कहानी - समाज का त्याग विधवा का सुहाग
कहानी - समाज का त्याग विधवा का सुहाग
कहानी - समाज का त्याग विधवा का सुहाग
संध्याकालीन का सूरज धीरे धीरे ढल रहा था। आकाश में पखेरू अपने-अपने खोसला केलिये चले जा रहे थे ।चरवाहे अपने पशुओं को लिए हुए गांव की ओर आ रहे थे ।ठाकुर जर्मन सिंह अपनी आराम कुर्सी पर चबूतरे पर बैठे हुए थे औरअपने आस पास कुर्सियों पर बैठे हुए लोगों बातचीत कर कर रहे थे ।
तभी रामधन प्रधान की गाड़ी ठाकुर साहब के दरवाजे पर आकर खड़ी हो गई। गाड़ी से उतर कर प्रधान रामधन ने ठाकुर साहब के पास आकर कहा-कुंवर वीरसिंह की मोटर साइकिल नीलगाय से टकराने से उनकी दुर्घटना हो गई है और उन्हें जल्दी से आगरा ले चलना है । बुजुर्ग 80 वर्षीय ठाकुर जर्मन सिंह ने जैसे ही यह खबर सुनी उनके होश उड़ गए ।आंखों में आंसू आ गए। वह अपने को संभाल नहीं सके और गिर गए पडे। प्रधान जी ने सांत्वना देते हुए उन्हें उठाया कहा- रोने धोने का समय नहीं है। आप फोरन तैयार होकर गाड़ी पर बैठिए । मैं एक बैनामा कराने गांव गया था ।
आदमी के ना मिलने पर 15 लाख रुपया मेरे पास है । पैसे की चिंता मत करो ।जल्दी से बस चलना है । प्रधान जी ने पास खड़े नौकर से कहा-- मेरे घर पर जाकर कह देना- कुंवर साहब का एक्सीडेंट हो गया है। मैं उनको लेकर बाबूजी के साथ आगरा जा रहा हूं। जैसे ही भीतर घर पर वीर सिंह की पत्नी रूपवती को खबर लगी वह घबराती हुई रोती हुई आकर अपने ससुर से बोली-- पिताजी !मैं भी आगरा चलूंगी। ससुर ने कहा- बेटा घबराने की कोई बात नहीं है। कोई ज्यादा चोट नहीं लगी है । अगर चलना है तुम तैयार होकर आ जाओ ।
जैसे ही गांव में कुंवर साहब के दुर्घटना की खबर फैली- तीन चार लोग अपनी गाड़ियां लेकर ठाकुर साहब के दरवाजे पर आ गए और बोले- मैं भी चलूंगा। देखते देखते 4गाड़ियों का काफिला कुंवर साहब को लेकर आगरा चल पड़ा और 3 घंटे के सफर में सभी आगरा जा पहुंचे। एक बहुत बड़े प्राइवेट अस्पताल पर जाकर कुंवर साहब को लेकर डॉक्टर साहब के पास गए। डॉक्टर ने कुंवर साहब को देखा। देखने के बाद बोले -काफी खून बह जाने के कारण मरीज की स्थिति खतरे में है। इसका फौरन ही ऑपरेशन और एक्स-रे बगैरा करना पड़ेगा ।
प्रधान जी ने अपनी जेब से2 लाख रुपया निकालकर डॉक्टर साहब के हाथ पर रखते हुए कहा- डॉक्टर साहब इस बच्चे को हर हालत बचा लीजिए। डॉक्टर ने अपने कंपाउंडर नर्स से कहा -मरीज को तत्काल गहन चिकित्सा कझ में पहुंचाओ ।इसके बाद डॉक्टरों की टीम कुंवर साहब के इलाज में लग गई। सुबह के समय जब सूर्य देव निकल रहे थे। तभी कुंवर साहब ने अंतिम सांस ली। डॉक्टर साहब बाहर आकर बोले- बहुत प्रयास करने के बाद भी मैं कुंवर वीर सिंह को बचा नहीं सका ।जैसे ही वीर सिंह की पत्नी ने यह खबर सुनी वह रोती हुई पछाड़ खाकर गिर गई। ठाकुर जिमीदार का बुरा हाल हो गया ।
आए हुए लोगों ने बहु तथा ठाकुर साहब कोसंभाला।थोड़ी देर में डॉक्टर साहब ने सभीखानापूरी करके कुंवर साहब का शव आए हुए लोगों को सौंप दिया। 4 घंटे के सफर के बाद सभी शव को लेकर गांव आ गए ।इस दुखद खबर को सुनकर गांव में शोक छा गया। हजारों की भीड़ ठाकुर साहब के दरवाजे पर जुड़ गई। घर की स्त्रियों ने बेहोशी हालत में गाड़ी से बहू को उतारा ।गांव के डॉक्टर संतोष सिंह ने आकर बहू को देखा और उसके इंजेक्शन लगा कर उसको होश में लाने के लिए प्रयास किया। सूर्य अस्त होने के पहले शोक वातावरण में कुंवर साहब का दाह संस्कार हजारों भीड़ के बीच शोक वातावरण में संपन्न हो गया।
