जीवन का , शरीर का और आहार का गहरा संबंध है । साधना ज़रूरी है । साधना के लिए शरीर जरुरी है । शरीर को टिकाए रखने के लिए आहार जरुरी है ।
भोजन का एक पहलू यह भी है | उस पर हमें ध्यान देना चाहिये । हमारे लिए खाना जितना महत्वपूर्ण है । नहीं खाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है । खाने का जितना मूल्य है नहीं खाने का भी उससे कम मूल्य नहीं है । जब तक हम नहीं खाने पर विचार नहीं करते हैं तब तक भोजन का विषय पूर्ण दृष्टि से चर्चित नहीं होता हैं ।
स्वास्थ्य के लिए यदि सन्तुलित भोजन जरुरी है तो उसके लिए भोजन को छोड़ना भी जरुरी है । भोजन को छोड़ने के तीन प्रकार भगवान महावीर ने बतलाए हैं - अनशन , ऊनोदरी , रस - परित्याग । ये आहार के अनिवार्य सिद्धांत है , इसलिए ये आहार से भिन्न नहीं है ।
अनाहार को छोड़कर आहार को देखना वास्तव में आहार के प्रति भ्रांत होना है और अपने स्वास्थ्य के प्रति भी अन्याय करना है । जो लोग केवल भोजन का ही महत्व समझते है , उसे छोड़ने का महत्व नहीं समझते , वे न केवल मोटापे की बीमारी से ग्रस्त होते जा रहे है , किंतु अन्य बीमारियाँ भी उन्हें आक्रांत कर रही है । भगवान ने कहा की - कुछ ऐसा अभ्यास करो , जिससे यह अनुभव हो कि खाने पर भी पूरा नहीं खाया ।
ऊनोदरी का सिद्धांत कम खाने का सिद्धांत है । यही परिमित भोजन है । स्वयं द्वारा स्वयं की चिकित्सा है । पर्युषण पर्व का आज प्रथम दिन हैं । हम रखें आज ही नहीं पूरे पर्युषण काल में खान-पान का संयम। साथ में इसे हम जीवन पर्यन्त अपनाने का प्रयत्न करें । प्रदीप छाजेड़ ( बोंरावड़ )