हँसके गुज़ारे या रोके गुज़ारे
हँसके गुज़ारे या रोके गुज़ारे
जीवन में आने वाली परिस्थिति से हम हँसके मुकाबला करे या रोके मुकाबला ( गुजारे ) करे यह हमारे समझ विवेक पर है । समता और सन्तुष्टि जैसे शब्द अब हमारे जीवन से पराये हो गए हैं जिससे फलत: सुकून और शान्ति भी अब दूर कहीं खो गए हैं । ऐसे में आध्यात्म का ही है सहारा है क्योंकि इसमें असीम सुख का आसरा छिपा है । प्राप्त में पर्याप्त को हमे मानना है जो इस सूत्र में समाया है अनमोल सुख का ख़ज़ाना, यह हमको जानना है।
सम-विषम परिस्थिति में समता को हमको धारना है वह मनोविकृतियों को चुन-चुन के मारना है । नन्ही सी ज़िन्दगी के एक-एक पल को सुकर्मों से सजाना है ।धर्म के मर्म को समझ- खुशियों को जीवन में भरना है । हर परिस्थिति में समभाव से रहना शुरु कर दिया जाये तो मानो उसी क्षण से सुख प्रारंभ हो गया या सुख दु: ख का कर्ता स्वयं बन गया । अकेलों हीं आयों हैं अकेलों हीं जासी रे, चारपाई में आयो हैं चारपाई में हीं जासी रे ।
दुःख है , दुःख का कारण भी है , दुःख का निवारण भी है ।सुख है तो सुख के पीछे कारण भी है । दुःख - सुख दोनो एक बराबर मीलें हैं । स्वर्ग के सुख और नारकी के दुःख के बराबर तो यहाँ सुख दुःख है ही नहीं । मनुष्य क्षणिक सुख के लिए पाप का भारा बाँधता है ओर दुख में गिरता है । पाप छिपाया ना छिपे छिपें तो मोटा भाग दाबी दूबी ना रहे रुई लपेटे आग ।
दुःख में सुमिरण सब करे सुख में सुमिरण करे ना कोई जों सुख में सुमिरण करे दुःख काहे को होई । दुःख के समुद्र में जे डुबया ते तीर बस गया ,सुख के समुद्र में जे डुबया ते पाताल में ख़ुद गया । संपन्न-विपन्न , अमीर - ग़रीब व धनवान - निर्धन आदि में रहकर 84 लाख योनि में भटकना हैं या उतरोतर मोक्ष प्राप्त करना यह हमारे स्व: पर निर्भर है ।
हमने अनेकांत दृष्टिकोण से बहुत कुछ पाया है ,सबसे बड़ी उपलब्धि हर परिस्थिति में धीरज बनाये रखने की,विचलित न होने की जो जीवन का सफलतम सूत्र बन जाता है । यही हमारे लिये काम्य है ।
प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)