विकास के समांतर चुनौतियों की राह

Jun 10, 2025 - 08:54
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विकास के समांतर चुनौतियों की राह

भारत की अर्थव्यवस्था आज तेजी से बढ़ती दिख रही है तो ऐसा आर्थिक नीतियों के कारण संभव हो पाया है। मगर इसके साथ ही कुछ चुनौतियां भी हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के ताजा आंकड़ों के अनुसार हम चार ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था हैं।

आज भारत जापान से बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। अब केवल अमेरिका, चीन और जर्मनी ही भारत से बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं नीति आयोग का मानना है कि यदि हम अपनी आर्थिक योजनाएं सोच-विचार कर बनाते रहें, तो अगले ढाई तीन साल के भीतर हम तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे। देश की अर्थव्यवस्था को इस मुकाम तक पहुंचाने में विगत वर्षों में किए आर्थिक सुधारों की बड़ी भूमिका रही है। वर्ष 1991 में भुगतान संतुलन संकट का सामना करना पड़ रहा था, तब मुद्रा कोष से सहायता लेनी पड़ी। इस दौरान आर्थिक सुधार प्रारंभ किए गए। इन सुधारों का उद्देश्य अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों जैसे उद्योग, व्यापार, वित्त और विदेशी निवेश में सरकारी हस्तक्षेप एवं विनियमन को कम करना था। इन । इन सुधारों में लाइसेंस और र परमिट-कोटा प्रणाली को समाप्त करना भी शामिल था, जो निजी कंपनियों के प्रवेश एवं विस्तार को प्रतिबंधित करती थी।

उदारीकरण की इन नीतियों से भारत को उच्च विकास दर प्राप्त करने और वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत होने में मदद मिली। सरकार के स्वामित्व या नियंत्रण में रहे सार्वजनिक उपक्रमों का भी निजीकरण किया गया। वर्ष 1991 के बाद भारत ने 60 से अधिक सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण किया, जिससे तीन लाख करोड़ रुपए से अधिक राशि प्राप्त हुई। भारत ने उदारीकरण को भी अपनाया, जिसका उद्देश्य विश्व अर्थव्यवस्था के साथ अपने खुलेपन और एकीकरण को देश में कोविड- 19 महामारी और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव की दृष्टि से वर्ष 2020 में एक नई आर्थिक नीति की घोषणा की गई। इस नीति में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों और खंडों को समर्थन को समर्थन प्रदान करने करने के लिए 20 लाख करोड़ रु रुपए के प्रोत्साहन पैकेज दिए गए, जो पैकेज दिए गए, जो सकल घरेलू उत्पाद के दस फीसद के थे। ।

इस नीति में कृषि, श्रम, शिक्षा, स्वास्थ्य, रक्षा, 'खनन, बिजली और कराधान जैसे क्षेत्रों में सुधारों की एक श्रृंखला भी शामिल की गई। इस नीति का लक्ष्य भारत को महामारी के बाद विश्व में | आत्मनिर्भर बनाना था। आर्थिक सुधारों के अंतर्गत दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता को लागू किया गया, जिसका उद्देश्य कारपोरेट देनदारों, वित्तीय ऋणदाताओं और परिचालन ऋणदाताओं के दिवाला एवं शोधन के मामल | को हल करने के लिए समयबद्ध एवं बाजार आधारित तंत्र प्रदान करना था। इसी कड़ी में श्रम सुधार दृष्टि से चार संहिताएं बनाई गई, जिनका उद्देश्य केंद्रीय श्रम कानूनों को चार चार व्यापक श्रेणियों समेकित एवं सरलीकृत करना था, इसके अंतर्गत वेतन, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा एवं व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य से से जुड़े प्रावधानों को सम्मिलित किया गया। ये संहिताएं नियोक्ताओं को कामगारों को नियोजित करने एवं कार्यमुक्त करने में लचीलापन प्रदान करने, व्यवसायों के लिए पंजीकरण एवं अनुपालन की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने, अनौपचारिक कामगारों को सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने और मजदूर संगठनों के माध्यम से सामूहिक सौदेबाजी को बढ़ावा देने की दृष्टि से अहम हैं। इसी प्रकार उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना भी कुछ क्षेत्रों में लागू की गई।

