पर्युषण पर्व
पर्युषण
पर्व जैनो का महान पर्व पर्युषण पर्व हैं । पर्युषण पर्व आत्मा तक पहुँचने का पर्व हैं । यह पर्व अपने अस्तित्व की यात्रा करने का पर्व हैं । एक है अस्तित्व और एक हैं व्यक्तित्व । आत्मा हैं , वह हमारा अस्तित्व हैं । शरीर हैं , वह हमारा व्यक्तित्व बन गया । जहां शरीर नहीं होता , कोरा अस्तित्व होता हैं , वहां व्यक्तित्व नहीं होता ।
जहां शरीर हैं वहाँ अस्तित्व व्यक्तित्व में बदल जाता हैं । अभी हमारे सामने व्यक्तित्व हैं , अस्तित्व हमारे सामने नहीं हैं , क्योंकि आत्मा हमारे सामने नहीं है । इस तरह यह पर्व हमे जागरण का संदेश देता हैं । यह पर्व व्यक्ति को मूर्च्छा , प्रमाद , आलस्य , भ्रम आदि से बाहर लाकर उसे सच्चाई से परिचित कराता हैं ।
पर्युषण पर्व प्रेरणा हैं तीर्थंकर चेतना की शरण में जाने कि , साधना हैं स्वयं को पाने की । महावीर मूर्च्छा के पार खड़ी चेतना के धनी थे , वे सोए नहीं , सोए तो कभी कुछ खोया नहीं । वे सदा पर्युषण में रहते थे । हम भी अधिक से अधिक अपने साथ , अपने पास रह सके इस दिशा में आगे बढ़ सके यही हमारा लक्ष्य बनता रहे ।
पर्युषण पर्व सौंदर्य का भंडार , पौरुष का प्रतीक , अहिंसा का , जैन एकता का , अलौकिक आत्मवलोकन का , तप का , क्षमा का , उपासना आदि का महान पर्व हैं । पर्युषण पर्व आत्मा की यात्रा का , बाहर से भीतर आने का , कषाय उपशमन का , आध्यात्मिक शोधन का , सम्यक् दर्शन आदि का पर्व हैं । पर्वों का अधिराजा पर्युषण पर्व पर हम मन की गाँठे खोलें व क्या खोया क्या पाया उसको अपने भीतर टटोलें।
इस तरह पर्युषण पर्व एक ऐसा त्यौहार है जिससे गण गुलज़ार हैं , भगवान महावीर की अमृत वाणी हमारे जीवन का आधार हैं।इस पर्व पर हम राग-द्वेष के धुँधले मन दर्पण की धूल हटाएँ और शुद्ध चेतना डाली पर समता के फूल खिलाएँ क्योंकि मधुर वाणी से संबंध बढ़ते और तीखे कंटक से कटते इन टूटे रिश्तों को जोड़ने का संकल्प करे । हम चिन्मय बने और मृन्मय जीवन को सही से पहचाने जिसके ध्यान से हमारे मन का मंदिर खुल जाता हैं और मानस शिव सुंदर बन जाता हैं ।
इस तरह हम पूरा हिसाब लगाले जिससे तनिक भी हमारा उधार न रहे पर्युषण पर्व पर और मैली चादर धोकर उपहार पाने से हम वंचित न रह जाये ।यही हमारे लिये काम्य हैं ।
प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)