ज्ञान की परिभाषा

Sep 1, 2023 - 08:49
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ज्ञान की परिभाषा
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ज्ञान की परिभाषा

यदि मन पर नियंत्रण है ,मन पर संयम है तो उत्तम संयम है । मैं एक अकेली शाश्वत आत्मा हूं, यह जानना और देखना मेरा स्वभाव है ।शेष जो भी भाव हैं वह सब बाहरी हैं और संयोग से उत्पन्न हुए हैं,ऐसा मानकर कोई भी पदार्थ मेरे नहीं हैं, जीव के नहीं हैं । जीव के आकिंचन का भाव है, निष्परिग्रहत्व का भाव है तो वह विचारता है कि मैं अकेला हूं, मैं शुद्ध हूं ,मैं आत्म रूप हूं,मैं दर्शन ज्ञान रूप हूं ,मैं अन्य किसी भी रूप वाला नहीं हूं।

परमाणु मात्र भी मेरा नहीं है ।ऐसा मानने वाला अपरिग्रही ही होता है । मानव जीवन के हर क्षेत्र में ज्ञान है सबको पता है लेकिन इसका सार हर कोई नहीं निकाल पाता है क्योंकि इसके लिए एक लंबे अभ्यास और अनुभव की जरुरत पड़ती है ।माना की ज्ञानी होने से शब्द समझ में आते हैं लेकिन अनुभवी होने से उनके अर्थ ।

 जिस प्रकार दूध में मक्खन होता हैं इसका ज्ञान सबको होता हैं लेकिन दूध से मक्खन हर कोई नहीं निकाल सकता है उसके लिए अनुभव की जरुरत होती है ।और यह प्राप्त होता है परिस्थितियों की सौग़ात के ख़ज़ाने से, वस्तु स्थिति को सही सही से भाँपने आदि से । सब कुछ सीखना-जानना ही संपूर्ण ज्ञान नहीं है ।

साथ में कुछ बातों को नजरअंदाज करना भी ज्ञान का संज्ञान हैं । हमने जब तक यह नहीं जाना तब तक हमारा ज्ञान अधूरा है । तभी तो कहा है कि जीवन मे किस प्रकार ज्ञान का समावेश हो और कैसे हम अपने जीवन को उसके अनुरूप ढाल सके यह अधिक आवश्यक हैं। प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़ )