आटोमोबाइल, इलेक्ट्रानिक्स, कपड़ा, औषधि और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में विनिर्माण एवं निर्यात को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2020 में यह योजना शुरू की गई। इस योजना के अंतर्गत पात्र निर्माताओं को पांच वर्षों की अवधि में उनकी बिक्री और निवेश के आधार पर वित्तीय प्रोत्साहन दिए गए। इसका कुल परिव्यय 1.46 लाख करोड़ रुपए था। इससे रोजगार सृजन, विदेशी निवेश आकर्षित करने, प्रतिस्पर्धा बढ़ाने और आयात पर निर्भरता कम करने के प्रयास किए गए। इन सभी उपायों के फलस्वरूप अर्थव्यवस्था में सुधार होता गया और हम चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए। आर्थिक विकास के साथ-साथ अब भी कई चुनौतियां बनी हुई हैं जो अर्थव्यवस्था की बढ़ती गति में बाधाएं उत्पन्न कर सकती हैं। निम्न आय वृद्धि, उच्च मुद्रास्फीति और बेरोजगारी के कारण भारत में वस्तुओं और सेवाओं की मांग उतनी तेजी से नहीं बढ़ रही है जितनी | एक विकसित अर्थव्यवस्था के लिए अपेक्षित है। । इससे | अर्थव्यवस्था में उपभोग और निवेश का स्तर भी प्रभावित हुआ जिससे सरकार के राजस्व में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हो सकी। तीव्र आर्थिक विकास के बावजूद ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बेरोजगारी आज भी एक गंभीर समस्या है। कोविड-19 महामारी के कारण बंद हुए व्यवसाय अभी तक पूरी तरह संभल नहीं पाए हैं जिससे रोजगार का स्तर सुधर नहीं पाया है 'सेंटर फार मानिटरिंग इंडियन इकानोमी' 'की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार जून 2024 में भारत की बेरोजगारी दर 9.2 फीसद रही, जो मई 2024 में सात फीसद से 'अधिक है अप्रैल 2025 में 15 वर्ष की आयु के युवाओं के लिए सामान्य स्थिति पर बेरोजगारी दर 10.2 फीसद थी। देश में सड़क, रेलवे, बंदरगाह, बिजली, पानी और स्वच्छता जैसी पर्याप्त अवसंरचना का भी अभाव है, जिससे तेज आर्थिक विकास और प्रतिस्पर्धा प्रभावित होती है।

विश्व बैंक के अनुसार भारत का अवसंरचनात्मक अंतराल लगभग 1.5 ट्रिलियन डालर होने का अनुमान है। कमजोर अवसंरचना लोगों के जीवन की गुणवत्ता और स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है, ग्रामीण क्षेत्रों में इसका अधिक प्रभाव पड़ता है। भुगतान संतुलन का बिगड़ना भी बड़ी समस्या है। चालू खाता लगातार घाटे से जूझ रहा है। यह हमारे आयात-निर्यात से अधिक है जिसके कारण यह समस्या है। बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ प्रति व्यक्ति आय देखना भी महत्त्वपूर्ण है। भारत ने जापान को पीछे छोड़ कर चौथी अर्थव्यवस्था का दर्जा हासिल किया है, लेकिन प्रति व्यक्ति आय की दृष्टि से अभी भी पीछे ही हैं। भारत की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 2.44 लाख रुपए हैं। जबकि जापान की प्रति व्यक्ति आय 28.81 लाख रुपए और अमेरिका 75.64 रुपए के साथ सर्वोच्च स्थान पर है। हम अर्थव्यवस्था को और गति देने की दृष्टि से उपभोग और निवेश मांग को बढ़ावा देना चाहिए। सरकार को सार्वजनिक अवसंरचना, स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा में और अधिक निवेश करना चाहिए, जिससे रोजगार सृजित हो सके, उत्पादकता में सुधार हो सके और मानव पूंजी की वृद्धि हो सके। सरकार । सरकार को नए बाजारों तक पहुंच बनाने और अपनी 'निर्यात टोकरी' विविधता लाने के लिए! के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान और आसियान जैसे रणनीतिक भागीदारों के साथ व्यापार समझौते संपन्न करने चाहिए।

 बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों की समस्या का समाधान करके, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूजीकरण, प्रशासन में सुधार और वित्तीय समावेशन एवं नवाचार को प्रोत्साहित कर वित्तीय क्षेत्र को सुदृढ़ करना चाहिए। बैंकों की गैर निष्पादित परिसंपत्तियों की समस्या का समाधान करके, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूजीकरण, प्रशासन एवं विनियमन में सुधार और वित्तीय समावेशन एवं नवाचार को प्रोत्साहित करने के माध्यम से वित्तीय क्षेत्र को सुदृढ़ करना चाहिए ।

विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब