क्या जेल जाएंगे केशव प्रसाद मौर्य? बीजेपी नेता ने ही खड़ी कर दीं यूपी के डिप्टी सीएम के लिए मुश्किलें

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के लिए एक बीजेपी नेता ने ही बड़ी मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। बीजेपी नेता ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर के कई बड़े आरोप लगाए हैं। हाई कोर्ट ने भी याचिका स्वीकार कर ली है। अब अगर याचिका में लगाए गए आरोप सही साबित हुए तो केशव प्रसाद मौर्य के लेने के देने पड़ने वाले हैं। यहां तक कि वह धोखाधड़ी के मामले में जेल भी जा सकते हैं!
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ दाखिल याचिका को स्वीकार कर लिया है। याचिका पर 6 मई को सुनवाई होगी। याचिका में कहा गया है- डिप्टी सीएम ने फर्जी डिग्री के सहारे 5 अलग-अलग चुनाव लड़े। उन्होंने फर्जी डिग्री के आधार पर कौशांबी में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन से पेट्रोल पंप हासिल किया। इसलिए उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज होनी चाहिए। यह याचिका भाजपा नेता और आरटीआई कार्यकर्ता दिवाकर नाथ त्रिपाठी ने दाखिल की है। 2 साल पहले हाईकोर्ट ने दिवाकर की याचिका खारिज कर दी थी, कहा गया था- याचिका तथ्यहीन है। याचिका में लगाए गए आरोपों में कोई दम नहीं है। इसके बाद दिवाकर नाथ त्रिपाठी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया, कहा गया था- याचिका दोबारा हाईकोर्ट में दाखिल की जाए। इसके बाद दिवाकर ने हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की, जिसे गुरुवार को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता रमेश चंद्र द्विवेदी ने बहस की और यूपी सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल और शासकीय अधिवक्ता एके संड ने बहस की। यह तस्वीर पिछले साल की है। केशव मौर्य ने लखनऊ में एक बैठक में हिस्सा लिया। आरटीआई कार्यकर्ता का दावा है कि डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने 2014 में फूलपुर लोकसभा सीट से नामांकन के दौरान हलफनामे में अपनी डिग्री बीए बताई थी। इसमें दिखाया गया था कि उन्होंने 1997 में हिंदी साहित्य सम्मेलन से बीए किया था। डिप्टी सीएम ने 2007 में प्रयागराज के पश्चिमी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था। इस समय दिए गए हलफनामे में बताया गया था कि उन्होंने 1986 में प्रथमा, 1988 में मध्यमा और 1998 में हिंदी साहित्य सम्मेलन से उत्तमा की डिग्री हासिल की थी। कुछ राज्यों में प्रथमा की डिग्री हाईस्कूल के समकक्ष, मध्यमा की डिग्री इंटरमीडिएट के समकक्ष और उत्तमा की डिग्री स्नातक के समकक्ष मानी जाती है।
हिंदी साहित्य सम्मेलन बीए की डिग्री नहीं देता है। इसलिए हलफनामे में दी गई जानकारी गलत है। हलफनामे में बीए की डिग्री के वर्ष अलग-अलग क्यों हैं? अगर वह दावा कर रहे हैं कि उत्तम के पास भी बीए की डिग्री है तो दोनों के पास होने के साल अलग-अलग क्यों हैं? यानी 2007 के हलफनामे में पास होने का साल 1998 लिखा है, जबकि 2012 और 2014 के चुनावी हलफनामों में यही साल 1997 लिखा है। दिवाकर त्रिपाठी का कहना है कि मैंने स्थानीय थाने, एसएसपी, यूपी सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और केंद्र सरकार को प्रार्थना पत्र देकर कार्रवाई की मांग की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसलिए मुझे कोर्ट जाना पड़ा।