अगर दलित उत्पीड़न पर बोलने की इजाजत नहीं है तो हम संसद में क्या करेंगे? सांसद चन्द्रशेखर
सांसद चंद्रशेखर ने कल सांसद में बोलने न दिए जाने पर एक बयान देकर राजनीतिक हलचल मचा दी है।
उन्होंने सरकार और संसद के कामकाज पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा, "अगर दलित उत्पीड़न पर बोलने की इजाजत नहीं है तो हम संसद में क्या करेंगे?" यह बयान उस समय आया जब उन्होंने स्पीकर से दलित उत्पीड़न के मुद्दे पर चर्चा के लिए समय मांगा था, लेकिन उन्हें जवाब में कोई सहूलियत नहीं मिली। चंद्रशेखर ने यह भी आरोप लगाया कि स्पीकर ने उनकी मांग पर ध्यान नहीं दिया और इस कारण उन्होंने संसद में अपनी भूमिका को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की।
उन्होंने कहा, "हमने स्पीकर से समय मांगा, लेकिन उन्होंने हमें नहीं दिया। अगर हमें दलित उत्पीड़न पर बोलने की इजाजत नहीं है, तो हम संसद में क्या करेंगे? सांसद चंद्रशेखर ने स्पष्ट किया कि उनकी चिंता केवल एक मुद्दे तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे लोकतंत्र और संसद की भूमिका पर एक गंभीर सवाल खड़ा करती है। उनका मानना है कि यदि संसद में प्रतिनिधियों को जरूरी मुद्दों पर बात करने की अनुमति नहीं दी जाती है, तो इसका मतलब यह है कि संसद की भूमिका और कार्यप्रणाली पर सवाल उठता है।
चंद्रशेखर ने सांसदों से अपील की कि अगर वे न्याय नहीं कर सकते या समस्याओं पर प्रभावी रूप से चर्चा नहीं कर सकते, तो उन्हें अपने पद को छोड़ देना चाहिए। उन्होंने कहा, "कुर्सी पर बैठे हो तो करो न्याय, अगर नहीं दे सकते तो छोड़ दो कुर्सी।" इस बयान ने विभिन्न राजनीतिक दलों और नेताओं के बीच तीखी प्रतिक्रियाओं को जन्म दिया है।
कुछ नेताओं ने चंद्रशेखर के बयान को उनकी गंभीर चिंता और समाज के कमजोर वर्गों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के रूप में देखा है, जबकि अन्य ने इसे संसद की कार्यप्रणाली और अनुशासन के खिलाफ एक हमला माना है। चंद्रशेखर का यह बयान देश की संसद की कार्यप्रणाली और दलित मुद्दों पर चल रही बहस को फिर से सुर्खियों में ला दिया है।
उन्होंने अपने बयान के माध्यम से यह संदेश देने की कोशिश की है कि संसद में सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के मुद्दों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, और किसी भी प्रकार की असहयोगिता या अड़चन को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए।