UP विधानपरिषद में दिखा सरकार से बड़ा संगठन, एक सुर में कई दिग्गज, नजूल भूमि बिल अटका
UP विधानपरिषद में दिखा सरकार से बड़ा संगठन, एक सुर में कई दिग्गज, नजूल भूमि बिल अटका
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में सरकार से बड़ा संगठन कहकर पूरी पार्टी में हलचल मचा दी थी।
केशव को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी का भी बाद में समर्थन मिला। इसी बयान का असली नजारा गुरुवार को यूपी की विधान परिषद में देखने को मिला है। नजूल की भूमि को लेकर जिस बिल को योगी कैबिनेट ने मंजूरी दी और सरकार विधानसभा से भी पास कराने में सफल हो गई। वह बिल बहुमत होने के बाद भी विधान परिषद में लटक गया है।
विधान परिषद में बिल का किसी और ने नहीं बल्कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने विरोध किया और उनके प्रस्ताव पर बिल को प्रवर समिति को भेज दिया गया है। अपनी ही सरकार की तरफ से लाए गए बिल का सीधे भाजपा अध्यक्ष की ओर से विरोध को लेकर तरह तरह की चर्चाएं हो रही हैं। कहा जा रहा है कि भाजपा के अंदर ही इस बिल का काफी विरोध हो गया है। इसी को देखते हुए फिलहाल बिल को नया रास्ता निकालते हुए प्रवर समिति को भेजने का निर्णय किया गया है।
उत्तर प्रदेश नजूल सम्पत्ति (लोक प्रयोजनार्थ प्रबंध और उपयोग) विधेयक-2024 विधानसभा में पास होने के बाद गुरुवार को विधानपरिषद में लाया गया। यहां भाजपा प्रदेश अध्यक्ष चौधरी भूपेन्द्र सिंह ने यह विधेयक प्रवर समिति को भेजने का प्रस्ताव रखा। उनके प्रस्ताव पर सभापति कुंवर मानवेन्द्र सिंह ने बिल को प्रवर समिति को भेज दिया। बिल के प्रवर समिति को भेज देने से माना जा रहा है कि यह फिलहाल लटक गया है।
जिस समय बिल का भूपेंद्र चौधरी ने विरोध किया दोनों डिप्टी सीएम केशव मौर्य और ब्रजेश पाठक भी साथ-साथ बैठे थे। विधानपरिषद से पहले विधानसभा में भी विधेयक भले पास हो गया था लेकिन वहां भी भाजपा के ही विधायकों ने इसका विरोध किया। प्रयागराज से भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह और हर्षवर्धन बाजपेयी ने विधेयक का खुलकर विरोध किया। कहा जा रहा है कि इन विधायकों ने बाद में भूपेंद्र चौधरी के सामने भी बिल का खुलकर विरोध किया था।
सूत्रों के अनुसार कुछ विधायकों ने भूपेंद्र चौधरी से मुलाकात की तो कुछ ने फोन पर विधेयक को विधान परिषद में रोकने का आग्रह किया था। इन विधायकों का कहना था कि विधेयक के लागू होने से हजारों परिवार प्रभावित होंगे। यह विधेयक उप-चुनाव के साथ ही आने वाले 2027 के विधानसभा चुनाव में भी मुश्किलें खड़ी करेगा। भाजपा के लिए यह आत्मघाती कदम हो सकता है। माना जा रहा है कि पार्टी के विधायकों के आग्रह पर ही खुद भूपेंद्र चौधरी ने पहल की और विधेयक का विरोध कर दिया। नजूल भूमि विधेयक का विरोध कुंडा से विधायक राजाभैया ने भी किया था।
राजा भैया ने यहां तक कहा कि इस विधेयक के परिणाम गंभीर होंगे। कहा कि हाईकोर्ट इलाहाबाद भी नजूल की भूमि पर है। विधेयक किसी के हित में नहीं है, इससे गरीब बेघर हो जाएंगे। लोग सड़कों पर आ जाएंगे। सरकार इस विधेयक पर फिर से विचार करे। इसे प्रवर समिति को भेजी जाए। क्या बोले भाजपा के सिद्धार्थनाथ और हर्षवर्धन बाजपेयी विधेयक को लेकर भाजपा विधायक सिद्धार्थनाथ सिंह ने अपनी ही सरकार पर सवाल उठाया।
उन्होंने कहा कि अधिनियम सरकार विकास के लिए ला रही है, जो लोग पीढ़ियों से लीज की नजूल की भूमि पर रह रहे हैं, लीज पूरा होने पर उनके नवीनीकरण और जो लोग फ्री-होल्ड के लिए किश्तें दे रहे हैं, उनके लीज का भी नवीनीकरण करने का सुझाव दिया। उन्होंने विधेयक को व्यावहारिक बनाने की बात कही। बीजेपी विधायक हर्षवर्धन वाजपेयी ने लीज की भूमि पर रह रहे हजारों परिवारों का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि विधेयक न्यायसंगत नहीं है। हजारों परिवार बेघर हो जाएंगे।
संपत्ति का अधिकार स्पष्ट होना चाहिए। गरीबों के पास नजूल की जमीन को फ्रीहोल्ड कराने का अधिकार होना चाहिए। उन्होंने कहा, अगर सरकार एक या दो (संपत्तियां) ले लेती है, तो कुछ नहीं बदलेगा। लेकिन मैं उन लोगों की बात कर रहा हूं जो झुग्गियों में एक या दो कमरे में रहते हैं। कहा कि प्रयागराज में उन्हें 'सागर पेशा' कहा जाता है। 'सागर पेशा' शब्द ब्रिटिश राज के दौर से आया है। भाजपा विधायक बाजपेयी ने कहा, अंग्रेजों ने अपने बंगलों के पास रहने के लिए अपने काम करने वाले कर्मचारियों को जगह दी।
ये परिवार ब्रिटिश शासन के समय से वहां रह रहे हैं... 100 साल से भी पहले... एक तरफ, हम गरीबों को पीएम आवास योजना के तहत घर दे रहे हैं, और दूसरी तरफ, हम हजारों परिवारों को बाहर निकलने के लिए कह रहे हैं। हम जमीन ले रहे हैं। ये न्यायसंगत नहीं है (यह वैध नहीं है)। भाजपा के सहयोगी निषाद पार्टी के विधायक अनिल कुमार त्रिपाठी ने कहा कि 1996 में कल्याण सिंह ने राजस्व के लिए नजूल भूमि को फ्रीहोल्ड करने की व्यवस्था दी थी। विधेयक अनुचित है सुधार किया जाए। इसे प्रवर समिति को भेजा जाए।