जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि
जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि
कहते हैं जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि यही बात मनुष्य जीवन के संदर्भ में भी लागू होती है । व्यक्ति के विचार, उसकी दृष्टि कई बार उसके जीवन की दशा और दिशा निर्धारित करती हैं, यदि जीवन में हम सकारात्मक सोच रखें तो सफलता अवश्य ही प्राप्त होती है, विपरीत परिस्थितियों को भी हम अनुकूल बना सकते हैं ।
अतः हमारी दृष्टि नकारात्मक न हो, नकारात्मक सोच मनुष्य को मन व शरीर से निर्बल बना देती है, वहीं सकारात्मक सोच के बगैर व्यक्ति सामर्थ्यहीन हो जाता है। नजर को बदलो तो नजारे बदल जाते हैं । सोच को बदलो तो सितारे बदल जाते हैं । कश्तियाँ बदलने की जरूरत नहीं दिशा को बदलो तो किनारे बदल जाते हैं ।
दृष्टिकोण सबका अलग -अलग ही होता है , लेकिन नकारात्मक न हो तभी सबके नजरिये को अपनाकर हम शांति और समन्वय से सुखी व आनंदित जीवन जी सकते हैं।हममें अपने नजरिये के प्रति आग्रह नहीं होना चाहिए,सभी के नजरियों का सम्मान करना और सकारात्मक सोच से सामंजस्य बनाकर जीना चाहिए।
नो हीणे, नो अइरिते के सूत्र को अपनाएंऔर समतापूर्वक शुद्ध भावों में जीयें। कुदरत का नियम ही है जैसा सोचेंगे वैसा ही ग्रहण करेंगे।जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि , सो अच्छा सोचें, प्रसन्न रहें। मन में अपार प्रसन्नता की वृष्टि होगी । प्रदीप छाजेड़
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