इस दुखद घटना से ठाकुर साहब के ऊपर दुख का पहाड़ टूट पड़ा । ठाकुर साहब के 25 वर्षीय इकलौता पुत्र वीर सिंह था जो इंटर कॉलेज में लेक्चरर था। पुत्र से बड़ी रितु पुत्री थी। जिसकी शादी हो चुकी थी। 6 महीना पहले वीर सिंह की शादी बड़े धूमधाम से हुई थी। जिसमें हजारों लोग भोज में सम्मिलित हुए थे। ठाकुर साहब की पत्नी की उम्र 70 वर्ष की थी। दोनों बुजुर्गों का सहारा यही लड़का था । गांव की औरतें जो भी मिलने आती थी वह यही कहती थी। अभी बहू की शादी हुए 6 महीना भी नहीं हुए हैं ।पैर की महावर भी अभी नहीं छुट पाई है। बिचारी विधवा हो गई । ठाकुर साहब की 20 वर्ष बहू का नाम रूपवती जैसा था सौंदर्य आकर्षण आचरण ₩में वैसे ही रूपवती थी।
दोनों बुजुर्गों सास ससुर के लिए रूपवती आदर्श भारतीय नारी थी। अब इन सास ससुर का बुढ़ापा कैसे कटेगा इन्हीं सभी चर्चाओं के बीच 1 साल बीत गया। रात के बाद सवेरा आता है ।परिस्थितियों के अनुसार मनुष्य दुख भी झेल लेता है। एक दिन एकांत में बहू को बुलाकर ससुर ठाकुर साहब ने बहू को समझाते हुए कहा बहू तुम जानती हो हम 80 वर्ष के हो चुके हैं ।कब्र में पैर लटके हुए हैं ।तुम्हारी सास भी 75 वर्ष की हो गई है ।हम दोनों बुड्ढे हैं। बहुत दिनों तक जीवित नहीं रहेंगे। हम चाहते हैं समाज की कुरीतियों को तोड़कर तुम्हारा किसी अच्छे युवक से शादी करा दूं और तुम्हारीचिंता फुर्सत पालु।
बहू ने आंसू बहाते हुए कहा- पिताजी उनके स्मृति में और आपकी सेवा करके मैं अपनी पूरी जिंदगी काट लूंगी । नारी की शक्ति विपत्ति के बाद ही मुखरित होती है ।आप हमारी चिंता छोड़ दीजिए। ससुर बहु की बातों को सुनकर चुप हो गए और बोले जैसा तुम चाहो मैं तुम्हें शादी के लिए अब मजबूर नहीं करूंगा। एक दिन ससुर ने बहु को लेकर जाकर अपने 70 बीघा खेत दिखाएं। बहू घर तथाखेतों का काम संभालने लगी। श्रावणी के त्यौहार पर जमीदार साहब की पुत्री अपने पति देवर के साथ राखी का त्यौहार करने आई।
दामाद साहब ने ससुर को बताया कि मेरे भाई धर्मेंद्र की नौकरी गांव के पास राधा बल्लभ इंटर कॉलेज में लग गई है ।अब उसे वही कहीं मकान दिलाना पड़ेगा ।दमाद से ससुर बोले --मेरे पास रहे स्कूल कौन दूर है। मोटरसाइकिल से जाएं और लौट आए दमाद बोला- ठीक है। कल उसे स्कूल में ज्वाइन करवा दूंगा ।आपके पास रहेगा तो उसकी देखभाल भी ठीक तरह से होती रहेगी ।मुझे उसकी चिंता नहीं रहेगी। ठाकुर साहब ने नौकर से कहकर बगल वाले कमरे में धर्मेंद्र के रहने का बंदोबस्त करा दिया ।श्रावणी का त्यौहार करके दमाद और बेटी चले गए ।दमादअपने छोटे भाई को छोड़ गए।
धर्मेंद्र मोटर साइकिल से सुबह के समय स्कूल जाते और शाम को लौट आते । एक दिन ठाकुर साहब ने धर्मेंद्र को अपने कमरे में बुलाकर कहा -बेटा मुझे एक लेख सामाजिक कुरीतियो का लिखकरअखबार को भेजना है। आज समाज में दहेज लेने की अकुरीति जो है तथा विधवा विवाह करने के संबंध में लेख तैयार करना है ।बेकार समय में कुछ लिखा करो। धर्मेंद्र ने दो लेख तैयार करके ठाकुर साहब को दिए।लेख को पढ़कर ठाकुर साहब बहुत खुश हुए। दोनो लेखो को ठाकुर साहब ने धर्मेंद्र के नाम से ही छापे ।धर्मेंद्र को बहुत से लोगों ने बधाइयां दी । एक दिन प्रेस वालों ने आकर धर्मेंद्र से पूछा- क्या तुम अपनी शादी दहेज रहित करोगे?
क्या तुम अपनी शादी किसी विधवा से कर सकते हो? धर्मेंद्र कुछ देर चुप रहा फिर प्रेस वालों से बोला -अगर कभी ऐसा मौका आया तो मैं दहेज नहीं लूंगा । अगर कोई विधवा मुझ से शादी करना चाहै तो उससे शादी भी कर लूंगा ।धर्मेंद्र के यह विचार अखबारों में बड़े सुर्खियों में छपे। ठाकुर साहब ने जब धर्मेंद्र के यह विचार पढ़े तो बहुत खुश हुए। ठाकुर साहब ने बहु को बुलाकर छपे हुए लेख का अखबार बहू को पकडा दिया। बहु अख़बार लेकरचुपचाप अंदर चली गई। होली के दिनठाकुर साहब के दमाद सुरेश और बेटी रचनाहोली का त्यौहार मनाने के लिए घर आए ।ठाकुर साहब ने बेटी रचना कोबुलाकर कहा -मैं बहू की शादी करना चाहता हूं तुम अपने देवर से बात करो। अगर वह तैयार हो तो मैं उसके साथ शादी कर दूंगा ।
बेटी ने एकांत में बुलाकर देवर से कहा क्या तुम मेरी भाभी से शादी करना चाहोगे ।देवर धर्मेंद्र अपनी भाभी की बात पर हंसा और बोला -अब इन सब बातों का निर्णय तो आप ही को करना होगा। मैं क्या जानू? भाभी देवर की मनसा जान गई और देवर से बोली जब मुझे ही निर्णय करना है। तो तुम्हारे हित में होगा वही करूंगी ।मेरीभाभी रूप सौंदर्य आचरण से जैसा है नाम उसके अनुरूप ही वास्तव में रूपवती है। देवर मुस्काया और चुपचाप बाहर चला गया। इसके बाद ठाकुर साहब की बेटी ने अपनी भाभी का अपने देवर के साथ शादी करने की बात कहीतो भाभी भी मुस्कुराई और चुपचाप अपने कमरे में चली गई ।
बेटी ने आकर अपने पिता को अपने देवर तथा भाभी की मनसा बताई ।ससुर ने एकांत में बुलाकर बहू से कहा -बहू अब मैं चाहता हूं कि तुम्हारी शादी बेटी के देवर के साथ हो जाए। लड़का अच्छा है ।होनहार है मेरी बात को टालना मत ।ससुर से बाहु बोली- मैंने कभी आपकी कोई बात टाली है और यह कहकर अंदर चली गई। होली के त्यौहार मैं जब रंग एक दूसरे ऊपर डाला जा रहा था तब देवर ने अपनी भाभी के संग अपनी भाभी की भाभी पर रंग डाल दिया। दूसरे दिन धर्मेंद्र को अकेला पाकर रूपवती ने धर्मेंद्र से कहा- तुम सच बताना! तुम मुझसे शादी बिना किसी दबाव के मुझसे करने को तैयार हो ?
मेरी यह शर्त रहेगी मैं तुम से भी प्यार करूंगी ।उनकी भी स्मृति नहीं भुला पाऊंगी ।उनकी स्मृति में एक मंदिर बनवाऊगी । एक स्कूल खोलूगी ।तुम्हें इस पर एतराज तो नहीं होगा? धर्मेंद्र बोला अच्छे काम के लिए मैं क्यों मना करूगा? तुम्हारा सहयोग ही करूंगा ।तुम्हारे आचरण व्यवहार से मैं खुश हूं ।मैं तुम्हें कभी भी दुखी नहीं करूंगा। सब की सहमत से एक दिन धूमधाम से रूपवती धर्मेंद्र की शादी हो गई और समाज में चली आ रही एक कुरीति टूट गई।
बृज किशोर सक्सेना किशोर इटावी कचहरी रोड मैनपुरी