घमंड किस बात का
घमंड किस बात का
एक आदमी अकड़ कर अपने धन-वैभव की औक़ात में चूर-चूर हो कर घूम रहा था क्योंकि अपनी दौलत का मद उसके भरपूर छाया हुआ था ।यह आगम वाणी हैं कि सफलता पर हम न फुलें और न अहंकार के भाव लाएं।असफलता पर हीन भाव से ग्रसित न बन जाएं।समत्त्व भाव विकसायें । सफलता तब ही सफल कहलाती है जब वह विनम्रता बढ़ाती है ।
कुछ हासिल किया और अहंकार न आये, यह बहुत बड़ा आश्चर्य कहलाता है । अहंकार ढंका हुआ कुंआ है जो पता ही नहीं चलता है कब लुढ़क जाएं। हमारे भाग्य के साथ से तो शायद एकाध बार और सफलता पा जाए पर निरंतरता नहीं रह पाती है और अगली बार वह घमंड में फिसलता चला जाता हैं । विनम्र सरल व्यक्ति ही दिन प्रति दिन सफलता पा सकता हैं वह आगे बढ़ता जा सकता है ।
जीवन में हर बात भावनाओं से जुड़ी हैं जहाँ आसक्ति का भाव वहाँ भारभूत होना स्वभाविक हैं और जैसे ही अनासक्त हुए वही हम हल्के। सजीव हो या निर्जीव हो या जिस से भी हम जुड़े हमें संसार की नश्वरता को जानना है समझना है की आना और जाना नियति का योग हैं हम केवल निमित्त मात्र है ।
मोह खत्म हुआ कि खोने का ड़र भी निकल जाता हैं चाहे दौलत हो वस्तु हो रिश्तें हो या फ़िर ज़िंदगी । सांसें तो आयुष्य कर्मों निर्भर हैं तो फिर यह अकड़, यह अहं किस बात पर । प्रदीप छाजेड़